सतीश मापतपुरी

Romance

4.0  

सतीश मापतपुरी

Romance

रेड लाइट ( भाग - 10 )

रेड लाइट ( भाग - 10 )

3 mins
271


( अम्बिका बाबू जब अंदर से बाहर आए तो उनके हाथ में एक छोटी सी डायरी थी। अम्बिका बाबू से निशा के बड़े भाई का फोन नम्बर मिलने के बाद इंस्पेक्टर ने उन्हें फोन मिलाया …… अब आगे )

शाम को जब इंस्पेक्टर विकास को फोन करने लगा तो निशा उसे रोकते हुए बोली - ‘ रहने दीजिए, मुझे लगता है फोन करने से कोई फायदा नहीं है।’

‘ क्यों ? ‘

‘ भईया पैसे वाले आदमी हैं, बड़े सोसाइटी में उठना - बैठना होगा उनका। अगर हम वहाँ जायेंगे तो लोगों को वो क्या बताएंगे, कौन हूँ मैं ?’

‘ ये बात तुम उनपर छोड़ दो, देखो तो क्या कहते हैं वो। ‘

इंस्पेक्टर ने विकास को फोन लगा दिया और दूसरे ही रिंग में विकास ने फोन उठा लिया। 

‘ हैलो, विकास बाबू ? ‘

‘ जी … आप कौन ? 

‘ मैं नवाबगढ़ से इंस्पेक्टर विशाल पुष्कर बोल रहा हूँ …. ‘ बीच ही में बात काटते हुए विकास ने पूछा -

‘ जी … कौन ? …. इंस्पेक्टर … यू मीन पुलिस इंस्पेक्टर ? ‘

‘ जी, मैं नवाबगढ़ थाना से बोल रहा हूँ …. नवाबगढ़ जानते हैं न ?

‘ जी, मैं वहीं का रहने वाला हूँ, नवाबगढ़ में थाना खुल चुका है … ये भी मुझे पता है, पर आप मुझे किस सिलसिले में फोन किये हैं ? नवाबगढ़ से अब कोई रिश्ता नहीं रह गया है मेरा। ‘ थाना पुलिस के नाम से हर कोई डरता - सहमता है, ये बात पुष्कर अच्छी तरह समझता था - ‘ अपनी जन्मभूमि से कभी रिश्ता खतम नहीं होता है विकास बाबू ….. मिट्टी मिट्टी को कभी छोड़ती नहीं। ‘

‘ हाँ … ये तो आप ठीक कह रहे हैं, पर …..। ‘

‘ आप डरें नहीं, मैं कोई कानूनी पचड़े की बात नहीं कर रहा हूँ … यदि आपकी अनुमति हो तो अपनी बात कहूँ ? ‘

विकास इंस्पेक्टर की बात सुनकर बहुत हद तक सामान्य हो चुके थे - ‘ जी, फरमाइए। ‘

‘ विकास बाबू, मैं आप से आपके एक निजी मसले पर बात करने जा रहा हूँ ...। ‘

‘ जी….. आप तो फिर से मुझे डराने लगे हैं।’

‘ डरने की बात नहीं विकास बाबू … समझने की बात है, आपकी एक बहन थी … याद है ? ‘

‘ बिल्कुल …. उसे तो एक छन के लिए नहीं भूल पाया, पर आप ये क्यों पूछ रहे हैं ?’

‘ आपकी बहन अपने घर का पता खोजने नवाबगढ़ आई थीं और अभी मेरे पास हैं …. बबली उर्फ ….। ‘

‘ निशा …. इतने दिनों बाद …. अब तक कहाँ थी मेरी बहन ? ‘

‘ मैं फोन पर बहुत कुछ नहीं बता सकता, अम्बिका बाबू से आपका पता मुझे मिल चुका है और अब मैं मिल कर ही आपसे बात करना चाहता हूँ। ‘

‘ एक … एक मिनट इंस्पेक्टर साहेब …. क्या मैं थोड़ी देर अपनी बहन से बात कर सकता हूँ ?…. प्लीज। ‘

‘ जी … क्यों नहीं। ‘

इंस्पेक्टर निशा को फोन दे दिया, निशा के हाथ काँप रहे थे … वह बुरी तरह घबड़ाई हुई थी। अचानक मिली खुशी दिल की धड़कन बढ़ा देती है। दुखों के थपेड़े खाते इंसान को सुख के लम्हात भी अक्सर डरा ही देते हैं। निशा के जीवन में वह घड़ी आने जा रही थी जिसका उसे इंतजार था, ऐसी कोई रात नहीं होती जिसकी सुबह न हो। इंस्पेक्टर के घुड़कने पर निशा फोन पर कांपती आवाज़ में बोली - ‘ ह ह ल..।’

‘ कौन बबली …. बबली कुछ तो बोल … मैं तेरा बिक्कू भईया …. तू कहाँ चली गई थी रे …. तू घर से क्या गई सब कुछ खतम हो गया, अपने भईया से तू कुछ नहीं बोलेगी ? ‘

‘ भईया …… ‘ और फिर निशा बुक्का फाड़ फाड़ कर रो पड़ी, इंस्पेक्टर निश के हाथ से फोन ले लिया।

‘ हलो …. नहीं … नहीं आपको आने की जरूरत नहीं है …. मैं निशा को लेकर मंगलवार को पहुँच रहा हूँ …...।’

 ….. क्रमशः 

( अगला भाग 25 मार्च 2021 को )


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