रेड लाइट ( भाग - 12 )
रेड लाइट ( भाग - 12 )
(इंस्पेक्टर पुष्कर ने निशा को बता दिया था कि मंगलवार को लखनऊ होते हुए मुम्बई जाना है। हवाई जहाज से मुम्बई जाने में पुष्कर को बड़ी रकम खर्च करनी पड़ेगी, यह निशा को कुछ ठीक नहीं लग रहा था। इसी प्रसंग में बात अनुराग और प्यार तक पहुँच गई, बातों - बातों में निशा ने एक ऐसी बात कह दी। जो। अब आगे )
‘ये जानते हुए कि मैं कोठे से आई हूँ, आपको मुझसे प्यार हो गया ? ‘
‘ निशा, मैं तुमसे प्यार करता हूँ पर बदले में तुम भी मुझे प्यार करो, ऐसी मंशा नहीं रखता। ‘
‘ आपके एहसान तले दबी एक लड़की की अपनी कोई मर्जी हो सकती है क्या ? ‘ पुष्कर निशा की यह बात सुनकर चीख उठा - ‘ भगवान के लिए मुझे इतना छोटा न बनाओ। ‘
पुष्कर वहाँ से तीर की तरह निकल गया। निशा की तन्द्रा तो तब टूटी जब जीप स्टार्ट हुई।
असमय पुष्कर को घर से बाहर निकलते देख निशा को यह समझते देर न लगी कि उसकी बातों से आहत होकर ही पुष्कर बाहर चला गया है। निशा को खुद पर गुस्सा भी आ रहा था, पुष्कर का उपकार मानने की जगह उसे जली - कटी सुना बैठी। यौवन उम्र का वह पड़ाव है जहाँ दिमाग से परे दिल फैसला कर बैठता है, कब कोई अच्छा लगने लगता है, कब उसके प्रति आसक्ति हो जाती है, कब उसके लिए समर्पण - भाव जागृत हो जाता है, किसी को पता ही नहीं चल पाता। निशा सोच रही थी कि उसका यह व्यवहार शायद उचित नहीं था। उसने बड़ी ईमानदारी से अपने दिल की धड़कनों को पहली बार सुना और उसके गोरे रुख़सार सुर्ख हो गए। ऐसी स्थिति में हम प्रायः उसी बात के लिए दूसरे को आरोपित कर बैठते हैं जो दरअसल अपनी बात होती है।
निशा इन्हीं सब बातों में खोई हुई थी कि अंदर से पुष्कर की माता जी ने उसे आवाज़ लगाते हुए बताया कि पुष्कर ने फोन पर बताया है कि वह रात में काफी देर से लौटेगा, उसके पास घर की चाभी रहती है। तुम खाना खाकर सो जाना। यह सुनकर निशा को अपराध - बोध सा हुआ। निशा जब अपने दिल को टटोल रही थी तो वहाँ पुष्कर की मौजूदगी देख कर खुद से ही लजा उठी थी।
निशा को अब लगने लगा था कि उसने पुष्कर पर ज्यादती की है। पुष्कर का कितना मासूम सा जवाब था। मुझे तुमसे अनुराग सा हो गया है, और उस पर मैनें पांडित्य दिखाना शुरू कर दिया। अनुराग या प्यार ?। ठीक ही तो कहा था पुष्कर ने। मैं कवि और शायर नहीं हूँ अनुराग और प्यार को एक ही समझता हूँ, मैं भी भला कहाँ जानती हूँ कि अनुराग और प्यार में क्या फर्क है। तभी खट की आवाज़ हुई। निशा समझ गयी कि पुष्कर अपनी चाभी से दरवाजा खोल रहा है। दरवाजा खुलते ही निशा को देख कर पुष्कर चौंक पड़ा - ‘ तुम अभी तक जगी हो ? ‘
‘ मैं खाना लगाती हूँ।’
‘ माँ ने बताया नही था ? ‘
‘ बताया था कि तुम खाकर सो जाना। न खा पाई, न सो पाई।’
‘ क्यों ?,
‘ हर क्यों का जवाब नहीं होता।’
‘ होता तो है पर कुछ लोग जान कर अनजान बनते हैं।’ कहते हुए पुष्कर धीरे से निशा का हाथ पकड़ लिया,पर दूसरे ही पल उछल पड़ा। उसकी माँ दरवाजे पर खड़ी थी।
क्रमशः
( अगला भाग 3 अप्रैल 2021 को )