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Twinckle Adwani

Abstract Inspirational Children

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Twinckle Adwani

Abstract Inspirational Children

रेगिस्तान में सावन

रेगिस्तान में सावन

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महिला दिवस में कई सम्मान समारोह में जाकर थक चुकी थी घर पहुंच कर गर्म चाय के संग आराम से बैठे, बस अब मैं और नहीं ...आज मेरा दिन है खुद को प्यार करना खुश रखना ज्यादा जरूरी है चुस्की लेते सोच रही थी थकान में मगर बैठते ही अपने अतीत में डूब गई

 कई बार लोग हमारे जीवन का मजाक उड़ाते थे,पापा ने कभी अपने पराएं का फर्क नहीं किया हां संतोष था,उन्हे जीवन में दाल रोटी का, मगर मेरी उम्मीदें मेरे सपने बड़े थे ।

हमें ज्यादा पढ़ना था चार लोगों के बीच कभी कपड़ों से तो कभी गाड़ी से परखा जाता है मगर में पढ़ाई में बहुत होशियार थी मेरा एक बहुत अच्छे कॉलेज में एडमिशन नंबरों के आधार पर हुआ कॉलेज में ऊंचे मोबाइल बड़ी-बड़ी गाड़ियां लोग लाते थे । लड़कियां डिजाइनर ब्रांडेड कपड़े पहनती थी । मगर मेरे पास कपड़ों के नाम पर केवल सूट होते हैं वह भी चुन्नी वाले ढाई मीटर जब कहीं घूमने की बात होती तो हमेशा मना करती, पढ़ाई का बहाना करती क्योंकि ना मेरे पास इतना खर्च के पैसे होते न उतने अच्छे कपड़े

 चाचा जी की बेटी ने भी कॉलेज में एडमिशन लिया और मेरा दाखिला मेरे अच्छे नंबरों के कारण हुआ और उसका रिश्वत के कारण,चाचा जी ने रिशवत से ही कई बंगले गाड़ियां गहने बनाएं कभी-कभी तो दिल करता है........खैर मां कहती है रिश्वत माने किसी की दुख तकलीफ आहा बद्दुआ को घर लाना कभी बीमारी के रूप में आती तो कभी .......

वक्त बढ़ता गया मेरी शादी एक सीधे साधे इंसान से हूई, जिसके सपने मेरी तुलना में कम ही थे और परिवार हमारी तरह मानो मान मर्यादा के कारण दब के रह गया 

 शादी से पहले ही मेरी नौकरी लग चुकी थी नौकरी से पहले पिता जी को काम में मदद करती है उनकी किराने की छोटी सी दुकान इसमें दूध दही आइसक्रीम आलू प्याज और सारी चॉकलेट और क ई सामान होते थे ।पिताजी छोटे-छोटे सामानों को बेचते ,छोटी मोटी आमदनी से ही हमारा घर चलता कभी बड़ी सपने ही नहीं देखे ,न लालच न चाहत

 चाचा जी अपने सरकारी नौकरी के अलावा अन्य काम करके भी खूब पैसे कमा लेते हैं कभी जमीन जायदाद ,तो कभी किसी का रिश्ता करवाते, आमदनी कहां से कैसे लानी है , बखूबी जानते ... इसलिए उनकी इज्जत भी ज्यादा थी घर मे , पिता की मदद करने कभी दुकान में बैठती तो पता चलता बड़े-बड़े पैसे वाले ₹50 उधार रखवाते हैं और हमे गरीब हैं कहते हैं.... ...पडोसी चिल्लहर के बहाने आते ......घंटो चोपाल लगाते.... कभी दादिया रोते बच्चों को लाती उन्हें चाकलेट उठाकर ले जाती ,उन्हें चुप कराती मगर पैसे.... पैसे क्यों नहीं दे जाती थी..... जाने कौन सी रिश्तेदारी है ..... पिता कुछ कहते हैं ना मुझे कहने देते ... गुस्से के मारे घर चली जाती ,घर आकर मां को कहती, मेरी शिक्षा के लिए जब पैसे की जरूरत थी तो क्या कहा था ......हैसियत नहीं तो बेटी को मत फिर रोज चॉकलेट लेने क्यों आती है फ्रि के.... ऐसे कई छोटी-छोटी बातें होती थी । जिसके कारण कई बार मां पर नाराज होती थी।

पिताजी की बीमारी के कारण जल्दी हमें छोड़ कर चले गए उनके इलाज में मां ने पूरा सोना बेच दिया चाचा ने मदद तो की मगर उन्हें बचा न सके, मैं हमेशा डॉक्टर बनने की चाहत रखती थी । मैं जानती थी गांव में कोई अच्छा डॉक्टर नहीं है गांव की अच्छे डॉक्टर के अभाव में उनका इलाज सही न हो सका

मा घर के काम करती है मैं अपनी स्कूल की नौकरी इस बीच में भी कुछ सालों बाद शादी हो गई शादी के बाद भी , जीवन में संघर्ष चलता रहा जिसके कारण मेरा स्वभाव....  दो बच्चों के बाद भी अपनी नौकरी जारी रखी कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है मगर में अपनी नौकरी नहीं छोड़ना चाहती थी क्योंकि सच कहूं तो मुझे लगता था बिना पैसों के इंसान की इज्जत ही नहीं..... मैं नहीं चाहती थी मेरे बच्चे किसी तरह की कमी कभी महसूस करें , कोई सपना मेरी तरह अधूरा रह जाए .....

चाची की बहन बेटी शादी अच्छे संपन्न परिवार में हो गई और चाचा का बेटा मेडिकल लाइन में था कभी-कभी मैं सोचती थी काश मुझे भी मौके को कोचिंग मिली होती तो आज मैं डॉक्टर होती शायद मेरी किस्मत, मेरे मां-बाप को दोष देती

मेरी मां आज भी सिलाई करती है। जब मै जाती हूं मुझे चुपके से पैसे देती हूं इसकी मुझे जरूरत नहीं क्योंकि मैं तो खुद कमाती हूं... गुस्सा करती थी कि मुझे चुपके से देती हूं तुम्हारी मेहनत की कमाई है सबके सामने दो उनके ₹200 ₹300 लेकर मैं अपना आत्म सम्मान नहीं खोना चाहती थी और मैं उसे नहीं लेती थी जिससे उन्हें दुख होता था मगर मैं कहां गलत हूं

मां चाची का हर काम करती थी हालांकि चाची ने कभी मां को कुछ नहीं कहा वह ऊपरी तौर पर तो बहुत अच्छी बनती थी मगर कई बार ऐसी चीजें होती थी जिसका एहसास ..... ....

 मां की आंखों में परदा रहता था चाचाजी कभी बेटी तो कभी बेटे के पास चली जाती मां सारा काम करती सिलाई करती 

चाची ने कभी मां को नहीं कहा कि आप मत करो हां करने भी नहीं कहा शायद मां का स्वभाव ....

मां के मन में संतोष रहता था घर में हमेशा शांति और प्यार चाहती ,न. कभी पैसे मांगती चाचा चाची से न कभी किसी चीज का विरोध करती 

 मां से मिलने जब भी मायके जाती है ना जाने कितना कुछ ....... गुस्से के कारण में कई महीनों तक न जाने की करती.....

कुछ दिनों के लिए मां घर आती मैं नौकरी में जाती हो पीछे से सारा काम करके रखती है।मैं  कहती कुछ दिनों के लिए आराम करो वह कहती काम में ही खुशी मिलती है।

कभी-कभी इंसान बाहर से बड़ा मजबूत होता है मगर वह अंदर से खोखरा होता है शायद मां वैसी बन चुकी थी जिनके अंदर जाने कैसे सहनशक्ति थी

मेरे सामने जब मां घंटों सिलाई करतीऔर चाची घंटो टीवी देखती... मां किचन में काम कर रही होती और चाची फोन में बातें करती... मां जब छत पर सफाई कर रही होती चाची पड़ोसियों से घंटों बातें करती ... यह सब देख देख कर मेरे अंदर क्रोध भरता जाता सोचती मायके नहीं जाऊं तो ही अच्छा है मां उनके साथ ही खुश है । उनका विरोध करती तो मुझे डांटती....

कभी-कभी तो मैं उन्हें कहती शायद मैं आपकी सौतेली बेटी हूं और चाची की बेटी और बेटा आपके सगे है ।

इस बीच को रोना आ गया चाचा चाची की कोरोना के चलते तबीयत खराब हुई है और अचानक एक दिन दोनों......

हम तीनो भाई बहन बाहार .. मां घर में अकेले....

हम जब पहुंचे तब सब कुछ हो चुका था तब मुझे एहसास हुआ कि परिवार क्या होता है अपने क्या होते हैं अक्सर हम लोगों के रहते उनकी कदर नहीं करते और उनके जाने के बाद......

अब मां को अकेला तो नहीं छोड़ सकते थे उस जमीन को बेचना चाहते थे मगर भाई ने मना किया और कहा मां के साथ हम रहेंगे अपना मकान हम किराए में दे देंगे ,मां शहर में है भाई के साथ और वह मां को बहुत अच्छी तरह प्यार और सम्मान के साथ रखता है मां का समर्पण ही था जो उन्हें आज भी सम्मान मिलता है

भाई डॉक्टर है कई नौकर चाकर है शहर में मां को कोई कमी नहीं है मां बहुत ही ठाठ से रहती है जो सुख बहुत साल पहले मिलना था शायद वह अब.....

भाई बहुत बड़ा डॉक्टर बन चुका है मां आज सम्मान समारोह में आई  वहां बुजुर्गों का सम्मान था और शहर के कुछ खास महिलाओं का इत्तेफाक देखिए .......आज मां का सम्मान हुआ

 ओर मेरा भी सम्मान हुआ ......

समर्पण सेवा प्रेम की परिभाषा है मां .. मां कहती है हम नजरिया नहीं सुधारते इसलिए रिश्ते खोखले लगते हैं रिश्ते तो रिश्ते होते हैं जो बड़े मजबूत होते हैं यह हम पर निर्भर करता है कि हम उसे कैसे निभाते है ।

अब सब कुछ बदल चुका है शायद मेरा नजरिया... मुझे लगता है हमें कभी दूसरों को दोष नहीं देना चाहिए मेरी किस्मत खराब है मैं सोचती थी मगर मुझे आब लगता है ...किस्मत बहुत अच्छी है तभी आज मैं इस मुकाम पर हूं बचपन में अगर मेरे लिए भेदभाव या अंदर ऐसी बातें ना देखी होती तो शायद मैं इतनी मजबूत ना बनती दुनियादारी न सिखती ... और रिश्तो की परख भी ...

आज सालों बाद मां के चेहरे में एक रौनक थी एक खुशी थी जिसे देख कर लगा जीवन के उनके इस रेगिस्तान में मानो सावन आया है

 मुझे कभी-कभी रिश्ते जो ना पसंद है आज उनके प्रति सम्मान है क्योंकि हम अपने नजरिए से ही रिश्तो को निभा पाते हैं और आज जिस तरह भाई ने मां को प्यार किया सम्मान से अपने पास अपने साथ सचमुच..... शायद इतनी अच्छी तरीके से तो मैं भी मां के लिए कुछ नहीं किया।


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