रेड लाइट ( भाग -14)
रेड लाइट ( भाग -14)
(सुबह देर तक निशा का दरवाजा न खुलने के कारण पुष्कर काफी परेशान हो उठता है। उसकी माँ उसे ढाढ़स तो देती हैं पर भीतर - भीतर वह भी किसी अनहोनी की आशंका से डरी हुई हैं, दरवाजे के पास जाकर निशा से दरवाजा खोलने के लिए कहती हैं तो वह माँ की बात अनसुनी नहीं कर पाती…. अब आगे )
निशा दरवाजा खोलते ही माँ के कँधे से लगकर फफक पड़ी। माँ ने बड़े स्नेह से निशा के सर पर हाथ फेरते हुए कहा -‘चल तैयार हो जा, आज तुम्हें अपने भाई के घर भी तो जाना है …. नईहर से ही तो डोली उठती है।’ निशा कुछ बोली नहीं सिर्फ गीली नज़रों से माँ को देखा, उसे डर था कि बोलेगी तो उसके भीतर का तूफान लावा बनकर फुट पड़ेगा।
निशा बाथरूम से निकलकर सीधे अपने कमरे में आ गई। पुष्कर अपनी माँ को फोन कर चुका था कि वह निशा को तैयार होने के लिए बोल दें, वह थाने से निकल रहा है। निशा को जैसे काठ मार चुका था,वह बूत की तरह खड़ी थी उसकी तन्द्रा तब भंग हुई जब माँ ने आवाज दी, पुष्कर आ रहा है तैयार हो जाओ। निशा मन ही मन सोच रही थी कि काश समय हमेशा के लिए रुक जाता। मनुष्य की मनोवृति भी अजीब होती है, वह अपने अनुरूप ही सब कुछ चाहता है। कल जिस घर और परिजन को खोजने वह रात में नवाबगढ़ आ गई थी, वही घर जाने की कोई खास खुशी उसे महसूस नहीं हो रही थी। मिलन पर जुदाई भारी पड़ रही थी।
समय कभी किसी के लिए रुका नहीं, चाहे वह राजा हो या रंक। कार नवाबगढ़ से बाहर निकल चुकी थी और लखनऊ के रास्ते पर सरपट भागी जा रही थी। पिछली सीट पर पुष्कर के बगल में होने के बाद भी निशा कहीं दूर खुद में ही खोकर रह गई थी। उसकी चुप्पी अब पुष्कर को खलने लगी थी।
‘लखनऊ पहुँचने में 3 घण्टे लगेंगे तब तक यूँ ही खामोश रहोगी ?‘
पुष्कर के पुछने पर भी निशा ने कोई जवाब नहीं दिया।
‘कुछ तो बोलो …..।’
‘क्या ?‘सवाल का जवाब सवाल नहीं हो सकता। पुष्कर को लगा कि उसे कोई बात शुरू करनी चाहिए -‘पहली बार अपने भाई से मिलने की कितनी खुशी है ये तो बता सकती हो ?‘
आशा के विपरीत निशा ने पुष्कर से ही सवाल कर दिया -‘आप तकदीर को मानते हैं ?‘निशा का यह प्रश्न सुनकर पुष्कर हैरान रह गया।
‘इस समय तकदीर की बात कहाँ से आ गई ?‘
‘जो पूछा वो तो बताइए।’
‘मैं कर्म को मानता हूँ, कर्म के अनुरूप ही इंसान को फल मिलता है।’
‘मैं 7 साल की थी, मैंने ऐसा क्या कर्म किया जो माँ की गोद से उठाकर कोठे पर पहुँचा दी गई ?‘
‘प्लीज, ये बात मत निकालो निशा।’
‘एक बात बताइए पुष्कर साहेब, ईमानदारी से जवाब दीजियेगा, आज आपको मुझसे प्यार हो गया है, आप मुझसे शादी करने को तैयार हैं। यदि आप मुझसे न मिले होते और मेरा रिश्ता रेडलाइट एरिया से आया होता तो आप मुझसे शादी करते ? … यह मेरी तकदीर है या मेरा कर्म ?‘निशा की बात सुनकर पुष्कर आवाक रह गया। पुष्कर समझ नहीं पा रहा था कि वह क्या जवाब दे। मन के हर उदगार को व्यवहार के लिए शब्द नहीं जुटते।निशा कनखकियों से पुष्कर के चेहरे पर तेजी से आ जा रहे भाव को निहार रही थी। पुष्कर काँच की खिड़की से बाहर देखने लगा था ….. पेड़, खेत, बागीचा सभी बड़ी तेजी से विपरीत दिशा में भागे चले जा रहे थे। क्षण भर को पुष्कर ने सोचा, काश ! वक़्त को भी पीछे चलने की फितरत मिली होती।
‘आपने कोई जवाब नहीं दिया इंस्पेक्टर साहेब ?’
‘ऐं ….‘…. अचकचाकर पुष्कर ने कहा।
‘कहीं खो गये थे क्या ?‘
‘देखो निशा, न मैं फिलॉस्फर हूँ, न शायर हूँ, न लेखक हूँ। मैं एक आम इंसान हूँ, जो वही देखता और सोचता है जो सामने दिखता है।मैं सिर्फ उस निशा को जानता हूँ जो मेरे पहलू में बैठी है, उस निशा को शायद ….. और शायद क्यों यकीनन नहीं पहचान पाता जिसका रिश्ता रेडलाइट एरिया से आता, तुम समझ सकती हो कि एक अपरिचित एवम अनजान के लिए न तो ये दिल धड़कता है … न उसे उससे कोई लगाव होता है। उम्मीद है मेरे ईमानदार जवाब से तुम्हें कोई ठेस नहीं पहुँची होगी।’
कार हिचकोले खाकर रुक गई, सामने लखनऊ हवाई अड्डा की इमारत दिख रही थी। उस समय तक हवाई मार्ग में जाम लगने जैसी कोई समस्या नहीं थी।, सो हवाई जहाज नियत समय पर उड़ गया। निशा को पुष्कर का जवाब सुनकर अच्छा लगा। उसको उसकी साफगोई बहुत पसंद आई। निशा ने सोचा पुष्कर के भीतर का इंसान कितना मासूम और पवित्र है, मुझे खुश करने के लिए उसने कोई अतिरिक्त यत्न नहीं किया। पुष्कर को लेकर निशा के दिल ने न जानें क्या - क्या हवाई महल बनाने में मशगूल हो चुका था कि मुम्बई पहुंचने की घोषणा होने लगी। निशा जैसे पहाड़ से नीचे आ गिरी। इतनी जल्दी हम मुम्बई पहुँच गये ? …. कुछ ही घण्टों में पुष्कर उसे छोड़कर वापस चला जाएगा ? पता नहीं क्यों … निशा को मुम्बई पहुँचना अच्छा नही लग रहा था … पुष्कर उसे छोड़कर चला जायेगा यह उसे अधीर किये जा रहा था, वह कसकर पुष्कर का हाथ पकड़ ली।
…. क्रमशः

