Rashmi Sinha

Romance Classics

3  

Rashmi Sinha

Romance Classics

प्यार

प्यार

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एक अजीब सी दूरी आ चली थी प्रज्ञा और दिनेश के बीच, बच्चों के होने के बाद से।

उधर दिनेश की अति व्यस्तता, और बच्चों औए सामाजिक संबंधों को निभाते- निभाते प्रज्ञा---, दोनों ही चिड़चिड़े हो चले थे।

प्रज्ञा, आज मैंने अपने कुछ मित्रों को खाने पर बुला लिया है, कुछ ढंग का बना लेना, कह कर दिनेश आफिस की तैयारी में लग गया।

'कमाल है' चीख कर प्रज्ञा ने कहा, कम से कम कुछ समय तो दिया करो सोचने समझने का, बुलाने से पहले मुझ से पूछ तो सकते थे----

अब से आफिस जाने से पहले भी तुम से पूछ लिया करूंगा, प्रज्ञा मैं आफिस जाऊँ?? व्यंगात्मक स्वर में उलाहना देता हुआ दिनेश ऑफिस चल दिया। और प्रज्ञा हाथ का काम छोड़ रोने बैठ गई।

उन दोनों में कहा- सुनी कोई नई बात नही थी, पर अफसोस कि ये विकराल रूप लेती जा रही थी।

आज भी कुछ ऐसा ही हुआ था। गुस्से में भरी प्रज्ञा बोली,

लगता है मर ही जाऊँ, छुट्टी मिले।

और एक गुस्से से भरा प्रतिउत्तर आया," कल की मरती आज मर जाओ"

और उसके बाद तो कान में गड़ चुके इस वाक्य को प्रज्ञा जितना भुलाने की कोशिश करती, उतनी ही उसकी रुलाई भी बढ़ती जाती।

अचानक वो उठी,और स्लीपिंग पिल्स की शीशी उठा,1,2,10 मालूम नही वो कितनी गोली खाती गई--

आंखें खुली तो शरीर निर्जीव सा, सफेद कोट पहने कुछ साये से वो देख पा रही थी, फिर अचेत-----

पुनः आंख खुली तो कमरे में मौजूद दिनेश को वो देख पाई, गालों पर आंसू और अस्फुट से स्वर, पागल हो क्या?भगवान तुम से पहले मुझे उठा ले---

उसके आगे वो फिर कुछ न सुन सकी,आंखें मुंदती गई।

फिर एक बार आंख खुली तो वो घर मे थी। दिनेश की गोदी में उसका सर था, आंखें भरी हुई, लो चाय पी लो, देखो कैसी बनी है----

अब आगे से ऐसी हरकत की, तो मेरा मरा मुँह दिखोगी,

और रोते हुए प्रज्ञा ने उसके मुंह पर अपना हाथ रख दिया।


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