Ratna Sahu

Inspirational

4.5  

Ratna Sahu

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त्यौहार का आनंद

त्यौहार का आनंद

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"भाभी मत जाओ ना! मत जाओ ना भाभी!! प्लीज, हमें आपके साथ होली खेलना है। क्या आपको हमारे साथ होली नहीं खेलना? प्रीति के सभी देवर और ननद बारी-बारी आकर बोल रहे थे।"


"आप सबके साथ होली खेलने का मेरा मन भी बहुत है पर क्या करें? मैं यहां नहीं रुक सकती। लेकिन कोई बात नहीं, अगली बार हम सब मिलकर जरूर होली खेलेंगे और खूब सारी मस्ती भी करेंगे।" प्रीति ने कहा।


"पर इस बार क्यों नहीं?" सभी ने फिर से कहा।


तभी प्रीति के सास सुजाता जी ने कहा, "देखो बच्चों, भाभी सही कह रही है इस साल नहीं अगले साल तुम लोग होली खेलना भाभी के साथ।"


प्रीति की नई-नई शादी हुई है। उसके ससुराल में बहु की पहली होलिका दहन और होली मायके में मनाने का रिवाज है। इसलिए वह मायके जा रही है। प्रीति की सास तीन जेठानी देवरानी है। उन सबमें यह पहली बहू है और सब बच्चों की पहली भाभी।जिससे सभी, भाभी के साथ होली खेलने के लिए बहुत उत्साहित हैं। जाने का मन तो प्रीति का भी नहीं हो रहा लेकिन वह सास की बात को टालना भी नहीं चाहती है।


सुजाता जी की बात सुनकर सबका मुंह उतर गया। तभी प्रीति ने कहा, "मेरे पास एक आईडिया है। मैं यहां होली नहीं मना सकती लेकिन आपलोग तो मेरे मायके में होली मना सकते हैं। तो आप सब अपने भैया के साथ होली के दिन मेरे घर आ जाना वहां हम लोग होली खेलेंगे। वैसे भी मेरा मायका तो पास में ही है।"


सबने हंसते हुए कहा, "हां भाभी! आपने बिल्कुल सही कहा। हम लोग ही आ जाएंगे आपके घर।"


बच्चों का उत्साह देखकर सुजाता जी भी इस बात को टाल ना सकी।


होली के एक दिन पहले ही सभी बच्चे अपने भाई के साथ भाभी के घर आ गए।


अगले दिन सब ने मालपुए और गुझिया खाकर होली खेलना शुरू किया। कुछ देर बाद प्रीति के एक देवर ने कहा, "भाभी! आप अकेली हो। मेरा मतलब आपकी कोई बहन नहीं है। हम लोग तो यही सोच कर आए थे कि भाभी की बहन होगी तो उनके साथ होली खेलेंगे।"


तभी प्रीति का पति अमर ने कहा, "हां, तुम अकेली हो और कोई नहीं है।"


प्रीति ने कहा, "मैं यहां सबसे छोटी हूं। मेरी बहन की शादी हो चुकी है और वो ससुराल में है। हां, मेरी एक भाभी है पर वो नहीं खेलेंगी।"


"लेकिन क्यों नहीं खेलेंगी? क्या उनको होली खेलना पसंद नहीं? एक बार बुलाओ शायद खेल ले। इसी बहाने मेरी भी जान पहचान हो जाएगी और मुझे पता भी चल जाएगा कि कौन-कौन है मेरे ससुराल में।" अमर ने कहा।


"वो क्या है कि भाभी बड़ी मम्मी की बहू है। बड़ी मम्मी और मेरी मम्मी में अक्सर छोटी-छोटी बातों को लेकर कहासुनी हो जाती है इस वजह से दोनों में ज्यादा बातचीत नहीं रहती। पिछले साल होली के दिन ही मम्मी और बड़ी मम्मी में बहुत झगड़ा हो गया था दादी के गहने को लेकर। इसलिए पिछली बार भी हम लोग होली नहीं खेले थे और तब से हम सभी में कम ही बातचीत होती है। मुझे नहीं लगता कि बुलाने पर भी भाभी आएंगी।" प्रीति ने कहा।


"अरे! एक बार बोल कर तो देखो शायद मान जाए।"


"ठीक है जाती हूं।" इतना बोल कर प्रीति भाभी को बुलाने गई होली खेलने के लिए। भाभी तो खुशी-खुशी तैयार हो गई पर बड़ी मम्मी ने कहा, "नहीं बेटा! वह होली नहीं खेलती। रंग से एलर्जी है उसे। तबीयत खराब हो जाती है।"


प्रीति समझ गई कि बड़ी मम्मी नहीं चाहती है कि भाभी होली खेले हमारे साथ।


प्रीति आकर अमर को सारी बातें बताई तब अमर ने कहा, "एक थाली में मिठाई और गुलाल दो मैं जाता हूं।"


प्रीति की मां ने दामाद को रोकना चाहा पर प्रीति ने मना कर दिया।


अमर बड़ी मम्मी के घर गया और उनके चरणों में गुलाल रखकर आशीर्वाद लिया। बड़ी मम्मी ने कहा, "आइए दामाद जी बैठिए।"

भाभी झट से एक गिलास पानी ले आई।


अमर पानी पीते हुए कहा, "बड़ी मम्मी, भाभी होली नहीं खेलती क्या? उन्हें पसंद नहीं खेलना?"


"नहीं दामाद जी! वह क्या है कि.....! बड़ी मम्मी अपनी बात पूरी करती उससे पहले अमर ने कहा,

"मम्मी अगर भाभी को रंगों से एलर्जी है, तबीयत खराब हो जाती है तो हम बस उन्हें टीका लगाएंगे। बस आप उन्हें हमारे साथ होली खेलने की अनुमति दे दीजिए।"


अमर की बात सुन दोनों सास-बहू एक दूसरे का मुंह देखने लगी।


अमर ने फिर कहा, "मम्मी! आप क्या सोच रही हैं? देखिए मैं आपके पारिवारिक मामलों में दखलंदाजी नहीं करने आया हूं। मैं तो बस यह कहने आया था कि होली साल में एक बार आती है। वैसे भी सब कहते हैं कि इस त्यौहार में आपसी वैर भावना, राग द्वेष मिटाकर एक दूसरे के गले मिलना चाहिए और होली खेलना चाहिए। तो क्या हम पिछली बातें नहीं भूल सकते? आप दोनों जेठानी- देवरानी के मामलों में हम बच्चों की क्या गलती जो हम मिलकर त्यौहार भी ना मना सकें। आखिर होली का असली आनंद अपनों के साथ है ना।"


बड़ी मम्मी कुछ देर चुप रही फिर बोली, "दामाद जी, आप बिल्कुल सही कह रहे हैं। इसमें बच्चों की कोई गलती नहीं। बहू! तुम जाओ सब के साथ मिलकर होली खेलो।"


पीछे से प्रीति की मां भी दामाद की सारी बातें सुन रही थी। वह आगे आकर बोली, "दीदी! सिर्फ बच्चे ही क्यों, हम दोनों क्यों नहीं? चलिए हम दोनों भी होली खेलते हैं। देखिए हम पुरानी बातें भूल जाते हैं।हम दोनों में से किसी की भी गलती हो लेकिन मैं छोटी हूं तो मैं आपसे माफी मांगती हूं। पुरानी बातें भूल जाइए और चलिए आज मिलकर खूब होली खेलते हैं और मस्ती करते हैं। दामाद जी बिल्कुल सही कह रहे हैं होली का असली आनंद तो अपनों के साथ ही है।"


फिर दोनों जेठानी देवरानी एक दूसरे के गले लगकर होली खेलने चल पड़ी।



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