भ्रमण :चंपारण्य में

भ्रमण :चंपारण्य में

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हम छत्तीसगढ़ के चंपारण्य में भ्रमण के लिए अहमदाबाद से 30 मई 2019 को शाम ट्रेन से निकल कर 31 मई को रायपुर पहुँचे, रायपुर से 10 की मी की दूरी पर बस से हम चंपारण्य पहुँचे, वहां सुदामा पूरी धर्मशाला में विश्राम कर के महा प्रभु जी की बैठक में दर्शन के लिए गए, वही प्रसाद भोजन के रूप में मिला ....

इस चंपारण्य जगह का ऐतिहासिक महत्व है, वैष्णव संप्रदाय के वल्लभाचार्य का जन्म यहाँ हुआ था, उनके पिताजी लक्ष्मण और माताजी इल्लमगा के परिवार में ई. सन् 1478 को हुआ था, मूलतः वो आंध्र प्रदेश के खंमन के निकट कंकड़ वाड नामक गाँव के थे। 

वो तेलंग ब्राह्मण और कृष्ण यजुर्वेद की ताइतरइन शाखा के अंतर्गत इनका भारद्वाज गौत्र था, वल्लभाचार्य का जन्म चंपारण्य जिला रायपुर में हुआ था, उनके पिताजी और माता जंगल से गुज़र रहे थे तब प्रसव पीड़ा शुरू हुई थी और उन्होने बालक को जन्म दिया। लेकिन वो मृत मालूम पड़ा, इस लिए शमी के वृक्ष के नीचे गड्ढा कर के उसे कपड़े में लपेट कर ढक दिया, और चौड़ा नगर में जा पहुँचे, वही बालक पूस्टी मार्ग का स्थापक बना, वल्लभाचार्य भागवत गीता को अधिक महत्व देते थे, चंपारण्य महाप्रभु की बैठक है, यहाँ प्रत्येक वर्ष वैशाख कृष्ण एकादशी को जन्मोत्सव चंपारण्य में मनाया जाता है, ये महा प्रभु की छठ्ठी बैठक है, बीसवी सदी के अंत में उनके अनुयायी ने वल्लभाचार्य का एक प्रसिद्ध मंदिर बनवाया था, यहाँ पर चम्‍पएकश्वर महादेव का मंदिर स्थित है, यही समीप में माता यमुना नदी का मंदिर है इस में एक छोटी नदी बहती है, मंदिर के नक्काशी और बनावट देखने लायक है, पेड़ो को बिना किसी नुकसान पहुँचाए, यहाँ मंदिर का निर्माण किया गया है, यहाँ गौशाला भी है।  

वहां से हम इको कार से राजिम गए, वहां रास्ते में महा प्रभु जी की हवेली के दर्शन किए गए और फिर राजिम 10 की मी. दूर राजिम लोचन मंदिर पहुँचे इससे पहले हमें इको के ड्राइवर ने राजिम की कहानी सुनाई थी जो इस प्रकार है। 

एक स्त्री रोजाना घड़ा लेकर घी बेचने के लिए शहर जाती थी, वो ग़रीब घर में थी, उसका पति खेती करता था लेकिन बारिश के कारण फसल अच्छी नहीं होती थी, वो स्त्री को उसकी सास धमकाती थी, एक बार वो स्त्री घी बेचने के लिए जा रही थी तो उसे पैर में पत्थर की ठेस पहुँची, घी का धड़ा गिर गया और घी बह गया, वो चिंता में आ गई, उसने प्रभु की अराधना की, उसे भगवान के दर्शन हुए, घी का घड़ा भर गया, वो खुश होकर घी बेचने के लिए शहर में पहुँची, घी बेचने से भी घड़ा खाली नहीं हुआ, वो भर जाता था, उसे बहुत पैसे मिले, वो शाम को घर पहुँची और सास को पैसे दिए, सास ने उसे धमकाया कि कहाँ से लाई इतने सारे पैसे? स्त्री ने अपनी सास को सब कुछ बताया लेकिन वो मानने के लिए तैयार नहीं हुई, बोली की कहीं नाच गान करके तो पैसे नहीं ले आई, तो उसके ससुर ने वो स्त्री के पक्ष में बात की, और उसकी सास को धमकाया, राजिम ने अपने पति को भी बताया और रात को सो रहे थे, तब उसे स्वप्न में प्रभु ने दर्शन दिए और बताया कि तुम्हें जहाँ ठेस पहुँची थी उस पत्थर के नीचे मेरी मूर्ति है, उसे निकालकर वहां मंदिर बनाना, राजिम ने बताया कि प्रभु मेरे पास पैसे नहीं है, मैं कैसे मंदिर बनाऊँ, प्रभु ने कहा कि तुम चिंता मत करो, दूसरे दिन उसने अपनी सास, और पति को स्वप्न की बात कही और जाकर देखा तो विष्णु की पत्थर की मूर्ति मिली, राजा को पता चला तो उसने अपने सैनिक भेजे और मूर्ति ले ली, वहां मंदिर का निर्माण किया गया, जो राजिम लोचन के नाम से जाना जाता है

वहां महा नदी के किनारे मंदिर बना है, मामा और भांजे का मंदिर नदी के किनारे स्थित है, त्रिवेणी संगम है। 

हम वहां से डेम पर गए थे वहां हनुमान जी की 85 फीट की ऊंची मूर्ति देखी और सुदामा पूरी धर्मशाला लौट आए, फिर हम मंदिर दर्शन के लिए और म्युजियम देखने को गए वहां भोजन के रूप में प्रसाद मिला, हम वही से बस में सवार होकर ट्रेन में रायपुर से पूरी की ओर चल पड़े। 



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