रंग बद्दुआओं का
रंग बद्दुआओं का
रात के 8:00 बजे से ही शारदा जी डाइनिंग टेबल पर बेटी मीरा के आने कि इंतजार कर रही थी। और अब 11:00 बजने को आ गया था, पर अब तक बेटी मीरा का कोई अता पता नहीं था। उन्होंने कई बार फोन ट्राई किया पर उसका फोन भी नहीं लग रहा था। बाहर आंधी तूफान के साथ बहुत तेज बारिश हो रही थी। यह देख शारदा जी की चिंता बढ़ गई।
"हे भगवान कहां रह गई मेरी बच्ची ? कहीं किसी मुसीबत में तो नहीं फंस गई ? सोचते ही मन तरह-तरह की आशंकाओं से भर गया।
वह तुरंत जाकर ईश्वर के आगे हाथ जोड़ लिया। हे प्रभु! मेरी बच्ची का ख्याल रखना। उसे सही सलामत घर पहुंचा देना। प्रार्थना करते-करते उनकी आंखों से आंसूओं की धार बह निकली।
मीरा डॉक्टर थी और मुंबई के एक बड़े हॉस्पिटल में इंटर्नशिप कर रही थी। यूं तो हर रोज लगभग 10:00 बजे के आसपास घर आती थी। परंतु आज रविवार है और आज के दिन वह गरीब बस्ती में फ्री में इलाज करने जाती थी। वो रात के 8:00 बजे तक घर आ जाती थी। पर आज नहीं आई । अगर कभी देर हो जाती थी तो फोन कर बता देती थी कि आने में समय लगेगा। पर आज तो ना उसने कुछ कहा और ना ही कोई फोन आया।
शारदा जी पूजा रूम से निकलकर एक बार फिर खिड़की से बाहर देखने लगी। परंतु बाहर तेज़ बारिश की वजह से कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। उनकी घबराहट बढ़ती जा रही थी। उन्होंने एक बार फिर नंबर ट्राई किया। और इस बार भी नहीं लगा। तब उन्होंने खुद को तसल्ली दी। आज बहुत तेज बारिश हो रही है। हो सकता है इसी वजह से कहीं अटक गई होगी। फिर भी इतना समय कहां लग गया ? सोच कर उनकी धड़कनें तेज हो गई, बुरे ख्याल मन से जा नहीं रहे थे। वह ध्यान बंटाने के लिए कमरे में ही इधर से उधर चलने लगी। तभी दरवाजे पर नाॅक हुआ। दरवाजा खोला तो सामने मीरा थी।
मां कुछ बोलती उससे पहले ही मीरा ने तुरंत उन्हें हग कर लिया।
मां की बढ़ी हुई धड़कने, उनकी घबराहट देखकर मीरा को समझते देर नहीं लगी।
मां से अलग होते हुए कहा, "आप क्यों इतना घबरा रही हैं ? मैं ठीक हूं।" बोलते हुए मीरा अंदर आई और सोफा पर अपना बैग रख। रेनकोट उतारने लगी।
" कहां रह गई थी अब तक ? इतनी देर क्यों हुई" ? शारदा जी ने जरा गुस्से में कहा।
मीरा अभी कुछ बोलती उससे पहले ही शारदा जी ने एक बार फिर कहा।
"देखो मैं फिर कहती हूं। अब रविवार को काम करना बंद कर दो। घर पर ही रहो मेरे साथ, मेरे लिए भी थोड़ा समय निकालो। मैं भी अकेले परेशान हो जाती हूं।"
"मां आप इतना क्यों नाराज हो रही है ? आज देर हुई पर किस लिए हुई यह भी तो सुनो। और मैं यह काम क्यों छोड़ दूं ? आप जानती हैं ना मुझे अच्छा लगता है। बस्ती में जाना, उन्हें देखना। इससे मुझे कितना सुकून मिलता है, खुशी मिलती है।"
"हां जानती हूं पर अब कोई जरूरत नहीं है। मैं तो कहती हूं छोड़ दो लोगों की सेवा करना और यह पुण्य कमाना । कुछ नहीं होता इन सबसे। बाहर लोगों की सेवा करो और घर में मां अकेली पड़ी है यह तुम्हें अच्छा लगता है ?"
"मम्मी, बस ना! क्यों इतना नाराज हो रही हो अब आगे से नहीं होगी। और आज भी देर नहीं होती। अगर..!"
"मैं ऐसे कैसे यकीन करूं कि आगे से देर नहीं होगी ? क्यों यकीन करूं तुम पर ?"
"मां, जब आप मेरी बात सुनेंगी तो आपको तुरंत यकीन हो जाएगा। फिर मुझे कुछ कहने की जरूरत नहीं होगी। और आप खुद बोलेंगी । बेटा तू बहुत अच्छा काम कर रही है और मुझे घर पर बैठने के लिए बिल्कुल नहीं कहेंगी ।"
सुनकर शारदा जी चुप रह गई।
"मैं फ्रेश होकर आती हूं फिर बताती हूं।" बोलकर मुरा फ्रेश होने चली गई।
शारदा जी को भी बेटी पर पूरा भरोसा था तो वह अब सामान्य रही।
मीरा थाली लगाते हुए- "पता है आज शाम को जैसे ही बादल घिरने लगे। मैं तुरंत वहां से निकल गई। अभी कुछ ही दूर निकली थी कि तेज बारिश होने लगी। खाली सड़क पर मैं कार तेजी से भगा रही थी। तभी अचानक सामने एक बुढ़ी औरत मेरे कार के सामने आ गई।
पहले तो मुझे ऐसा लगा कि शायद वह कार के नीचे आ गई। फिर जब मैं बाहर आकर देखा तो वह नीचे गिरी थी और बेहोश हो चुकी थी। मैंने उन्हें मोबाइल की लाइट में देखा। उन्हें कहीं चोट तो नहीं आई थी। पर शायद डर के मारे वह बेहोश हो चुकी थी। कुछ देर तक जब उन्हें होश नहीं आया तो मैंने तुरंत उसे कार में बिठाया और पास के हॉस्पिटल में ले गई।"
"तो क्या हुआ होश आया उन्हें ?"
"हां मां, उन्हें होश तो आया पर वो अभी भी कुछ बताने की स्थिति में नहीं है।"
"जब चोट नहीं लगी तो फिर अचानक ऐसी हालत कैसे हो गई।"
" मां क्योंकि वह बहुत बुजुर्ग और कमजोर है। और सबसे बड़ी बात की उन्होंने पिछले कई दिनों से कुछ नहीं खाया है। मैंने ही उनका इलाज किया उनके पेट में अन्न का एक दाना तक नहीं था।"
"यह तू क्या बोल रही है बेटा ?"
"जो देखा वही बोल रही हूं और सच बोल रही हूं मां।"
आखिर कौन है वह बुढ़ी औरत ? कहां से आई है ? जानेंगे अगले भाग में।
क्रमशः
