राजा [24 जून]
राजा [24 जून]
मेरी प्यारी संगिनी,
जानती हो संगिनी, बहुत लोग दिल से राजा होते हैं, चाहे वह ग़रीब ही क्यों ना हों, हमारा व्यवहार ही हमें, राजा और रंक की श्रेणी में ला खड़ा करता है।
पहले के ज़माने में, राजा की परिभाषा कुछ और थी, जो अपनी प्रजा के लिए, कानून के दायरे में बंधकर, भावना रहित पालन पोषण करता था।,
मेरी नज़रों में, राजा वह है, जो अपना सर्वस्व निछावर कर देता है, किसी के लिए भी, सिर्फ पैसों से ही सहायता नहीं की जाती, एक गरीब भी अपना श्रमदान देकर, राजा कहलाने का हक रखता है, तो कोई मानसिक रूप से भी अपना सहयोग देकर राजा बन जाता है।
आज का "जीवन दर्शन"
सेवा चाहे आर्थिक हो, या मानसिक, या फिर शारिरिक, ये सभी उच्च श्रेणी में आती है।
आज के लिए बस इतना ही, मिलती हूँ कल फिर से, मेरी "प्यारी संगिनी"।