सतीश मापतपुरी

Romance

4.5  

सतीश मापतपुरी

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रेड लाइट ( धारावाहिक ) भाग 8

रेड लाइट ( धारावाहिक ) भाग 8

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……….. आठवीं कड़ी ………


( मिलन चौक एरिया में एक घर को देखकर निशा को लगा था कि यही उसका घर है , इंस्पेक्टर पुष्कर यह सुनकर बहुत खुश हुआ था कि आसानी से निशा को उसका घर मिल गया ,पर अगले ही क्षण उसकी खुशी को तब ग्रहण लग गया , जब घर की मालकिन ने दो टूक कह दिया कि उसकी कोई बेटी ही नहीं है । इंस्पेक्टर अनुमंडल मुख्यालय जाकर पुस्तकालय से वह अखबार ले आया , जिसमें निशा की गुमशुदगी का इश्तेहार छपा था और उसमें उसी घर का पता था , जिसे निशा ने अपना घर बताया था । दूसरे दिन इंस्पेक्टर फिर निशा को लेकर उसी घर में गया …… अब आगे )


पुष्कर को लगा था कि इतने ही से डरकर वह औरत सब कुछ बता देगी पर ठीक इसके विपरीत वह दहाड़ उठी - ‘ आप पुलिसिया रौब झाड़ने आये हैं , अपनी इज़्ज़त चाहते हैं तो चुपचाप लौट जाइये , मैं वकील की बेटी हूँ मुझ पर धौंस जमाने की कोशिश मत कीजिये।’ रविवार का दिन था , पत्नी की तेज आवाज़ सुनकर उसका पति बाहर आया और इंस्पेक्टर को देखकर हैरान होते हुए पूछ बैठा - ‘ क्या बात है ईस्पेक्टर साहेब ? ‘ इंस्पेक्टर से सारी बातें जानने के बाद वह धीरे से बोला - ‘ एक मिनट …. इधर आइये ।’ लगभग फुसफुसाते हुए उसने इंस्पेक्टर से कुछ कहा , जिसे सुनकर इंस्पेक्टर का चेहरा फक पड़ गया , निशा बड़े गौर से इंस्पेक्टर का चेहरा निहार रही थी …. सच ही कहा गया है कि चेहरे की पेशानी दिल का आईना होता है । वह व्यक्ति इंस्पेक्टर से कह रहा था - ‘ बड़ा बुरा हुआ देवी दयाल जी के साथ , यह उन्हीं की बेटी बबली होगी । इसके गुम होने के गम में इसकी माँ को ऐसा सदमा लगा कि खाट से उठी ही नहीं , खाट ही उठ गई । देवी दयाल जी को दो बेटे और एक बेटी थी , अच्छी खासी सम्पति थी , जर - जवार में काफी प्रतिष्ठा थी । मैं ब्लॉक में बड़ा बाबू था , मेरे पास अक्सर आया करते थे । पत्नी के गुजर जाने के बाद वो टूट से गये थे , लोग दबी जबान उनकी बेटी को लेकर तरह - तरह की बातें बनाने लगे थे , कोई कहता कि उसे अब तक किसी कोठे पर पहुँचा दिया गया होगा ….. कोई कहता , हाथ - पैर तोड़कर भीख मंगवाएगा सब । एक दिन देवी दयाल जी मुझसे बोले कि अम्बिका बाबू मैं हमेशा के लिए नवाबगढ छोड़कर जाने का फैसला कर लिया हूँ … उनकी… ‘ बीच में ही निशा रोते हुए पूछ बैठी - ‘ मेरे पिता जी यहाँ से कहाँ चले गए ? ‘ निशा को सामने देखकर अम्बिका बाबू हक्का बक्का रह गए -’ बेटी , तुम ….? ‘

‘ मैंने सब कुछ सुन लिया है अंकल , मेरी माँ तो रही नहीं , मेरे पिताजी  कहाँ हैं … ये तो बता दीजिए ।’

अम्बिका बाबू इंस्पेक्टर की तरफ देखे , पुष्कर ने उनसे कहा - ‘ निशा को सब कुछ जानना चाहिए बड़ा बाबू … आप बताइए , देवी दयाल जी का क्या हुआ ? ‘ 

‘ बड़ा बुरा हुआ साहेब , देवी दयाल जी बाग - बगीचा , खेत - बारी सब कुछ बेच दिए । तब मेरा परिवार गाँव में रहता था । हम हर शनिवार को गाँव जाते थे । हमने देवी दयाल जी से हाथ जोड़ते हुए कहा कि आप बड़े आदमी हैं , अगर मुझ गरीब पर कृपा कर देंगे तो मेरे सर पर भी छत आ जायेगी । मुझे आज भी याद है ,  मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए वह बोले थे कि भगवान किसी को भी मेरे जैसा बड़ा न बनाएँ , आपको जो मुनासिब लगे वो कीमत दे दीजियेगा , अगले महीने विकास आएगा … वो घर अब आपका है । कल हम हमेशा के लिए यहाँ से जा रहे हैं और क्या बतायें इंस्पेक्टर साहेब उस रात देवी दयाल जी जो सोये फिर उठे ही नहीं । एक हँसता -  खेलता परिवार तबाह हो गया । दोनों बेटे हमेशा के लिए नवाबगढ छोड़ कर चले गए ।’

निशा फूट - फूट कर रो पड़ी ।इंस्पेक्टर का दिल बैठ गया , उसे इस बात का अफसोस था कि वह चाह कर भी निशा की मदद नहीं कर सका । पुष्कर निशा के पास जाकर उसे समझाने लगा - ‘ होनी बहुत प्रबल होती है निशा ……. तुम अपने घर न जाओ या घरवालों से न मिलो , शायद इसीमें तुम्हारा कोई हित छिपा हो । ‘ अम्बिका बाबू अचानक इंस्पेक्टर से बोल उठे - ‘ ऐसी बात नहीं है साहेब , भगवान एक हाथ से लेता है तो दोनों हाथों से देता भी है । समय कितना भी क्रूर क्यों हो जाय …. बेटी का मायका नहीं छोड़ा सकता , दो मिनट । ‘ कहते हुए अम्बिका बाबू घर के भीतर झटकते हुए चले गए । 

….. क्रमशः ….


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