रिश्तों की पोटली
रिश्तों की पोटली
"सन् 2016 की बात है।
"मैं 12 वीं कक्षा में था और हमेशा से ही विद्यालय में अव्वल रहता था तो रोब कुछ अलग ही था ।"
और कभी प्यार व्यार का चक्र था नहीं और हमेशा से ही बिना दाग के ही था तो काफी इज्जत भी थी ।
और मुझे प्यार व्यार अच्छा भी नहीं लगता था।
जब मैं
12 वीं था तो एक लड़की आई जो 9वीं में थी ।
उसका हिचकोले लेता बदन और तपती धूप में चमकता पसीने का रेला।
उबलती जवानी जोश में आकर्षित होना लाजमी था और वो भी कुछ ज्यादा ही बात करने लगी और में भी उसके दीदार में पागल हो रहा था ।
हमारा प्यार का चक्र रफ्ता रफ्ता बढ़ने लगा और मेरा स्टेटस गिरने लगा
मुझे बस वो ही नजर आने लगी और हमारे चर्चे पूरे विद्यालय में हो गए।
' एक दिन दोपहर में विद्यालय में ही हम दोनों एक दूसरे की बाहों में सोए हुए थे "
वो घुटनों के बल बैठी थी और मैं उसकी गोद को आशियाना बनाकर सोया था ।'
हमारे विद्यालय के प्रधानाचार्य ने हमें देख लिया और पिटाई कर दी और घरवालों को बुलाकर काफी झड़प लगाई ।
हम शर्मिंदा थे कि अब तो हमनें गांव में इज्जत का जनाजा ही निकाल दिया
पापा की आंखों में आंसू थे और मेरी आंखो में शर्म का पानी ।
उसके पापा की आंखो में भी आंसू थे और उसकी आंखो में शर्म का पानी।
हमने सोचा कि अब तो गांव में तानो कि आवाज़ हमें जीने नहीं देगी ।
दोनों के पापा घर जा चुके थे
शाम को ही हमारे
परिवार में कुछ झगड़ा हो गया।
पापा थोड़े शराबी है , कभी कभार तो अधिक ही पी लेते है ।
पापा ने शराब पी रखी थी , और गाली गल्लोच कर रहे थे ।
में कसूरवार था तो बोल नहीं सकता था ।
मैं हमेशा
से ही गांव में प्रतिभावान विद्यार्थियों की श्रेणी में आता था तो जान पहचान भी अधिक थी।
सुबह जब विद्यालय के लिए निकला तो घर से निकलने पर हर कोई पूछता रात की
" क्या हुआ "
"क्यों हुआ "
पापा ने भी गुस्से में घर से निकाल दिया।
में अपसेट होकर घर से निकल गया और उसे लेकर साथ लेकर कहीं दूर जाने की सोची और निकल गया।
जाहिर है कि अकेलेपन में अपने याद आएंगे ही कुछ भी याद आता तो में जल्दी ही इग्नोर कर देता और खुद को सम्भाल लेता ।
लेकिन वो तो मुझे सोने ही नहीं दे रही थी।
अब करे भी तो क्या करें जिन्होंने घर से निकाला दोनों को वो ही याद आ रहे थे।
मैं ज्यादातर फूठपथ पर ही सो जाता था फिर एक दिन
मेंने मेरे गुमशुदा होने की खबर देखी थी लेकिन पता नहीं
क्यों दिल नहीं मानता कि घर चला जाऊँ।
हम हिम्मत करके गांव तो आ गया लेकिन घर जाने की हिम्मत नहीं हो रही थी।
मैं
खुदकुशी के चकर में दूर जा रहा था पीछे कुछ सुनाई दिया , देखा तो पापा दौड़ कर आ रहे थे ।
और एकदम पास आकर कहा
" बेटा मुझे तुम चाहिए , चाहे कितनी भी जिल्लत सहनी पड़े मुझे कोई फर्क नही पड़ता।"
"
इतने दिनों बाद में जब घर लौटा तो देखा कि मम्मी रो रही थी पापा भी रो रहे थे।
मेरे दोनों भाई भी रो रहे थे लोग दीवारों से फांदकर देख रहे थे ।
आज तक में रिश्तों को हमेशा गलीच समझा लेकिन आज पता चला कि आपके बिना अपनों का अधूरापन क्या होता है।
उसके बाद मैने कभी भी कोई भी बात मम्मी पापा बगैर नहीं कि और रब से दुआ है कि ये रिश्तों की पोटली हमेशा इसी तरह बंधी रहे।
जिस गांव में प्यार करना एक मृत्युदंड जितना खतरनाक पाप है और जिस गांव में पापा को मेरी वजह से को जिल्लत सहनी पड़ी।
पापा को सब मंजूर है लेकिन बिखरे रिश्तों की डोर नहीं और शायद पापा इसीलिए मुझे मुझे इतना प्यार करते है।
मैं कभी अपने पापा से कह नहीं पाया लेकिन मेरा दिल हमेशा धड़ककर कहता है।
" पापा मैं आपसे बहुत प्यार करता हूं"।