रिश्ते की पहचान .............
रिश्ते की पहचान .............
रमेश अपने कमरे का खिडकी पास बैठे बाहार हो रही बारिश को देख रहे थे .उनकी आँखों से भी आंसुओं का बारिस हो रहा था .जीबन की सफर में उनको लग रहा था जैसे आज वो तूट चुके हैं . अब उनको ६० साल हो गया ,और कितने संघर्ष करेंगे ?वो एक माध्यम बर्ग परिबार मसे हैं .उनकी पिता एक बहुत ईमानदार सरकारी अधिकारी थे और माता गृहिणी थे .उनकी ५ बहने और एक भाई है .बचपन में उनके पिता माता बहुत लाड प्यार में सबको पाले थे और अछि सिख्या भी दिए थे .अभी भी रमेश को याद है उनकी पिता राजकुमार जी के बात .वो हर समाया बोलै करते थे की सचाई के रास्ते बड़े कठिन होते पर उसमे चलते रहना ,बड़ा सुकून मिलेगा .अभीतक रमेश उनकी कहा हुए रास्ते में चल रहे हैं.उनकी माता सुमित्रा देवी सभी मदत करना सिखाये थे .रमेश को याद है उनकी माता सुमित्रा देवी कभी सानो सौकत की जिंदगी नहीं जिए . उन्होंने अपनी परिबार को सँभालने के साथ साथ जरूरतमंद लोगों का भी मदत करते थे .रमेश के सभी भाई बहने अब बहुत अच्छे से अपने अपने जिंदगी गुजर रहे हैं .सबकी शादी हो चूकी है .रमेश के भी शादी आज से ३५ साल पहले हुआ था .रमेश एक निजी संस्था में अछि नौकरी करते थे .उनकी शादी के २ साल बाद एक लड़का पैदा हुआ और उनकी माता पिता खुसीसे नाच उठे थे .बड़े पीयर से पोते का नामकरण भी किये खूब धूम धाम से .रमेश अपनी काम में सफलता हासिल करते गए .बहुत बड़े बड़े सहर में उनको काम करने का मौका भी मिला .देखते देखते ३ साल के बाद रमेश को एक लड़की के पिता होने का सौभाग्य हासिल हुआ . तब उनकी माता सुमित्रा देवी बड़ी प्यार से उसकी नाम कारन किये . रमेश दोनों बच्चों को सिखा देने का सारी कोशिश किये और दिए भी .
रमेश के जिंदगी का इस सफर में एक बड़ा परिख्या की घडी तब आया जब उनका बेटे का इंजीनियरिंग के सेष बर्ष में उनकी माता सुमित्रा देवी की निधन हो गया .रमेश के लिए ये बहुत बड़ा सदमा था .कैसे भी कर के उसको झेल रहे थे ,उसके ५ महीने के बाद उनका पत्नी साबित्री की निधन हो गया .तब उनका बेटी १२ कख्या में थी ,उनका लड़का का फाइनल परीक्षा चल रहा था .कुछ दिन के लिए रमेश कुछ सॉसः नहीं पा रहे थे की क्या करेंगे .धीरे धीरे वो अपने आप को संभाले और बच्चों के लिए सोचने लगे .लड़का इंजीनियरिंग के बाद नौकरी करने लगा .लड़िको भी रमेश इंजीनियरिंग पढ़ने लगे .४ साल के बाद वो भी नौकरी करने लगी .दोनों का नौकरी लगने से रमेश को ख़ुशी मिला पर वो अपने काम करते रहे थे .दोनों बच्चों की कमाई में उनको कुछ लगाओ नहीं था .कभी वो लोग कुछ उनको लाकर तोफे में देते थे तो ठीक था नहीं तो नहीं .रमेश अपनी खुद का देखभाल खुद करते थे .उनको लगने लगा था की थोड़ी सुकून की जिंदगी जी लेंगे ,पर उपरवाले को कुछ और मंजूर था .अचानक बेटे का ब्रेन स्ट्रोक हुआ और पैरालेसिस हो गया .रमेश के लिए बड़ा संकट का घडी था .अपनी सारे जमा पूंजी को लगाके बेटे को ठीक करते करते ६ महीने लग गए .रमेश अपनी नौकरी को छोड़ने के लिए मजबूर हुए ,पर उनके काम काज को जानते हुए उनको कुछ सलहाकार के रूप में काम करने का मौका मिला .अपनी सारे तजुर्बे के सात वो उस काम पे लगे रहे .जिंदगी का गाडी थोड़ा पटरी में आने ही लगा था २ साल बाद उनके पिता रामकुमार जी का एक ऑपरेशन हुआ और उसी समय उनकी बेटी अचानक बीमार पड़के कोमा में चली गयी .दोनों उनके पिता और बेटी एक हॉस्पिटल में भर्ती हुए थे .फिर वहां उनका पिता के निधन हो गया ,बेटी आई सी यू में थी .तब भी रमेश अपने आप को संभाले .पिताजी के सारे क्रिया कर्म किये .अपनी बेटी की पूरा जी जान देकर इलाज किये और ४५ दिन के बाद वो थोड़ा ठीक हुई .उनके मन में आशा की किरण झलकने लगा .बेटी की बहुत ख्याल रखे और धीरे धीरे वो ठीक होने लगी .तब तक रमेश अपने सब धन सम्पति खो चुके थे .अपने दोनों बचूं को वो अब बोले की अभी वो लोग प्रयास करके खुद के लिए अच्छा नौकरी देख ले .कियूं की अब रमेश को ६० साल हो गया है ,कब क्या होगा कुछ पता नहीं .उनकी बार बार बोलने का भी कुछ असर नहीं हुआ ,उल्टा उनको कुछ कड़वे सब्द उनसे सुननेको मिला .
ये सब सुनने के बाद अब रमेश को बहुत तक़लीफ़ हुई .वो कुछ टूट गए है .अब तो वो घंटो बैठ के सारे रिस्तो को पहचान ने की कोशिश कर रहे है .सारे रिश्ते को एक के बाद एक समझने की कोशिश कर रहे है .उनको जब कुछ समझ में आया की इस दुनिया में कोई किसी का नहीं और इंसान अकेला आया है और अकेला जायेगा ,तब वो रिश्ते का पहचान ढूंढें का प्रयास छोड़ दिए .अपने आप को अकेले अब महसूस करते है .आज से १७ साल पहेले उनकी माँ और पत्नी उनको छोड़ के चले गए थे ,तब से आज तक अकेले थे पर बच्चों को बड़ा करने और उनकी सेहत का ध्यान रखते रखते समय नहीं मिलता था अकेलापन को महसूस करने की .पर आज उनको वो महसूस हुआ और बाहार बारिश की पानी के साथ उनकी आँखों से भी आंसुओं की बारिश हो रही है. ....
