हनुमान जी अशोक वाटिका में :

हनुमान जी अशोक वाटिका में :

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राम, लक्ष्मण और सीता जी वन वास पर थे, एक दिन राम शिकार के लिए जंगल में जाते समय सीताजी को सूचित किया गया था कि तुम कुटिया में ही रहना, बाहर मत निकलना लक्ष्मण ने एक लकीर कुटिया के आगे बनाई गई थी और कहा था कि कुछ भी हो लेकिन इस लकीर को पार मत करना, थोड़ी देर बाद सीताजी ने एक हिरण को देखा, वो सुनहरे रंग का था और चमक रहा था, सीताजी ने लक्ष्मण को बताया कि भैया ये हिरण मुजे लाकर दो, लक्ष्मण जी हिरण के पीछे भागे तो हिरण दूर भाग गया, लक्ष्मण जो उसे ढूढने के लिए जंगल में गए, इस ओर एक भिक्षु साधु के रूप में कुटिया के पास आया और कहा कि भिक्षा दे ही मैया, सीताजी भिक्षा देने के लिए बाहर निकले तो साधु ने कहा कि तुम आगे आओ, सीताजी आगे बढ़ कर भिक्षा देने के लिए आगे बढ़ी और लक्ष्मण ने खींची हुई लकीर को पार कर लिया, उसी समय साधु के वेश में आये हुए रावण ने सीताजी को पकड़ लिया और अपने जहाज में बैठाकर उसे अपने राज्य लंका में ले गया।

राम जंगल से लौटे और कुटिया पर आए तो सीताजी कुटिया में नहीं थे, राम सीताजी को ढूंढने लगे लेकिन सीताजी मिले नहीं, राम पागल से हो गए और जंगल में भागे, सीते सीते कहकर वो चिल्लाने लगे, लक्ष्मण जी भी आ पहुंचे वो भी सीताजी को न देखा तो चिंता मे आ गए, इस बात का पता हनुमान जी को चला तो वो सीताजी को ढूंढने के लिए जंगल में गए।

हनुमान जी, सीताजी को ढूंढते-ढूंढते अशोक वाटिका में पहुंच गए, जहां सीताजी को कैद कर रखा था, हनुमान जी सीताजी को प्रणाम कर के बताया कि मैया मैं आ गया हूँ। तुम चिंता मत करना, इस समय रावण के सैनिक को पता चला कि सीताजी को कोई मिलने आया है।

उन्होंने हनुमान जी को पकड़ लिया और उनकी पूंछ पर कपड़ा लपेट कर उसे तेल मे भिगोया और आग लगा दी, हनुमान जी ने पूरे राज्य में दौड़ दौड़ कर आग लगा दी। फिर समंदर में जाकर अपनी पूंछ को पानी में डालकर आग बुझा दी।सीताजी ने हनुमान जी को अपनी सोने की रिंग हाथ की अंगुली से निकलकर दिया, और कहा कि ये राम को देना, नहीं तो आपकी बात कोई मानेगा नहीं।

हनुमान जी राम के पास आए और बताया कि सीताजी वो मिलकर आए, तो राम ने पूछा कि कहा हे मेरी सीता, हनुमान जी ने कहा कि वो रावण के राज्य लंका में अशोक वाटिका में बंदी हे, उन्होंने ये रिंग आपके लिए भेजी है, राम, सीताजी की रिंग को पहचान गए।


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