रेड रोज ( धरावाहिक ) भाग-7
रेड रोज ( धरावाहिक ) भाग-7
( मिलन चौक एरिया के जिस घर को निशा ने अपना घर बताया था , उस घर में जो अधेड़ औरत थी उसने यह कहकर इस बात पर विराम लगा दिया था कि उनकी कोई बेटी है ही नहीं । इस घटना के बाद निशा मायूस हो गयी थी कि अचानक जमुना बाई उससे मिलने आ पहुँची । जमुना बाई ने ढाढ़स बंधाया और शुभकामना दी । इंस्पेक्टर पुष्कर अनुमंडल मुख्यालय के पुस्तकालय से वो अखबार खोज निकालता है जिसमें निशा की गुमशुदगी का इश्तेहार छपा था ….. अब आगे )
27 मार्च के अखबार में एक इश्तहार छपी थी जिसमें निशा के बचपन की तस्वीर लगी थी , लिखा था ‘ बबली , उम्र - लगभग सात साल , रंग - गेहुआ ,आसमानी रंग की फ्राक पहनी है , घर के पास से लापता हो गयी है ……… । यह देखकर इंस्पेक्टर की आँखें फ़टी की फटी रह गयी , इश्तेहार में उसी घर का पता छपा था जिसे निशा ने अपना घर बताया था ।शाम को जब इंस्पेक्टर घर आया तो उसका चेहरा खिला हुआ था , निशा को देखते ही बोल पड़ा - ‘ बधाई हो , तुम्हारे घर का पता चल गया ।’ यह सुनकर निशा को लगा कि दोनों जहाँ मिल गया - ‘ क्या ? …. कैसे ? ‘ इसके पहले कि निशा कुछ और पूछती , इंस्पेक्टर ने उसेे सविस्तार सारी बातें बताई और अखबार का वह इश्तेहार भी दिखा दिया ।
‘ तुम्हारी याददाश्त बहुत अच्छी है , बचपन में देखे अपने घर को एक झटके में पहचान लिया ।’
‘ अगर वही मेरा घर है तो वह औरत कौन है , जिसने कहा कि उसे तो कोई बेटी ही नहीं है ? ‘
‘ हाँ …. यही बात तो मेरी समझ में भी नहीं आ रही है , कल फिर चलते हैं वहाँ । ‘ इंस्पेक्टर के पास भी फिलवक्त इसका कोई जवाब नहीं था । इंस्पेक्टर घर के अंदर जा ही रहा था कि निशा की बातों ने उसके कदम थाम लिए - ‘ एक अनजान के लिए आप इतना कुछ क्यों कर रहे हैं ? ‘ अप्रत्याशित सवाल अक्सर खामोश कर देते हैं , पुष्कर को समझ नहीं आ रहा था क्या कहे , झेंप मिटाने के लिए कह दिया - ‘ दुनिया में इंसानियत भी तो कोई चीज है ।’
‘ बस इंसानियत ही या …… कुछ और ? ‘ कहते हुए निशा अखबार लेकर अंदर चली गयी । देने वाले ने औरत को हुस्न के साथ - साथ वो सलाहियत भी दी है जो सामने वाले का इरादा भांप सके । निशा तो कहकर चली गई पर पुष्कर सोच में पड़ गया । वह खुद से पूछ बैठा …. क्या सचमुच वह निशा के लिए ये सब इंसानियत के नाते कर रहा है ? …… थाने में रोज कितनी निशा आती है , क्या सबके लिए वह इतना कुछ करता है ? इंसान खुद से सवाल कर भी ले पर उसका जवाब सुनने से कतराता है …… कभी - कभी अपनी परछाईं भी डरा देती है । पुष्कर झटके से वहाँ से निकल गया ।
दूसरे दिन निशा को लेकर इंस्पेक्टर फिर मिलन चौक एरिया के उसी घर में गया । उसी अधेड़ औरत ने दरवाजा खोला । इंस्पेक्टर बिना कुछ बोले उस औरत को अखबार थमा दिया ।
‘ ये क्या है ? ‘ वह औरत हैरान थी ।
‘ आपने तो कहा था कि आपको कोई बेटी नहीं है तो इस अखबार में उसके लापता होने का इश्तेहार क्यों दिया था ? ‘ पुष्कर की आवाज़ सख़्त थी ।
‘ आपकी बात मेरे पल्ले नहीं पड़ रही है । ‘
‘ देखिए माँ जी , जो भी बात है साफ - साफ बात दीजिये , मैं आपके साथ किसी भी तरह की सख़्ती करना नहीं चाहता।’ पुष्कर को लगा था कि इतने ही से डरकर वह औरत सब कुछ बता देगी पर ठीक इसके विपरीत वह दहाड़ उठी - ‘ आप पुलिसिया रौब झाड़ने आये हैं , अपनी इज़्ज़त चाहते हैं तो चुपचाप लौट जाइये , मैं वकील की बेटी हूँ मुझ पर धौंस जमाने की कोशिश मत कीजिये।’ रविवार का दिन था , पत्नी की तेज आवाज़ सुनकर उसका पति बाहर आया और इंस्पेक्टर को देखकर हैरान होते हुए पूछ बैठा - ‘ क्या बात है ईस्पेक्टर साहेब ? ‘ इंस्पेक्टर से सारी बातें जानने के बाद वह धीरे से बोला - ‘ एक मिनट …. इधर आइये ।’ लगभग फुसफुसाते हुए उसने इंस्पेक्टर से कुछ कहा , जिसे सुनकर इंस्पेक्टर का चेहरा फक पड़ गया ……..I
क्रमशः
( अगला भाग 11 मार्च 2021 को )