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Kiran Bala

Abstract

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Kiran Bala

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प्यार एक बोझ

प्यार एक बोझ

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"मम्मी आप करवा चौथ का व्रत मत रखा करो, " हमें पापा अच्छे नहीं लगते। यह सुनते ही वंदना का चेहरा मानो सफेद पड़ गया था। तुम्हें पता भी है, क्या कह रही हो ? पापा हैं वो तुम्हारे.... उसने स्थिति को सँभालते हुए कहा। पापा हैं तभी तो कह रही हूँ ..... (क्रोध मिश्रित पीड़ा के भाव में उसने कहा)। वंदना भली भाँति जानती थी कि बेटी का इशारा किस ओर है किन्तु वह चुप थी और अचम्भित भी। इतने वर्षों से जो राज़ और वेदना वो छिपाती आई है उसे अपनी बेटी द्वारा सुनने को मिल रहा है ! पापा के बारे में ऐसा नहीं कहते... वंदना ने बेटी को समझाने का प्रयास किया किंतु जवान बेटी को माँ की बात पर और अधिक झुंझलाहट हो रही थी।

हटो,आपसे तो बात करना ही बेकार है.... यह कहते हुए वह उठकर दूसरे कमरे में चली गई।

ऐसा भी अचानक हुआ क्या है ? उसने बेटी को डाँटते हुए कहा। लो खुद ही देख लो... उसने मोबाइल में पापा के मैसेज दिखाए। इस लड़की को देखो, मेरी उम्र की है,

क्या पापा को ये शोभा देता है उससे इस तरह की बातें करना? क्या ये सब करते हुए उन्हें एक बार भी ख्याल नहीं आया कि घर में उनकी भी एक बेटी है ! नहीं करते वो किसी से प्यार -व्यार... उन्हें तो केवल अपने से ही प्यार है। आज तक पूछा है किसी से कि उसे क्या

चाहिए और ये लड़कियाँ , दिखने में तो किसी अच्छे घर की लगती हैं और इनके काम तो देखो..... किसी तेज रफ्तार की गाड़ी की तरह वो बस बोले ही जा रही थी..

हमें भी तो लैपटॉप चाहिए था, मना कर दिया और इस लड़की को दिलाने की बात कर रहे हैं। क्या हम सबकी जरूरतें उन्हें दिखाई नहीं देतीं !

वंदना को मानो काटो तो खून नहीं। जो बात उसने अब तक छिपा कर रखी थी, वो खुद उसके बच्चों द्वारा पता चले एक माँ के लिए इससे ज्यादा दयनीय स्थिति क्या होगी ! एक अपराध बोझ को लिए वह चुपचाप एकान्त

कमरे में चली गई और बूँद-बूँद कर पिछली एक-एक घटना जो अतीत के गर्भ में दफन थी, आँखों से सैलाब की तरह बह निकली। उसके सन्देह करने पर पति का बातों में घुमाकर टाल देना सब याद आ रहा था और उसके समक्ष बस एक सवाल था... "क्या यही प्यार है " !


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