रानी पद्मिनी
रानी पद्मिनी
हकीकत में भारतीय स्वतंत्रता की रक्षा के लिए सांस्कृतिक सहाय में राजस्थान के मेवाड़ की भूमिका रही है, मेवाड़ को गौरव दिलाने में यहाँ कि मातृत्व शक्ति का योगदान महत्वपूर्ण है, चित्तोड़ की रानी पद्मिनी के लिए दिल्ली के बादशाह अलाउदिन ने लड़ाई की थी, चित्तोड़ की रानी पद्मिनी एक एतिहासिक पात्र हैं, पूरे भारत की विचार धारा बदल दिया है, ये घटना के कारण एक ऎसे शूरवीर राजवंश जन्म हुआ कि जिसने इसके बाद 500 साल तक भारत का राष्ट्रीय गौरव और धर्म की रक्षा के लिए और लोगों की बजाय अपना विशेष स्थान प्राप्त किया है, हकीकत पद्मिनी के पति और गोरा बादल जैसे अनेक स्वामी भक्तों के कारण भारतीय जन जीवन में नई चेतना का संचार किया है और भारत जागृति से आगे बढ़ रहा था।
हेम रतन रचित गोरा बादल की चोपाई की भूमिका में मुनि जिन विजय का ये कथन सत्य साबित होता है कि "रानी पद्मिनी" की कथा हमारे देश की बहुत दुखद और आपत्ति पूर्ण कथा समय और ह्रदय मे ठेस पहुंचा ने वाली घटना हे, पद्मिनी कोई काल्पनिक पात्र नहीं है हमारी संस्कृति, समृद्धि और गरिमा की ज्योति का प्रतीक है जो प्रलय काल के समय में अग्नि की ज्वाला में विलीन हो हो गई सन 1360 में चित्तोड़ के टूटे हुए दुर्ग में हमारे राष्ट्र, देश धर्म और जातीय गौरव की रक्षा के लिए अपनी जान की कुर्बानी देती हुई सुंदरियाँ अग्नि की ज्वालाओं में शहीद हो गई।
'इस तरह आत्म समर्पण द्वारा अपनी जाति के संतान के भविष्य के लिए राष्ट्र गौरव के तनाव पूर्ण गीत सुनने गई थी ये भारत की श्रेष्ठ सती नारी का शीलव्रत का उम्दा उदाहरण हे, महारानी पद्मिनी एतिहासिक सिद्धि बन गई है वो एक एतिहासिक व्यक्तित्व है, मेवाड़ (चित्तोड़) के रावल रतन सिंह की रूपमति रानी पद्मिनी भारत के लोगों के जन मानस में एक विशिष्ट वीरांगना और सती नारी के रूप में ख्याति प्राप्त की है।
उनका जीवन बहुत कठिन और भावपूर्ण था, वो सुनकर हृदय में भाव उत्पन्न होते बिना नहीं रह सकता। पद्मिनी भारत की एतिहासिक युग की एक सुंदर, गुणवान और शीलवान नारी थी जिसने अपने वंश और जाति के गौरव की रक्षा के लिए नारी जाति का सम्मान बढ़ाने वाली दिव्य नारी थी और अपने जीवन का बलिदान दिया है। इस में कोई शंका नहीं है।
रानी पद्मिनी का जीवन नारिओं के लिए एक सुंदर संदेश है, मुस्लिम साहित्य भी मौन रहा वहाँ भारतीय इतिहास के पन्नों में भी वो बाकी रहा, भारतीय ऐतिहासिक ग्रंथों में रानिओं के परिचय बहुत कम देखने को मिलता है, मौर्य काल हो या फिर गुप्त काल या फिर भारत का परिवर्तन हुआ इतिहास हो उसमें वो समय के शासन कर्ताओं की रानिओं का परिचय देखने को नहीं मिलता, ऐसी ही स्थिति रानी पद्मिनी की है अभी जो साहित्य देखने को मिलता है वो भाट चारण लोगों की लोक संस्कृति कहीं दिखती है।
पद्मिनी के लिए विशेष रूप से जानकारी मलिक मोहम्मद जायसी ने लिखी हुई कविता में देखने को मिलती है। इस की रचना ई. स. 1540 मतलब एक यादगार जौहर के 237 साल के बाद देखने को मिला है, मलिक मोहम्मद जायसी के अनुसार रानी पद्मिनी सिंहल द्वीप के राजा गंधर्व सेन की राजकुमारी थी जो मेवाड़ के रावल रतन सिंह से परणित थी।
गजनी से जैसलमेर के लेखक हरि सिंह जी भाटी का मानना था कि पद्मिनी के पिता जैसलमेर के रावल पुराण पाल थे जिसे सन 1276 मे जैसलमेर से निकाल दिया था उन्होने पुनगल प्रदेश में जाकर उनका निवास स्थान बनाया था। पोंगल प्रदेश बीकानेर राज्य में चम लावाती और रम नेली नदी के किनारे संगम पर पड़ केश्वर नाम का तीर्थ स्थल था उसे पुनगल प्रदेश कहा जाता था, ये स्थल बीकानेर से खाजुवल मार्ग पर 50 की. मी. पच्चीम में आया है जहा अभी भी किल्ले के अवशेष है, ई. स. 1285 मे पद्मिनी का जन्म जाम कवर देवी के पेट से हुआ था, वो देवदा जालोउर में रहता था। सन 1295 में पद्मिनी की उम्र शादी लायक हो गई थी और उसकी सुंदरता की चर्चा आसपास के विस्तार में होने लगी थी। इससे उसके पिता पुण्य पाल ने मुस्लिम लोगों के आक्रमण के भय के कारण अपनी पुत्री का विवाह के लिए मेवाड़ के लिए प्रस्ताव समर सिंह के साथ भेजा गया, समर सिंह ने स्वीकार किया उसके बाद पुण्य पाल ने अपनी आर्थिक और राजनीतिक स्थिति की जानकारी दी थी।
मेवाड़ के राजा समर सिंह ने पुण्य पाल की व्यथा समजझ कर उसे मेवाड़ आने के लिए निमंत्रण दिया था और पुण्य पाल अपने परिवार के साथ और पद्मिनी को लेकर सिंगोली नाम के स्थल पर जा पहुंचे और पद्मिनी का विवाह रावल रतन सिंह के साथ ई. स. 1300 - 1301 के आस-पास कर दिया था उस पर ऐतिहासिक खोज करना जरूरी है।
राजस्थान के लोकगीत से साबित होता है कि रानी पद्मिनी पुनगल गढ़ की रहने वाली थी इस प्रकार उसके पिता का नाम पुण्य पाल और माता का नाम जाम कँवर था। उसके पति का नाम रतन सिंह था, अलाउदिन ने चित्तोड़ गढ़ पर आक्रमण किया था, पद्मिनी रतन सिंह की प्रिय रानी थी, रतन सिंह की प्रथम शादी प्रभावती के साथ हुई थी।
चित्तोड़ में 6 मास तक अलाउदिन ने घेर रखा था लेकिन कपट से रतन सिंह को निमंत्रण दिया था और 200 सैनिक के साथ किल् में प्रवेश किया गया था, रतन सिंह ने उसका सत्कार किया था लेकिन उसे विदा करने दरवाजे तक रतन सिंह गए थे तब अलाउदिन के सैन्य ने उन्हें कैद कर लिया था, और शर्त रखी थी कि तुम पद्मिनी को भेजो तो हम उसे मुक्त कर देंगे, पद्मिनी का चेहरा दर्पण में दिखाने पर अलाउदिन उसे मोह लिया और रतन सिंह को मुक्त न करके उसे मार दिया था, पद्मिनी पर सिनेमा बनाई गई थी उस पर बहुत विवाद के बाद उसे रिलीज किया गया था !
