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anjul kansal

Drama

3  

anjul kansal

Drama

क्षमता

क्षमता

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दीप के जलते ही अंधेरा इधर-उधर झांकने लगा और आनन- फानन में भाग कर पर्दे की ओट में छिप कर दीपक को देख हंसने लगा।अंधेरे को झांकते देखकर दीप भी मुस्कराने लगा।अंधेरे ने दीप से उत्सुकतावश पूछा-"भाई दीपक,तुम क्यों मुस्करा रहे हो ?

तुम तो अकेले हो, जबकि हम तो दूर तक फैले हुए हैं।" दीपक ने जोर से हंसते हुए कहा-"देखो, मैंने तेरे एक साथी को अपने पैरों तले दबा रखा है।"अंधेरा यह सुन रुआंसा हो गया। अब दीपक कुछ कड़क आवाज में बोला-"मैं छोटा सा मिट्टी का दिया भर नहीं हूं, मैं सूर्य का वंशज हूं।

मैं बाती का प्यार, तेल की स्निग्धता व माटी के स्नेह का संगम हूं। मेरी कपास उत्तर प्रदेश की है, तेल गुजरात का है और मिट्टी मध्य प्रदेश मालवा की है। अंधेरे तुझसे तो लोग डरते हैं और अबोध बालक तो रोने ही लगते हैं।"

अंधेरा अब तक दीपक की बात धैर्यपूर्वक सुनता रहा किन्तु अपनी अवहेलना न सुन सका। तुरंत बोला-"अरे भैया दीपक, मेरे आते ही मां लोरी गाने लगती है।जो लोग काम करके थक जाते हैं,वह रात्रि में नींद का मजा लेते हैं और भोर होते ही तरोताजा होकर अपने काम पर चल देते हैं।तेरी तरह आखें फाड़कर नहीं देखते हैं।" प्रभात पंख पसार चुका था। अंधेरे का महत्व जानकर दीपक

अपने बुझने की बारी देखकर तुरंत शांत हो गया।


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