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anjul kansal

Abstract

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anjul kansal

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राखी

राखी

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राखी लघुकथा पंखुरी बोली-"हलो भाभी,मैं राखी पर आ रही हूं लखनऊ,भैया और आपको राखी बांधने।" "दीदी आप क्यों परेशान हो रही हैं।आपकी राखी तो मिल गई है।" "अच्छा मेरी राखी मिल गई ? कब ?" "दीदी परसों ही तो मिली है" पंखुरी की सारी खुशी हवा हो गई। वह धीरे से बोली-"पर भाभी राखी तो मैंने भेजी ही नहीं इस बार।"

अब माया भाभी क्या बोलतीं कि वह और पंखुरी के भैया बाहर घूमने जा रहे हैं ,तुम मत आओ।" हां दीदी कई राखियां आई हैं मुझे लगा आपकी भी आई है।

वैसे इस बार राखी की छुट्टियों में हम घूमने जा रहे हैं बाहर।"

पंखुरी हताश होकर बैठ गई।


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