कल्प वृक्ष बगिया
कल्प वृक्ष बगिया
इनका भी क्या जीवन है, अकेले होते लोग। ऐसा सोचते ही मैंने दिमाग से झटक कर विचार निकाल दिया। अकेले क्यों? वहां तो कई हमसफर हैं। "अकेले" तो वास्तव में वे घर पर हैं जहां सीधे मुंह बहू बात नहीं करती। पोते- पोती "डर्टी दादू","डर्टी दादी"कह कर बिदकते हैं।
फिर जल्दी से कुछ आइस्क्रीम के पैकेट्स लिए। सोचा मौसम अच्छा हो चला है, न सर्द न गर्म। वृद्धाआश्रम पहुंच कर देखा, कुछ वरिष्ठजन धूप सेक रहे हैं, कुछ वृद्ध महिलाएं फागुन के गीत गा रही हैं- "रंग उड़े, गुलाल उड़े, आया फागुन का त्योहार।"
आइसक्रीम के पैकेट्स खोले, भाइयों बहनों, माताओं को खिलाने बैठ गई। बड़े चाव से उन लोगों ने आइसक्रीम खाई, फिर मुस्कराते हुए एक सज्जन बोले-"आज तो मुद्दत बाद आइसक्रीम खाई।" तभी एक महिला हुलसती हुई बोली-"हां भाईसाहब जब भी आइसक्रीम खाने की बात आती तो बहू बोलती- कुछ तो जबान को काबू में रखिए, खाने के बाद रात दिन खाँसेंगे, अपनी तो नींद खराब करेंगे ही, साथ में हमारी भी करेंगे।" तभी वरिष्ठजन खुल कर हँसने लगे। एक बोले- "भाई ऐसी कुनकुनी धूप सेंकते हुए आइसक्रीम खाने का मज़ा ही कुछ और है।"
मैंने देखा सभी के मुख पर शान्ति की रेखाएं उभर आईं। मुझे भी बहुत अच्छा लगा। मैंने काफी समय उनके साथ बिताया, लोकगीत गाए। एक अम्मा ढोलक ले आईं, एक मजीरा। बस उनकी तो होली हो ली।
घर जाने के लिए उठ खड़ी हुई, एक अम्मा जी बोलीं-"बिटिया तुम आईं बहुत अच्छा लगा। हमलोगों के साथ समय बिताया करो, हँसी ठिठोली करो, न जाने कब लुढ़क जाएं। हम तो इस क्षण के लिए तरसते हैं। हम तो पके फल हैं।"
मुझे लगा समय बड़ा बलवान हैं, ये वरिष्ठ लोग समय और अपनापन पाने के लिए तरसते हैं, बाकी तो इन्हें खाना पीना पहनना तो मिलता ही है। अब एक निश्चय लेकर उठी। महीने में एक दो बार अवश्य अपने समय का सदुपयोग इस "कल्पवृक्ष बगिया"के साथ करूंगी।