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Padma Agrawal

Romance

4  

Padma Agrawal

Romance

प्यार हो तो ऐसा

प्यार हो तो ऐसा

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रात के ग्यारह बजे थे शिशिर सोने की तैयारी कर रहा था , तभी उसका मोबाइल बज उठा था ....दीदी ने रुआंसी सी आवाज में कहा , ‘शिशिर , इस बार दीपावली यहीं मना लो... ‘

‘नहीं दी , आप जानती तो हो कि मैं आपके यहाँ आना नहीं चाहता ...’

 वह नाराजगी भरे स्वर में बोलीं ,” चाहे तेरी दी कितनी भी मुसीबत में हो “... और उन्होंने फोन कट कर बंद कर दिया ... उसकी आंखों की तो नींद ही उड़ गई थी ...

उसने ऑफिस में अपनी छुट्टी के लिये मेल लिखी और सुबह मुँह अंधेरे की ट्रेन से वह आगरा के लिये निकल पड़ा था ... वह डरा सहमा हुआ जब दी के घर पहुँचा तो सबसे पहले दीदी ही सामने पड़ीं थीं ... वह तो बिल्कुल भली चंगी दिख रहीं थीं ...

“दी यह कैसा मजाक है ...”

‘‘ यदि मैं यह नाटक न करती तो तू भला आता क्या ...’’

‘ हाँ यह बात तो सही है ...’

“अम्मा बाबूजी भी इस बार दीपावली पर यहीं आ रहे हैं ... इसलिये मैंने तुझे भी बुला भेजा ... तुझे यहाँ आये पूरे चार साल हो गये हैं “... वह चुप रहा था ....

दीदी ठीक कह रही हैं ...उसे यहाँ आने से डर लगता है ... वह डरता है ....उन यादों से जो उसका आज तक पीछा नहीं छोड़ पा रही हैं.... वह डरता था... रूही की सपनीली मासूम सी आँखों की यादों से और उसकी खिलखिलाती हँसी से ...

रूही कश्यप दीदी के मकान के बगल में रहती थी ... चार साल पहले जब छुट्टियों में दी के घर गया था तब ही उससे मुलाकात हुई थी ... गोरा संगमरमरी रंग , बड़ी बड़ी काली आँखें ... मानो आँखों में पर्मानेंट काजल लगा रखा हो ... घने लंबे काले बाल और प्यारी सी निश्छल मुस्कान वाली प्यारी सी रूही .... वह तो उसको देखते ही उस पर लट्टू हो गया था ... वह सारी दोपहर दी के पास बैठ कर गप्पें मारती हुई समय बिताती और वह भी उसके आकर्षण में बँधा हुआ बिना कारण ही वहाँ बैठा रहता और उसे निहारता और बीच बीच में मुस्कुराता रहता और कई बार उसका मजाक भी बना देता ..., चिढ़ा भी देता...... लेकिन उसकी मासूम बातें उसे बहुत अच्छी लगतीं ... धीरे धीरे वह उससे भी खुलने लगी थी उसको हिंदी कम आती थी इसलिये वह अंग्रेजी मिश्रित टूटी फूटी हिंदी बोलती ... उसकी बातों में उसे बहुत मजा आता ... वह उसके आकर्षण में डूबता जा रहा था ... न जाने कैसे दीदी की अनुभवी आँखों ने मेरी कमजोरी भाँप ली थी ...” शिशिर , क्या तुम रूही को पसंद करते हो ?”

दीदी के अचानक पूछे गये सवाल से उसके चेहरे का रंग उड़ गया था ... उसकी चोरी पकड़ी गई थी ....

‘नहीं दी , ऐसा कुछ नहीं है ...’

‘नहीं हो... तभी अच्छा है ‘

‘पर क्यों दीदी ...’

‘रूही की सगाई हो चुकी है और दिसंबर में उसकी शादी होने वाली है ...’

मेरे सपनों का महल हल्की हवा के झोंके से ही भरभरा कर ढह गया था ... मैं सोच ही नहीं पा रहा था कि अब क्या करूँ ... रूही मेरा पहला प्यार थी लेकिन वह तो किसी दूसरे की वाग्दत्ता थी ....

वह दी के पास रोज दोपहर में आया करती और मैं कोशिश करता कि उससे सामना न हो लेकिन वह किसी न किसी तरह उसके सामने आ ही जाती और बात करने की कोशिश भी करती लेकिन वह वहाँ से चुपचाप हट जाता ... हम दोनों के बीच ऐसे ही आँख मिचौली चल रही थी कि मैंने अपने जाने का टिकट करवा लिया क्यों कि मेरी जॉब के लिये कॉल आ गई थी ...

अगले दिन मुझे जाना था लेकिन चेहरे पर उदासी की पर्त छाई हुई थी क्योंकि रूही से अलग होना पड़ रहा था ... दिल कह रहा था .. शिशिर एक बार तो कह दे कि रूही मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ ....लेकिन वह मन ही मन सोचने लगा कि हर इच्छा पूरी थोड़े ही होती है ... वह छत पर गमगीन खड़ा होकर उमड़ते घुमड़ते बादलों को टकटकी लगा कर देख रहा था , उसके मन में भी बादलों की तरह अनेक विचार उमड़ घुमड़ रहे थे तभी रूही चुपके से आई और बोली, “ शिशिर कल तुम जा रहे हो .?”

‘हाँ... तुम तो खुश होगी , तुम्हें चिढ़ाने वाला जा रहा है ... तुमसे कोई झगड़ा नहीं करेगा ... तंग नहीं करेगा ... तुम्हारा मजाक नहीं बनायेगा ....’

‘हाँ... हाँ... मैं बहुत खुश हूँ ...’ कहते हुय़े उसकी आवाज भर्रा गई ... मैंने चौंक कर देखा तो वह रो रही थी ... मैं काँप उठा क्या रूही भी मुझसे ...... अगले पल मैंने अपने को संभाला और उससे हँस कर कहा,” यह खुशी के आँसू हैं ...” जब भी वह नाराज होती थी तो फ्रेंच में बोलने लगती थी ... वह न जाने क्या बोल रही थी उसके लिये. समझना संभव नहीं था ....

अगले दिन रूही की यादों के साथ मैं अपनी जॉब में व्यस्त हो गया था ...लेकिन बार बार रूही को भुलाने की कोशिश करने के बावजूद इसमे कामयाब नहीं हो सका था ... कुछ महीनों के बाद दीदी ने बताया कि रूही की शादी हो गई .... जो उम्मीद का दामन मैं अभी तक पकड़े हुय़े था वह भी छूट गया ..

उसके बाद वह अब तीन -चार सालों के बाद आया था लेकिन उसकी निगाहें आज भी घर के हर कोने में रूही को ढूँढ रहीं थीं ...

‘‘कहाँ खोया है शिशिर .?”

“नहीं दी ….उस लड़ाकू रूही की याद आ गई थी ... अब तो वह पूरी अम्मा बन गई होगी ... गोलू मोलू कितने हैं ... यहाँ आती है कि नहीं ... ‘‘

‘वह तो यहीं है ...”

‘ दीवाली मनाने आई है ...’

‘नहीं शिशिर उसके जीवन के तो सारे दिये ही बुझ चुके हैं ....’

‘दीदी मैं समझ नहीं पा रहा कि आप क्या कह रही हो ....’ वह अधीर हो कर बोला था ...

‘शादी के एक साल बाद ही एक हादसा उसके पति को निगल गया ...’

उनकी आवाज दर्द से भीग उठी थी...

उसने दी को पकड़ कर झकझोर दिया था ... ‘दी इतने दिन हो गये आपने मुझे कुछ बताया नहीं .. ‘

‘क्या बताती .... बताने जैसा क्या था ....’

‘दीदी आप क्यों नहीं समझ पाईं कि रूही को मेरी जरूरत थी और मैं उसकी दुःख की घड़ी में उसके साथ नहीं खड़ा हो पाया ..’

‘मैं जानती हूँ कि तुम रूही से प्यार करते हो लेकिन पहले तो वह दूसरी जाति फिर अब वह एक विधवा भी.. ...अम्मा बाबूजी नहीं मानेंगें..... ‘

दी उसे वहाँ अकेला छोड़ कर चली गईं थी ..वह रात भर विचारों की आँधी के झंझावात से जूझता रहा लड़ता रहा था ...सुबह होते ही वह रूही से मिलने उसके घर पहुँच गया था ... रूही सफेद सूट पहनी हुई उदास अपने वराण्डे में बैठी थी ...

‘‘रूही ...” ‘उसकी आवाज सुनते ही वह चौंक कर एकटक उसे निहारने लगी थी ... उसकी बड़ी बड़ी आँखों से आंसू की बूँद टपक पड़ी थी.

माहौल को हल्का करने के लिये वह बोला ,’ जब जा रहा था तब खुशी के आँसू बहा रहीं थीं आज मुझे फिर से देख कर दुखी हो गईं क्या ...’ रोते रोते वह मुस्कुरा उठी तभी अंदर से आंटी आ गईं थी उसने उनके पैर छुए तो बोलीं, ‘आज कितने दिनों के बाद इसके चेहरे पर मुस्कराहट दिखाई पड़ी है .. ‘

उसने फिर से उदासी की चादर ओढ ली थी .. वह समझ नहीं पा रहा था कि इस बोझिल वातावरण को कैसे सामान्य करे ...वह चुप रही थी ...आंटी बोलीं ,’ बस दिन रात य़ूँ ही बैठी आँसू बहाती रहती है ..शिशिर इसे कुछ समझाओ ... जाने वाला चला गया .. वह तो अब लौट कर आने वाला नहीं.... ‘

मैं चाह कर भी सांत्वना के दो शब्द नहीं कह पाया था ... मन में असामंजस्य था ... क्या कहूँ ... क्या बोलूँ ...क्या मैं अपने प्यार को भूल पाया हूँ .... प्यार को भूलना क्या इतना आसान है .... अम्मा पापा दीवाली मनाने के लिये आये थे ... रूही से उनकी मुलाकात हुई ... दीदी मेरे और रूही के प्यार की बारे में जानती थीं... .. वह अक्सर रूही को जबरदस्ती बुला लिया करतीं थीं . दीपावली की तैयारियों में रूही को मदद के लिये बुलातीं और इस तरह से अम्मा बाबूजी से उसका अच्छा परिचय हो गया था ... वह दोनों भी उसे पसंद करने लगे थे ... शाम के समय अक्सर सब साथ में चाय पिया करते ... एक दिन वह फोन पर बात करते हुए छत पर चला गया था तो अम्मा ने उसकी चाय लेकर रूही को ऊपर छत पर भेज दिया था .. ...

वह शिशिर को अकेला पाकर कुछ देर तक मौन रही फिर पूछा ,’ शिशिर तुमने अब तक अपनी शादी क्यों नहीं की .... ‘

‘अरे शादी भी करना है क्या .... मैं तो भूल ही गया था ....’

मेरी बात और कहने के अंदाज पर वह खिलखिला कर हँस पड़ी थी ... जब से आया था, आज पहली बार उसको खुल कर हँसते हुए देखा था ... वह खुश हो गया था ....

‘मजाक मत करो ... सच सच बताओ ...’

मैंने भी कहा , ‘तुमने भी तो शादी नहीं की .... ‘

‘तुम्हें मालूम नहीं कि मैं एक विधवा हूँ .... ‘कह कर वह रो पड़ी थी .....

‘रूही तुम पढी लिखी लड़की हो कर इस तरह की बात कर रही हो ... ये 21 वीं सदी है और तुम बातें कर रही हो 18वीं सदी की .... तुमने मात्र दो साल अपने पति के साथ शादीशुदा जिंदगी बिताई है फिर एक हादसे में वह नहीं रहे .... तो अब क्या सारी जिंदगी तुम उनके नाम पर ऐसे ही रोते हुए गुजारोगी .... रोते रोते जल्दी बूढ़ी हो जाओगी ... सुंदर आँखों पर चश्मा चढ़ जायेगा ... अभी तो आंटी अंकल हैं फिर अपना अकेलापन काटने के लिये क्या करोगी .. कुत्ता बिल्ली पालोगी ...रूही बस करो ... दूसरों के सामने अपने ऊपर तरस खाना और दया हासिल करना ...तुम रोती रहोगी ......लेकिन एक इंसान को अपना नहीं बना सकतीं .... दुनिया में तुम पहली नहीं हो, जिसके साथ यह हादसा हुआ है ... किसी के चले जाने के बाद जिंदगी रुकती नहीं ...न ही रुकेगी .....’

‘जब मै तुम्हें यहाँ से छोड़ कर गया तो मुझे भी यही महसूस हुआ था कि मेरे लिये दुनिया खत्म हो गई है और कहीं भी कुछ बाकी नहीं रह गया है ... पर क्या ऐसा हुआ ... नहीं न.... मैं जी रहा हूँ.....कि नहीं ... इसी तरह तुम भी जी लोगी ... ‘

वह उसकी बात सुन कर पल भर को ठिठक गई थी ... मैं नीचे चला आया फिर कुछ देर में वह भी लौट आई थी ..

दोनों के बीच में मौन पसर गया था ... दीपावली का दिन था ... मैं दीदी के घर की छत पर दिया सजा रहा था , रूही भी अपनी मुंडेर पर पहले से ही दिया सजा रही थी ... हवा के तेज झोंके से दीपक बार बार बुझ जा रहा था .... उसके चेहरे पर मायूसी दिखाई पड़ रही थी तभी उसके दिये को मैंने अपने हाथों से ढक दिया और उसकी रोशनी में उसका चेहरा जगमगा उठा था ....’ रूही वैसे तो मेरे पास बहुत सारी लड़कियों के ऑफर थे लेकिन मेरे दिल में तुम बसी हुई हो ...’ ‘क्या तुम मेरी जीवन संगिनी बनोगी ?....’

 रूही की आँखों से एक नन्हा सा खुशी का आँसू छलक उठा और चेहरे पर पुरानी वाली निश्छल मुस्कान छा गई थी ... वह खुशी से वल्लरी की भाँति शिशिर के सीने से लग गई थी ... उसने भी जल्दी से अपने पास आई खुशियों को अपनी बांहों के घेरे में समेट लिया था...

 अचानक ही छत पर बिजलियाँ जगमगा उठी थी और अम्मा बाबू जी के साथ दीदी और सभी लोगों की तालियों की आवाज से वह दोनों चौंक पड़े थे .....

दोनों ही शर्मा कर अम्मा बाबूजी के पैरों पर झुक गये थे ....


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