रंग बद्दुआओं का-2
रंग बद्दुआओं का-2
"यह तुम क्या बोल रही हो बेटा? मां ने खाना परोसते हुए पूछा।
'जो देखा वही बोल रही हूं मां, और सच बोल रही हूं। अब कल जाकर देखती हूं उनकी तबीयत कैसी है? अगर सुधार नहीं रहा तो उन्हें लेकर अपने हॉस्पिटल में एडमिट कर दूंगी।"
"ठीक है बेटा, और हां उनसे पूछ लेना कौन ,है कहां रहती है फिर उन्हें सही सलामत घर भी छोड़ देना।"
"ऑफकोर्स उन्हें सही सलामत उनके घर पहुंचा दूंगी मां।" मीरा ने एक बाइट अपने मुंह में लेते हुए कहा।
एक पल के लिए चुप्पी छा गई । दोनों मां बेटी चुपचाप खाने लगी खाते-खाते शारदा जी कुछ सोच रही थी।
"क्या हुआ मां ?आप क्या सोच रही हो? यही कि आखिर कौन होगी वह महिला जो इस बारिश की रात में बेतहाशा सड़क पर भाग रही थी। और सबसे बड़ी बात ये कि कई दिनों से उनके पेट में अन्न का एक दाना नहीं था, कौन है वह, कहां से आई होगी?"
"तू डॉक्टर है या माइंड रीडर?"
"यूं तो मैं सिर्फ एक डॉक्टर हूं लेकिन आपके केस में मैं दोनों हूं। हर चीज आप बहुत ज्यादा सोचने लगती हो, इसीलिए आपको कुछ बताने का मन नहीं करता। अब कल उन्हें होश आ जाएगा तो पूछ लूंगी ना और जहां उनका ठिकाना होगा वहां पहुंच भी दूंगी अब शांत रहिए।"
मां फिर कुछ बोलने लगी। तब मीरा ने चुप करा दिया।
" बस मां , अब टॉपिक चेंज करते हैं। अभी-अभी आपने कहा कि हम दोनों को साथ में थोड़ा समय बिताना चाहिए और अभी आप एक ही बात को पकड़ कर बैठी हैं। इतनी रात गए आई हूं। आपने एक बार भी मेरे या मेरे काम के बारे में नहीं पूछा। कैसा रहा मेरा दिन? कैसे थे आज के पेशेंट?"
"अरे मेरी बच्ची, वह सब तो मैं तुमसे रोज बातें करती हूं और यह तो रोज की टॉपिक। लेकिन आज तुमने जो कुछ कहा वह अलग और सोचने वाली बात है। बस इसलिए सोचने लगी।"
"ठीक है अब आप ज्यादा मत सोचो बारिश बहुत हो रही है आपको सर्दी जुकाम बहुत जल्दी लगती है। तो मैं हल्दी वाला दूध बनाती हूं। हम दोनों साथ में पियेंगे।"
"बेटा, तू जानती है ना, मुझे हल्दी वाला दूध पसंद नहीं! तो तू पी लेना मैं सादा दूध ही पी लेती हूं ना!"
"मां , आपने जितने देर में यह सब कहा उतनी देर के लिए मैं बहरी हो गई थी। तो मैंने कुछ नहीं सुना। हां, इससे पहले मैंने क्या कहा? वह मुझे बराबर याद है ,तो मैंने जो कहा आप करेंगी।"
"तू मेरी बेटी है। तुम्हें मेरी बातें माननी चाहिए पर हर वक्त अपना रूल चलाती है मेरे ऊपर। और मुझे तुम्हारी बात माननी ही पड़ती है।"
"क्योंकि और कोई ऑप्शन नहीं है मां , तो माननी पड़ेगी।"
दोनों मां बेटी बहस कर रही थी कि तभी मीरा का फोन बजा।
"लो बात करो। आ गया आपकी लाडली बेटी का फोन। अब मुझसे ज्यादा अपनी बड़ी बेटी से नसीहतें सुनो।"
'अरे पहले ही तू बड़बड़ करने लगी फोन तो उठा।"
"हां बोलो दी!"
"अरे मैं क्या बोल रही हूं..?" बहन संजना अभी अपनी बात पूरी करती उससे पहले ही मीरा ने कहा।
"यही कि बारिश बहुत हो रही है। मां को जल्दी सर्दी लगती है, उनका ख्याल रखना। हल्दी दूध देती रहना, दवाई समय पर देना। वरना अपने मन से कभी लेंगी नहीं। यही बोलने वाली थी ना आप।"
बहन हंसने लगी।
"अरे ,मैं तो भूल ही जाती हूं कि मेरी बहन डॉक्टर है उसे कुछ भी बताने की जरूरत नहीं।"
"दी, मैं तो सोच रही कुछ मेडिसिन आपके लिए भी लिख दूं।"
"कौन सी मेडिसिन और किसलिए बहन? मैं तो पूरी तरह ठीक हूं।"
"अरे दी याददाश्त बढ़ाने वाली। दिन पर दिन आपकी याददाश्त कमजोर होती जा रही है ना इसके लिए।"
"अच्छा तो तुम मुझे भुलक्कड़ बोल रही हो। शुक्र है बहन की तू सामने नहीं है। नहीं तो अच्छी खासी पिट जाती।"
"वैसे ही जैसे बचपन में पीट देती थी।"
"उससे भी खतरनाक।"
"चलो चुप करो! अब मैं वह छोटी बच्ची नहीं रही कि आपसे पिट जाऊंगी।"
बोल कर दोनों बहने हंसने लगी।
" अच्छा लो मां से बात करो।"
"हां बोल बेटा!" शारदा जी ने कहा।
"मां, अपना ख्याल रखिएगा।"
"अरे मैं ठीक हूं बेटा और तेरी बहन जो है मुझे कुछ होने देगी। तू बता कैसी है? घर में सब कैसे हैं, बच्चे दामाद जी?"
"हां मां , सब ठीक है और आपको भी ठीक रहना ही होगा। आपके अलावा और हम बहनों का दुनिया में है ही कौन ।"
"अरे मुझे कुछ नहीं होगा। ठीक है अभी रात हो गई फोन रखो मीरा को कल सुबह हॉस्पिटल भी जाना है।"
"हां मां!" बोलकर दोनों ने फोन रख दिया।
इधर मीरा तब तक दो गिलास हल्दी वाला दूध बनाकर ले आई। एक खुद लिए और एक मां की तरफ बढ़ा दिया। दोनों दूध पीते हुए 5-10 मिनट टीवी देखा फिर अपने कमरे में सोने चली गई।
सोते-सोते शारदा जी ने एक बार फिर कहा बेटा कल जैसे ही बूढ़ी अम्मा को होश आए तो उनका नाम पता पूछना। मैं तो कहती हूं कल मैं भी तुम्हारे साथ चलती हूं ना देख लूंगी उन्हें।
"मां ,मुझे लगता है आपको बता कर मैंने गलती कर दी मुझे समझ में नहीं आता आप इतना इमोशनल क्यों हो रही हो? अरे मैंने कहा ना जैसे उनको होश आएगा, मैं उनसे पूछकर वहां उनको सही सलामत छोड़ दूंगी। आपको मुझ पर यकीन नहीं हो रहा क्या? अगर ऐसा रहता तो मैं हॉस्पिटल लेकर जाती ही नहीं। अब चुपचाप सो जाओ पूरी दुनिया के बारे में सोचने के लिए यही बैठी है। अबकी बार मीरा ने कहा तो शारदा जी ब्लैंकेट ओढ़कर चुपचाप सो गई। बाहर अभी भी खूब तेज बारिश हो रही थी।
मीरा अपने फोन में व्यस्त हो गई । इधर शारदा जी कंबल के नीचे सोने की कोशिश तो कर रही थी पर दिमाग में वह बूढ़ी अम्मा ही घूम रही थी। और सबसे बड़ी बात की उनके दिमाग में बार बार एक ही बात आ रही थी कि पिछले कई दिनों से उनके पेट में उनका एक दाना भी नहीं था यह बात उन्हें बार-बार कचोट रही थी।
हे प्रभु जो भी है उसे अपने परिवार से अपनों से मिला देना। शारदा जी ने मन ही मन भगवान से प्रार्थना करते हुए नींद के आगोश में समा गई।
क्रमशः