काश! पहले कहा होता
काश! पहले कहा होता
रोज की भांति आज भी सुगंधा जी मॉर्निंग वॉक से आकर अपनी चाय की प्याली और मोबाइल के साथ छत पर धूप में जाकर बैठ गई। फागुन महीने की धूप और हवा दोनों ही बहुत प्यारी लग रही थी। वहीं बगल में पतिदेव दीनानाथ बाबू भी गुनगुने पानी के गिलास के साथ अखबार में आंख गड़ाए बैठे थे। चाय की घूंट लेते हुए सुगंधा जी व्हाट्सएप पर आए मैसेज चेक करने लगी। तभी किसी ने एक वीडियो फॉरवर्ड किया जिसमें एक जवान आदमी का बस से एक्सिडेंट होता है और ऑन द स्पॉट उसकी डेथ हो जाती है। सुगंधा जी वीडियो देखते ही चौंक पड़ी, मोबाइल बंद कर दिया खुद को सामान्य करने की कोशिश करने लगी फिर भी घबराहट होने लगी।
"क्या हुआ? इतनी घबराहट क्यों हो रही है?" पतिदेव ने कहा तब सुगंधा जी ने वह वीडियो उन्हें दिखा दिया जिसे देखकर वह भी चौंक पड़े।"
"अरे दिखाओ तो जरा!" बोलकर दीनानाथ बाबू ने पत्नी के हाथ से मोबाइल लेकर वह वीडियो देखने लगे।
"हे भगवान आजकल लोगों में जरा भी संवेदना नहीं बची है। एंबुलेंस बुलाने और डॉक्टर के पास ले जाने के बजाय सब वीडियो बनाने लगते हैं।"
बोलकर मोबाइल सुगंधा जी को दे दिए।
एक क्षण सोचने के बाद फिर बोले अरे सुगंधा वीडियो फिर से दिखाओ। वह युवक कुछ जाना पहचाना सा लगता है।
उन्होंने एक बार फिर वीडियो देखा और चौंकते हुए कहा,
"अरे यह तो राहुल है!"
"कौन राहुल?"
"अरे कौन राहुल क्या? माही का पति!"
"क्या माही का पति राहुल यानी अपना दामाद!" बोल सुगंधा जी ने झट से फोन लेकर वीडियो देखने लगी तो सच में वह युवक उनका दामाद था।
देखते ही वो मुंह दबाकर सिसकने लगी और रामदीन बाबू भी सिर पर हाथ रख बैठ गए।
फिर जिसने वीडियो फॉरवर्ड किया था उससे पूछा कि वीडियो कहां से मिली और कितने दिन पहले का है? तब पता चला कि घटना 2 दिन पहले की है।
" हे भगवान! दो दिन हो गए और हमें बताया तक नहीं, पता भी नहीं चलने दिया। यूं सिर पर हाथ रख कर कब तक बैठे रहोगे? चलो जल्दी से बिटिया के पास?"
सुगंधा जी की बात सुनकर भी रामदीन बाबू ने जब कुछ जवाब नहीं दिया। तब सुगंधा जी ने झकझोरते हुए कहा, "अरे अब कैसी नाराजगी? चलो बिटिया का तो संसार उजड़ गया, पता नहीं अब कैसे रहेगी? अब कौन आसरा होगा? चलो चल कर देखते हैं।"
रामदीन बाबू कुछ देर गुमसुम बैठे रहे फिर बेटी के घर को विदा हुए साथ में सुगंधा जी भी चली।
रामदीन बाबू शहर के बड़े कॉलेज के प्रिंसिपल थे और माही उनकी इकलौती बेटी।
बिटिया माही जब कॉलेज की पढ़ाई पूरी कर ली तब उन्होंने उसके लिए रिश्ता ढूंढना शुरू किया। यह बात जब माही को पता चली तब पिता को अपनी पसंद राहुल के बारे में बताया। साथ में ये भी कहा कि वे दोनों एक दूसरे से बहुत प्रेम करते हैं और जीवन भर के लिए एक दूसरे का हाथ थामना चाहते हैं।
राम दीन बाबू बेटी की बात सुनकर काफी नाराज हो गए। परंतु जब माही ने कहा,
"पापा प्लीज नाराज मत होइए। राहुल बहुत अच्छा लड़का है। आप एक बार उससे और उसके परिवार वालों से मिल लीजिए। देखिए अगर आपको नहीं पसंद हुआ तो मैं इस रिश्ते से इनकार कर दूंगी पर बिना मिले कोई निर्णय मत लीजिए।"
तब खुद पर संयम रखते हुए कहा, ठीक है हम उससे और उसके परिवार वाले से कल ही मिलते हैं।
परंतु जब लड़का और उसके परिवार वालों से मिले तब पता चला कि वह दूसरी जाति का है। वह भी उनसे नीची जाति का। तब दोनों पति पत्नी काफी नाराज हो गए और शादी से साफ इनकार कर दिए।
"यह सब करने और बोलने से पहले एक बार अपने पिता के बारे में नहीं सोचा? मेरा कितना नाम है, रुतबा है इस शहर में? अरे मैं कोई ऐरा गैरा नहीं हूं शहर के सबसे बड़े कॉलेज का प्रिंसिपल हूं, धाक है मेरी। देखो तुम उसे भूल जाओ। शहर के बड़े से बड़े लोग रिश्ते जोड़ने के लिए आतुर है और तुमने उसे पसंद किया! अरे! क्या उसकी औकात है तुम्हें रखने की, तुम्हारी जरूरत पूरी करने की?"
"पापा, अभी नहीं है लेकिन हो जाएगी। हम दोनों वेल एजुकेटेड हैं तो अच्छी नौकरी हमें मिल जाएगी। अगर नहीं भी मिली तो आप है ना! आपकी मदद से तो राहुल को अच्छी नौकरी बड़ी आसानी से मिल जाएगी फिर समस्या कहां रहेगी?"
परंतु फिर भी रामदीन बाबू तैयार नहीं हुए।
इधर राहुल के मां बाप ने भी साफ साफ मना कर दिया माही को अपने घर की बहू बनाने से। और इसकी सबसे बड़ी वजह थी माही की ऊंची जाती और उसके पिता का रुतबा तो उन्हें डर था कि कहीं कुछ उल्टा सीधा ना हो जाए।
दोनों अपने माता पिता की राय जानकर बहुत दुखी हुए। परंतु दोनों ने हार नहीं मानी और एक बार फिर अपने मां बाप को मनाने लगे।
लेकिन जब वे नहीं माने तब अपने परिवार के खिलाफ जाकर दोनों ने शादी कर ली। कुछ दिनों तक दोनों माता पिता के सामने नहीं आए पर जब लगा कि उनका गुस्सा शांत हो गया होगा।। तब दोनों माता पिता का आशीर्वाद लेने आए। परंतु दोनों के माता पिता ने आशीर्वाद देना तो दूर शक्ल तक दिखाने से मना कर दिया।
कई महीने तक दोनों अपने-अपने माता-पिता को चिट्ठियां, फोन कॉल और दूसरों के हाथ संवाद भिजवाया, माफ़ कर देने के लिए बोलते रहे। परंतु वे नहीं माने। एक बार राहुल के मां बाप तो अपने बेटे को स्वीकार करने को तैयार हो गए पर शर्त यह रखी कि माही को छोड़ दो। परंतु इसके लिए राहुल तैयार नहीं हुआ तब वे भी अपने बेटे से रिश्ता तोड़ दिया।
अब जब राहुल और माही को लगा की माता पिता स्वीकार नहीं कर रहे हैं, नहीं मान रहे हैं तब पिता के घर से मात्र 3 किलोमीटर की दूरी पर एक घर किराए पर लेकर रहने लगी ताकि करीब रहेंगे तो आते जाते मुलाकात होगी। फिर हो सकता है एक दिन माफी भी मिल जाए। अगर मेरे मां बाप ने अपना लिया तब तो राहुल के मां बाप भी जरूर मान जाएंगे। लेकिन, जब यह बात रामदीन बाबू को पता चली तब वो और नाराज हो गए और उस रास्ते से आना जाना भी बंद कर दिए। संयोग वश एक बार वो कहीं जा रहे थे तो दोनों बाप बेटी आमने-सामने हो गए। पापा को देखते ही माही भाग कर पास आई। परंतु उन्होंने गुस्से में आंखें लाल पीले कर देखा तो डर के मारे नजदीक नहीं आई और ना ही कुछ बोल सकी। उसके बाद फिर कभी नहीं दिखी। हां कुछ दिनों बाद किसी और से पता चला कि माही ने एक लड़के को जन्म दिया है। यह बात जब सुगंधा जी को पता चली तो उनका ह्रदय पिघल गया नाती को देखने के लिए। परंतु हर बार की तरह इस बार भी रामदीन बाबू नहीं पिघले और साफ-साफ मना कर दिया जाने से। पर आज यह हृदय विदारक घटना देख बेटी के प्रति नाराजगी लगभग दूर हो गई।
बेटी का घर मात्र 3 किलोमीटर की दूरी पर था परंतु यह दूरी मानो खत्म ही नहीं हो रही थी। ऐसा लग रहा था उनके कदम उठ नहीं रहे। फिर भी जैसे तैसे बेटी के घर पहुंचे तो बेटी सिमट सिकुड़ कर गुमसुम बैठी थी। वहीं डेढ़ साल का बच्चा खेल रहा था। माही को वैधव्य रूप में देख सुगंधा जी का कलेजा फट गया। तीन साल पहले बेटी को देखा था शादी के लाल जोड़े में और आज सफेद लिबास में देख दहाड़े मार कर रोने लगी।
मां बाप को सामने देख माही उनसे लिपट कर जोर-जोर से रोने लगी।
"मम्मी, पापा, अब मैं कैसे जिऊंगी? किसके सहारे? यह पापा के बिना कैसे बड़ा होगा? सब कुछ उजड़ गया!"
दोनों पति-पत्नी ने बेटी को संभालने लगे।
" बेटा, मत रो शायद ईश्वर को यही मंजूर था। तुम्हारा सुहाग इतने दिनों का ही था। बेटी को सांत्वना देते हुए दोनों पति-पत्नी ने उसके घर के तरफ नजर दौड़ाई। मात्र एक बेडरूम और उसी में अटैच्ड एक छोटा सा किचन था। बेडरूम भी इतना बड़ा ही था कि एक चारपाई रखने पर बस आने जाने की जगह ही बची थी। इतने बड़े घर में राजकुमारी की तरह रहने वाली मेरी बेटी इतनी छोटे से कमरे में कैसे पिछले 3 साल से रह रही थी? गुजारा कर रही थी? सोच कर ही मन व्यथित हो गया।
तभी डेढ़ साल का नाती खाने के लिए रोने लगा। सुगंधा जी रसोई में नाती के लिए कुछ खाने को लाने गई। पर वहां की हालत देख दंग रह गई।
सारे बर्तन यूं ही खाली पड़े थे। शायद बेटी ने पिछले 2 दिनों से खाना नहीं बनाया था। सुगंधा जी ने मन ही मन सोचा खाना बना देती हूं। परंतु जब उन्होंने डिब्बा खोला तो कुछ नहीं मिला। फिर तुरंत ही सारा डिब्बा एक-एक कर छान मारा तो देखा राशन के नाम पर सिर्फ थोड़ा सा दाल चावल था बाकी कुछ नहीं।
यह देख सुगंधा जी का कलेजा फट गया। तुरंत घर से बाहर निकली और दुकान से दूध बिस्कुट लाकर नाती को खिलाया, बेटी को भी एक गिलास गर्म दूध पीने को दिया। तब तक बेटी के सास ससुर भी गाली देते हुए घर में घुसे।
"जिस दिन से यह आफ़त मेरे बेटे के जीवन में आई है, मेरा बेटा कभी सुखी नहीं रहा, चैन की दो रोटी नसीब नहीं हुई। अरे! बहुत बड़ी डाकन है तू! खा गई मेरे इकलौते बेटे को!"
अब तक तो आसपास के और भी लोग जमा हो गए, आपस में खुसर फुसर करने लगे।
"अरे! यह तो एक दिन होना ही था। मां बाप का दिल जो दुखाया था। बद्दुआ तो लगेगी ही।"
"हां, इसलिए तो कहा जाता है कि शादी विवाह कभी भी सबकी मर्जी से की जाती है, सब के दुआ आशीर्वाद के साथ तभी फलता है।"
"मैं तो बगल में ही रहती हूं अक्सर दोनों में लड़ाई होती थी और पिछले कुछ दिनों से तो उसकी नौकरी भी छूट गई थी, बहुत टेंशन में था। मैंने तो यह भी सुना था कि इसका पति डिप्रेशन में था। मुझे तो लगता है जानबूझकर बस के सामने आ गया ताकि इस गरीबी से परिवार को छुटकारा मिल सके। अरे तुम लोग समझ रहे हो ना मैं क्या बोलना चाह रही हूं?
"हां-हां समझ गई ताकि कुछ मुआवजा मिल जाए।"
कुछ इसी तरह की बातें हो रही थी। जो सुगंधा जी को बर्दाश्त नहीं हुआ। वो कान पर दोनों हाथ रख भाग गई।
कुछ देर तक सांत्वना देने के बाद दोनों पति पत्नी बेटी और नाती को अपने साथ चलने के लिए कहा। पर पति के जाने के गम में डूबी माही को कुछ सुनाई नहीं दिया।
"माही, कहां खोई हो? बेटा, अब रोने से क्या होगा जिसे जाना था वह तो चला गया अब यहां कोई नहीं है तुम दोनों को देखने वाला तो चलो यहां से।"
"यहां से कहां चले मां?"
"अपने घर बेटा और कहां? चलो अब हम सब साथ मिलकर रहेंगे।"
"हां बेटा, तुम्हारी मां सही कह रही है। अब यहां क्यों और किसके भरोसे रहोगी? चलो हम सब साथ रहेंगे, हम तुम्हारे साथ है बेटा। चलो अपने घर चलो।"
माही मां बाप को एक टक देखने लगी।
इधर रचना के ससुराल वाले जी भर कर भला बुरा सुनान के बाद डेढ़ साल के पोते को उसके गोद से अपने गोद में ले लिया। ला दे मेरे पोते को मेरे घर के चिराग को लेकर चले जाऊं मैं। मेरे बेटे की आखिरी निशानी है, नहीं तो तू इसे भी खा जाएगी।
वह बच्चा दादी के गोद में जाते ही जोर जोर से रोने लगा।
यह देख सुगंधा जी ने तुरंत अपने गोद में लेते हुए कहा, "खबरदार! इसे अपने साथ ले जाने की बात कही तो! यह मेरा नाती है यह मेरे साथ रहेगा हम ले जाएंगे इसे।"
"नहीं यह मेरा पोता है मेरे घर का चिराग, मेरा वंश बेल! यह आपका कुछ नहीं लगता। अगर ले कर जाना तो अपनी अलच्छी बेटी को ले जाइए। पर पोता को तो मैं ही लेकर जाऊंगी।"
दोनों के खींचातानी और कहा सुनी सुनकर माही अपने आंसू पोछ उठ खड़ी हुई।
" खबरदार! आप दोनों में से किसी ने मेरे बच्चे को लेकर जाने की बात की तो। यह ना तो आपका नाती है और ना ही आपका पोता। यह सिर्फ और सिर्फ मेरा और राहुल का बच्चा है तो यह मेरे साथ रहेगा। और हां, मैं अपना घर छोड़कर कहीं नहीं जा रही हूं।"
"इतना क्यों नाराज हो रही हो बेटा? जो हो गया सो गया। अब चलो अपने घर वहीं हम सब साथ में रहेंगे।"
"कौन सा अपना घर पापा? वही जिसके दरवाजे हमेशा हमेशा के लिए बंद कर दिया आपने। पापा! जो बातें आज आप कह रहे हैं ना कि हम तुम्हारे साथ हैं। काश! यह पहले कहा होता तो आज मैं विधवा नहीं होती! मेरे बेटे के सिर से पिता का साया नहीं उठता। हमने कितनी कोशिश की, कितनी बार फोन किया कि हमें माफ कर दीजिए पर नहीं। आपको तो अपनी बेटी की खुशी से ज्यादा अपनी इज्जत और ईगो प्यारी थी। इसलिए तो अपनी कही बातों पर टिके रहे, हमारी एक नहीं सुनी।
रामदीन बाबू चुपचाप सुनते रहे।
"हां पापा, आपने जैसा कहा ठीक वैसा हुआ। पिछले 3 सालों में हम कभी सुखी नहीं रहे। और यह इसलिए नहीं कि हमारी कमाई नहीं थी या हमें किसी चीज की दिक्कत थी। बस इसलिए कि हम अकेले हो गए थे। सब ने हमसे नाता तोड़ लिया। शादी के बाद कुछ दिनों तक तो सब ठीक-ठाक रहा पर धीरे-धीरे हमें समझ आई कि सुखी जीवन के लिए परिवार का साथ होना भी ज़रूरी है और इसके लिए हमने बहुत प्रयास किया। परंतु आपने एक नहीं सुनी।
फिर राहुल के माता पिता की और मुखातिब होते हुए बोली, और आप! आज किस हक से पोते को लेने आई हैं? इससे पहले तो आपके बेटे ने कितनी मिन्नतें की, कितनी बार कहा कि हमें स्वीकार कर लो। तब आपने क्या कहा तुम मेरे लिए मर गए हो। आपने अपने लाडले बेटे को ऐसी बद्दुआ सिर्फ इसलिए दी क्योंकि उसने अपने पसंद की लड़की से शादी कर ली? जानते हैं यही सब धीरे-धीरे उसके मन में बैठने लगा, वह खुद को काफी अकेला महसूस करने लगा। मेरे लाख समझाने के बाद कि मैं आपके साथ हूं, हम दोनों हैं साथ हैं तो धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा। बावजूद उसे परिवार से अपने रिश्ते नातों से अलग होने का दुख सालने लगा और धीरे-धीरे वह डिप्रेशन में जाने लगा।
इसी वजह से उसकी नौकरी भी चली गई और अब वह कल खुद भी। मैं आप सब से पूछना चाहती हूं क्या अपनी पसंद से शादी करना इतना बड़ा अपराध है कि उससे रिश्ते तोड़ दिया जाए, बेदखल कर दिया जाए? पापा, जब आपने मुझे पढ़ने के लिए बाहर भेजा, अपने करियर चुनने का अधिकार दिया तो फिर जीवनसाथी चुनने का अधिकार क्यों नहीं?" बोलकर माही हिचकियां लेकर रोने लगी।
माही की बात सुनकर माता पिता के साथ उसके सास ससुर की भी आंखें नम हो गई।
"आप सब इस दुख के घड़ी में आए, मुझे सांत्वना दी यह बहुत अच्छा लगा। परंतु मैं या मेरा बच्चा आप सब में से किसी के साथ नहीं जा सकते। अब मुझे मेरे हाल पर छोड़ दीजिए। मेरे हिस्से का संघर्ष है मुझे ही करना होगा। "बोलकर माही ने हाथ जोड़ लिया।
सास ससुर से लेकर मां बाप भी माही की बात सुनकर चुप रह गए। परंतु सोचने को मजबूर हो गए कि सच में यह कोई अपराध तो नहीं था। बस बच्चों ने अपनी पसंद बताई, अपने पसंद के संग जीवन बताने की बात कही। उन्होंने क्यों स्वीकार नहीं किया? जब बच्चे को पढ़ाई लिखाई के साथ कैरियर चुनने का भी अधिकार दिया तो जीवन साथी ने का अधिकार क्यों नहीं दिया? माही की कही एक एक बात चारो के दिमाग पर हथौड़े की तरह चोट करने लगी। वे अगर और कुछ देर रुकते तो शायद दिमाग फट जाता। सबने माही और बच्चों के सिर पर हाथ फेरा और भारी मन से विदा हो गए।
राहुल - (कहानी) तुझ में रब दिखता है।
माही - (कहानी)-बंधन एहसासों का
सुगंधा -(कहानी)-बिन फेरे हम तेरे
कथानक - सातों जन्म मैं तेरे साथ रहूंगा