आधुनिक युग में श्रवण
आधुनिक युग में श्रवण
जी हाँ,आपको ये कहानी पढ़ कर जरूर महसूस होगा कि आधुनिक युग में श्रवण होना सम्भव है, ये भी इस कोरोंना काल में, बात यह है कि एक सुन्दर शहर में एक सुन्दर और सरल, सामाजिक कार्यकर अपने कार्य में मशगूल रहते थे, इन्हें कोरोंना का कोई डर नहीं लगता था, वे अपनी पत्नी और पोता पोती के रोकने पर भी नहीं मानते थे और अपना सामाजिक एवं साहित्यिक कार्य कर रहे थे, विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम आयोजित कर रहे थे, इन्हें समान्य दिनों में किसी की रोक नहीं थी किन्तु महामारी की समस्या के कारण इन्हें बाहर जाने से पोती ज्यादा मना कर रही थी किन्तु अपने दादा ने उसकी भी नहीं सुनी और अपने कार्यक्रम जारी रखे, एक बार दादा जी को बुखार आई, दूसरे दिन कार्यक्रम में शामिल होना चाहते थे किंतु बुखार ने इन्हें कमजोर बना दिया और खांसी भी होने लगी, अस्पताल से बुखार की दवाई ले आने से थोड़ा ठीक हुआ, दूसरे दिन दादी को भी बुखार आई, लड़का इन्हें भी अस्पताल ले गया, दौनों बीमार हो गए, लड़के ने अपने पिता जी से कहा कि कोरोंना कोविड - 19 की रिपोर्ट करवा लेते हैं किन्तु पिताजी नहीं मान रहे हैं।
ज्यादा तकलीफ होने पर लड़के ने सोनोग्राफी कारवाई तो मालूम हुआ कि दौनों पॉजिटिव है, वो चिंता मे आ गया, मित्रों को पहचान वाले डॉक्टर से अस्पताल में भर्ती के लिए कहा किन्तु बहुत मुश्किल से एक जगह अस्पताल में मिली वहा पिताजी को भर्ती कराया और आसपास मे छोड़ आया, इसे मन नहीं कर रहा था पिताजी को छोड़कर जाने का किन्तु क्या करे इस महामारी मे किसी को भी अस्पताल में मरीज़ के साथ रहना सलामत नहीं था, घर आया तो माँ दर्द से चिल्ला रही थी, लड़के ने मुश्किल से एक अस्पताल में जान पहचान से माँ को भर्ती कराया, तीसरे दिन जब लड़का अपने पिताजी को फल फ्रूट देने के लिए अस्पताल पहुचा तो वो कुछ बोल नहीं सका और पिताजी भी कुछ बोल नहीं पाए, लड़के के जाने के बाद पिताजी बहुत रोने लगे, इन्होने फल फ्रूट काम वाली बाई और नर्सिंग बहनो को दे दिया, इस अस्पताल में तीन दिन बाद चौथे दिन से एक एक करके इंसान मरने लगे, दादाजी ने बेटे को फोन करके बताया कि यहा से हमे घर ले जाइए, बेटे ने कहा कि आप को सात दिन तक रहना होगा।
दादाजी पास वाले मरीज़ से और नर्स से बात करते और अपना समय निकाल रहे थे, सात दिन बाद लड़का पिताजी को लेने के लिए अस्पताल गया, डाक्टर आजकल लुटेरे बन गए हैं, बहुत बड़ा बिल बनाकर दिया, लड़के ने बिल चुकाया।
घर गए तो माँ को अलग रूम में और पिताजी को भी अलग रूम में रखा गया लड़का और बहू रोजाना अलग प्रकार की रसोई बनाकर खिलाने लगे, बेटा अपने माँ बाप की बहुत सेवा करने लगा, कभी संतरे का रस कभी अनार के दाने खिलाने लगा, कभी पनीर के पीस मसाले डालकर देने लगा, एक महीने तक अपने माँ बाप की इतनी सेवा की, वे दौनों एकदम स्वस्थ हो गए, उसने अपने माँ बाप के लिए अपनी पूरी बचत खर्च कर दिया, सोसायटी में लोग कहने लगे कि बेटा हो तो ऎसा, श्रवण ही हे, बहुत मेहनत कर रहा है अपने माँ बाप को कितना प्यार से सेवा कर रहा है, भगवान इस कलयुग में ऎसा बेटा मिलना मुश्किल है क्योंकि आजकल बेटे अपने माँ बाप को वृद्धाश्रम मे छोड़ आते हैं और इस बेटे ने तो श्रवण का स्थान ले लिया है, ये आधुनिक युग का श्रवण हे, लोग उसकी सराहना करते थकते नहीं, धन्य हो ऎसे गुणवान बेटे को।