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Madhavi Sharma [Aparajita]

Abstract Tragedy Crime

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Madhavi Sharma [Aparajita]

Abstract Tragedy Crime

परी

परी

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परियों की दुनिया... एक काल्पनिक दुनिया है.. जिसमें हमने पंखो वाली ख़ूबसूरत सी परी को.. अपनी कल्पना में बिठा रखा है.. जिसका वास्तविकता से कोई लेना देना नहीं है.. क्योंकि वास्तव में परियां होतीं भी है या नहीं.. ये हम में से कोई नहीं जानता.. न ही इसका कोई प्रत्यक्ष प्रमाण है...


हमारी नज़रों में हमारी परी हैं, हमारी बेटियां, आज ऐसे बहुत कम लोग हैं, जो अपनी बेटियों से प्यार नहीं करते, या उसके जन्म लेने पर ख़ुशियाँ नहीं मनाते, पहले भी बेटियों को मान दिया जाता था, परंतु कहीं ना कहीं उनके जन्म लेने पर, दहेज की चिंता दिमाग पर हावी हो जाती थी, और इसीलिए घरवाले चिंतित हो जाते थे!


दहेज रूपी सुरसा, भीषण रूप से, हमारे समाज में मुँह फैलाए खड़ा था, परंतु आज इसका प्रकोप कुछ हद तक कम हो गया है, क्योंकि आजकल की पढ़ी-लिखी बेटियां जो अपने पैरों पर खड़ी है, अपने आप में लक्ष्मी का स्वरूप हैं, नव दुर्गा का अवतार हैं! 


परंतु कहते हैं ना कि कोई भी क्रांति, अपने आप में संपूर्ण नहीं होती, कुछ ना कुछ खामियाँ भी लेकर आती है, कुछ मामलों में यही हुआ है, हमारी बेटियों को खुली छूट देने से, उन्होंने इसका ग़लत इस्तेमाल किया है, स्वतंत्रता को स्वछंदता का रूप देकर, स्वयं को तथा अपने परिवार को मुसीबत में डाल दिया है,,, 


साक्षर होने का मतलब ये कतई नहीं है कि, परिवार की मर्यादा को ताक पर रखकर, दी गई आज़ादी का ग़लत फ़ायदा उठाया जाए, साक्षरता कभी भी, समझदारी का पैमाना तय नहीं करता, बड़ों का अनुभव आत्मसात करना, उनकी बातों को सुनना समझना भी बेहद ज़रूरी होता है, जीवन पथ पर सुचारू रूप से चलने के लिए !!


बड़ों की अवमानना कर, सिर्फ अपने मन की करना, स्वच्छंद रूप से जीवन जीना, बेटियों के लिए, कई बार बेहद ख़तरनाक साबित होता है, क्योंकि उनकी शारीरिक संरचना बेटों से अलग है, इसे समझते हैं इस छोटी सी कहानी के माध्यम से, जो कि यथार्थ के धरातल पर लिखी गई है,,,,


उच्च वर्गीय धनाढ्य परिवार के, पवन जी के यहाँ, जब तीसरे बच्चे के रूप में परी का आगमन हुआ, तो वे बहुत ख़ुश हुए, उनके एक बेटा और एक बेटी पहले ही से थे, परी बेहद ख़ूबसूरत थी, शायद इसीलिए उसका नाम उन्होंने परी रखा था !!


बचपन से ही परी बेहद चंचल स्वभाव की थी, उसके माता-पिता द्वारा उसे संभालना, काफी मुश्किल हो रहा था, सभी बच्चे शांत स्वभाव के होते भी नहीं हैं, एक ही परिवार के बच्चों का स्वभाव, एक दूसरे से काफी अलग होता है, सबसे छोटी होने के कारण, परी को अत्यधिक लाड प्यार किया जाता था, इस कारण से भी वो थोड़ी जिद्दी भी हो गई थी!!


स्कूल की पढ़ाई पूरी करके, जब उसने कॉलेज में दाखिला लिया, तभी से उसके रंग ढंग बदलने शुरू हो गए थे, जिससे पवन जी और उनकी पत्नी रेखा दोनों थोड़ा परेशान रहने लगे थे, टोका टाकी करने पर परी क्रोधित हो जाती, कई कई दिनों तक खाना नहीं खाती, इस डर से रेखा भी अपने पति से, कई बार उसकी हरकतें छुपा जाती, कि ख़ामख्वाह घर का माहौल खराब हो जाएगा!!


आए दिन कॉलेज से परी के खिलाफ कंप्लेंट आने लगे थे, परी ने कॉलेज बंक करना शुरू कर दिया था, घर भी काफी देर से आती, माँ के पूछने पर उसे उल्टा सीधा जवाब देती, इतनी बड़ी बच्ची पर हाथ उठाना भी रेखा को सही नहीं लगता था, वो अंदर ही अंदर कुढ़ती रहती थी, परंतु परी को समझा नहीं पा रही थी,,


और एक दिन वही हुआ जिसका उसे डर था, परी की तबीयत ख़राब हो गई थी और रह रहकर उसे उल्टियां हो रही थी, रेखा की अनुभवी नज़रों ने सब भांप लिया, गुस्से में उसने उस दिन परी को, बंद कमरे में खूब पीटा, हालांकि यह उस समस्या का निदान नहीं था, परंतु कई बार परिस्थितियां ऐसी हो जाती है, जब हमारे क्रोध पर, हमारा काबू नहीं रहता!


फैमिली डॉक्टर से परी का चेकअप करवाया गया, शक सही निकला, परी गर्भवती थी, परंतु उसका गर्भ इतने दिनों का हो गया था कि, डॉक्टर ने अबॉर्शन करने से इंकार कर दिया, क्योंकि परी की उम्र कम थी और इससे उसकी जान को ख़तरा था!


ऐसे में पवन जी और रेखा, दोनों ने मिलकर जो कदम उठाया, वो मानवता को शर्मसार करने वाला था, उनके घर में एक भूसा घर था, जिसमें गाय का चारा रखा रहता था, उन्होंने परी को उसी कमरे में ले जाकर, केरोसिन तेल छिड़ककर, उसे आग लगा दिया, धू-धू कर भूसा और पुआल के साथ जीती जागती परी भी जलने लगी!


घर से निकलती आग की लपटों को देखकर, पड़ोसी दौड़ कर आए, परंतु घर के अंदर वे प्रवेश नहीं कर पाए, क्योंकि पवन जी ने हाते में अपने डॉबरमेन कुत्तों को, खुला रख छोड़ा था, जो कि बाहर वालों को, घर के बाउंड्री वॉल के अंदर, भौंक-भौंककर घुसने नहीं दे रहा था,,,, 


कुत्तों को शायद जानबूझकर ही खुला रखा गया था, ताकि बाहर वाले घर के भीतर आकर पूरा माजरा न समझ जाएं, और परी कहीं उनसे कुछ बोल न दे, ये उनकी सोची समझी साजिश थी, परी अब वो ख़ूबसूरत परी नहीं रही, उसने वीभत्स लाश का रूप ले लिया था! 


इसमें दोष किसका था ??

परी का उदंड स्वभाव और उसकी स्वच्छंदता ही उसके मौत का कारण बन गई थी, उसका तो दोष था ही, परंतु उसके माता-पिता द्वारा उठाया गया कदम भी सही नहीं था, क्या उनके पास और कोई चारा नहीं था, जो वे इतना वीभत्स कांड करने के लिए मजबूर हो गए ??


शायद अपनी इज्ज़त बचाने के लिए उन्होंने ऐसा किया था, परंतु यह बात सबके सामने आ ही गई, क्योंकि इस तरह की घटनाओं में अंतिम संस्कार से पहले पोस्टमॉर्टम ज़रूरी होता है, और पोस्टमॉर्टम से सबको ये पता चल गया कि, परी गर्भवती थी!! 


सभी लोगों का शक, विश्वास में बदल गया कि, परी को जानबूझकर जलाया गया था, नन्ही कली के अंदर पनपता हुआ, अंकुरित हो रहा बीज भी, हमेशा हमेशा के लिए, उस दावानल में जलकर राख हो गया, और उस नन्ही कली के, कली से फूल बनने का सफर, बीच में ही समाप्त हो गया!!


अनुरोध है आज की नई पीढ़ी से कि, स्वतंत्रता और स्वच्छंदता में अंतर करना सीखें, क्योंकि बहुत बड़ा अंतर है दोनों में, और ये सीखना बेहद ज़रूरी भी है स्वंय की सुरक्षा के साथ-साथ, अपने परिवार के भी, मान सम्मान तथा भलाई के लिए!!


                   



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