रेड लाइट ( भाग - 13)
रेड लाइट ( भाग - 13)
( निशा की बात से पुष्कर तिलमिला उठा और अचानक बाहर निकल गया । पुष्कर की माँ ने निशा को बताया कि पुष्कर देर रात घर लौटेगा , तुम खाना खाकर सो जाओ , पर निशा पुष्कर की प्रतीक्षा में बैठी रही ….. अब आगे )
दरवाजा खुलते ही निशा को देख कर पुष्कर चौंक पड़ा - "तुम अभी तक जगी हो ? "
"मैं खाना लगाती हूँ ।"
"माँ ने बताया नही था ? "
"बताया था कि तुम खाकर सो जाना … न खा पाई , न सो पाई ।"
"क्यों ? ,
"हर क्यों का जवाब नहीं होता ।"
"होता तो है पर कुछ लोग जान कर अनजान बनते हैं ।" कहते हुए पुष्कर धीरे से निशा का हाथ पकड़ लेता है , पर दूसरे ही पल उछल पड़ता है …. उसकी माँ दरवाजे पर खड़ी थी । माँ को देखकर निशा यह कहते हुए वहाँ से तीर की तरह निकल गई कि मैं खाना ला रही हूँ । निशा के जाने के बाद माँ ने पुष्कर से कहा - "मुझे भी यह लड़की अच्छी लगती है । तू हाँ कह तो मैं बात करूँ उससे … श्मशान से गुजरकर गंगा मैली नहीं हो जाती ।"
"अरे माँ , तुम चलती बस में क्यों चढ़ने लगी ? …. जैसा तुम सोच रही हो , वैसी कोई बात नहीं।'
"बेटा ,बुढापे में माँ की नज़र जरूर कमजोर हो जाती है पर बेटे की चाहत महसूस करने की ताकत दुर्बल नहीं हो सकती । वह लड़की जब - जब मेरी सेवा करती है , मेरी देखभाल करती है तब - तब मन से यही दुआ निकलती है जो एक सास अपनी बहू को दिया करती है । अनचाहे हाथ आए हीरा की कीमत कम नहीं हो जाती , मैं तो कहती हूँ जो तेरे मन में है उसे लोक -लाज के करण मन में मत रख …. किस्मत को बार - बार कुंडी खटखटाने की आदत नहीं होती बेटा ।" खाना लेकर आ रही निशा के कान में कुंडी खटखटाने वाली बात पड़ी तो उसके कदम ठिठक कर थम से गये । वह सोचने लगी कि माँ जी कुंडी खट खटाने की बात क्या कर रही हैं ? तभी इंस्पेक्टर पुष्कर की आवाज़ उसे सुनाई पड़ी …. "माँ तुम समझ रही हो यह सुनकर निशा क्या सोचेगी ? "
"क्या सोचेगी ? … मैं भी उसकी माँ जैसी ही हूँ । पुष्कर अपनी माँ से झूठ तो नहीं बोलेगा न ?"
"ये कैसी बात कर रही हो माँ ?
"एक बात बता …. तुम निशा को प्यार करते हो कि नहीं ?" यह सुनकर निशा का पूरा बदन एकबारगी काँप उठा और न चाहते हुए भी उसके कान पुष्कर का जवाब सुनने के लिए बेताब हो उठे ।
"माँ , मैं तुम्हें अपना भगवान मानता हूँ , कोई भी भक्त भगवान से झूठ नहीं बोल सकता। मैं बस इतना चाहता हूँ कि निशा को उसकी हर ख़ुशी मिले , वह हमेशा खुश रहे , उसके लिए मुझे कुछ भी करने में अच्छा लगता है , उसके लिए अपनी क्षमता से बाहर जाकर भी कुछ करना पड़े तो मैं कर सकता हूँ … पर मैं उसे प्यार करने लगा हूँ ये नहीं जानता ।"
"बेटा , प्यार कोई दिखने वाली चीज नहीं है , निशा के लिए जो तुम महसूस कर रहे हो यही तो प्यार है ।"
"फिर भी माँ , तुम निशा से कुछ नहीं कहोगी , वह सोचेगी हम दो महीना उसे घर में क्या रख लिए हमें उसकी ज़िन्दगी का फैसला करने का हक़ मिल गया ।"
"क्या पता बेटा , जिस घर को खोजने वह कोठे से उतरी है , वह घर यही हो ।" झन की आवाज़ हुई …. निशा के हाथ से भोजन की थाल नीचे गिर पड़ी थी। फिर निशा वहाँ एक पल ठहर नहीं सकी , भागकर अपने कमरे में आई और अंदर से किवाड़ बंद कर ली । पुष्कर को पता था कि निशा उसके लिए ही भूखी प्यासी बैठी हुई थी , वह निशा को दरवाजा खोलने के लिए कहने ही जा रहा था कि उसकी माँ ने मना कर दिया - "उसे इस समय भोजन की नहीं , एकांत की जरूरत है । किसी भी लड़की के लिए ऐसी स्थिति का सामना करना कोसों की दूरी तय करने के समान है । उसे अकेला छोड़ दो ।"
प्रसून रात भर सो नहीं पाया । वह तो खा भी नहीं रहा था पर माँ की मनुहार ठुकराना सन्तान के लिए आसान नहीं हो पाता ।सूरज कब का झरोखा खोल चुका था पर निशा ने अब तक अपना दरवाजा नहीं खोला था । एक अज्ञात भय से पुष्कर अंदर तक काँप उठा । वह अपनी माँ की तरफ देखा , उनके चेहरे की शिकन से उनकी घबड़ाहट का सहज अनुमान लगाया जा सकता था । पुष्कर दरवाजे पर दस्तक देते हुए जोर - जोर से चिल्ला रहा था - "निशा दरवाजा खोलो ….. प्लीज , दरवाजा खोल दो …. । "पर अंदर से किसी भी तरह की कोई आवाज़ नहीं आ रही थी । पुष्कर की आवाज़ सुनकर उसकी माँ ठाकुर जी को नमन कर बीच में ही पूजा छोड़कर आ गईं , पुष्कर से उन्होंने घबड़ाते हुए पूछा - "क्या हुआ बेटा ?"
"माँ , निशा दरवाजा नहीं खोल रही है ।"
"क्या ? अभी तक उसका दरवाजा खुला ही नहीं ? … वह तो 5 बजे ही उठ जाती है ।"
"मुझे डर लग रहा है माँ , कहीं वह कुछ ….. ।" माँ ने बीच में ही बात काटते हुए कहा - "बिना सोचे समझे कुछ भी बोलता रहता है । " माँ ने कहने को भले यह कह दिया , पर उनका भी कलेजा जोर जोर से धड़कने लगा था ।
"माँ , कहीं ऐसा न हो कि थानेदार के घर का दरवाजा पुलिस को पंचनामा करके तोड़ना पड़े ।"
"तू हट … मैं देखती हूँ ।" पुष्कर एक तरफ हट गया । माँ दरवाजे के पास मुँह सटाकर बोली - "बेटी निशा , अपनी माँ से नाराज है ? देख तो भला इस बुढ़िया को अभी तक रोटी का एक निवाला भी नहीं मिला "
एक झटके से दरवाजा खुल गया और माँ के कँधे लगकर निशा फफक फफक कर रो पड़ी । माँ ने इशारे से पुष्कर को वहाँ से जाने के लिए कहा और निशा को लेकर अपने कमरे में चली गईं ।
माँ का स्नेह पाकर निशा कुछ सहज हुई तो माँ उससे पूछ बैठी - "क्या हुआ बेटी , मेरा बेटा तुम्हें पसन्द नहीं ? अगर ऐसी बात है तो तुम्हें तनाव लेने की जरूरत नहीं , मेरी बूढ़ी आँखें ये सपना देख रही है । तुम तो जानती हो इस उम्र में बुद्धि सठिया जाती है ।"
"ऐसी बात नहीं है माँ , आपका बेटा तो करोड़ों में एक है । यह मुझ अभागिन का कोई पुण्य है जो आप जैसी देवी की आँखों ने ऐसा सपना देखा है , मैं अपने दुर्भाग्य से डरती हूँ ।" माँ ने निशा के सर पर हाथ फेरते हुए कहा - "मैं कोई ज्ञानी तो नहीं बेटी , पर इतना जानती हूँ कि जिस तरह रात और दिन आते हैं उसी तरह सुख और दुख भी आते जाते रहते हैं …. चल तैयार हो जा , आज तुम्हें अपने भाई के घर भी तो जाना है ….. तेरा वहाँ जाना जरूरी है, नईहर से ही तो डोली उठती है ।"
क्रमशः
( अगला भाग 9 अप्रैल 2021को )