उलझन
उलझन


आज फिर घर से अम्मा का फोन आया था, कुशल क्षेम और सामान्य बातचीत के उपरांत उन्होने अपनी वही बात दोहराई ," तभी बच्चों को लेकर आ जाती तो सही रहता , कम से कम लॉकडाउन में तो पूरा परिवार एक साथ रह पाता। हम यहाँ अकेले पड़े हैं और तू वहाँ बच्चों के साथ।" यदि देखा जाए तो उनका कहना भी ठीक है, पर अम्मा को कौन समझाए कि ऐसे महामारी के दौरान जो जहाँ है, वहीं रहे तो ही बेहतर है।
अब मैं भी क्या कर सकती हूं? (माधवी ने मन ही मन में कहा) अच्छा तो उसे भी नहीं लग रहा था पति वहाँ अम्मा के साथ और वो यहाँ बच्चों के साथ। कोरोना के चलते स्कूल में 20 मार्च से ही अवकाश हो गया था किंतु साथ में ये हिदायत भी दी गई थी कि बीच में दो दिनों के लिये परीक्षा परिणाम पर चर्चा करने हेतु बुलाया जा सकता है इसलिए कोई भी शहर से बाहर ना जाए। किंतु ये कौन जानता था कि जन सुरक्षा हेतु लाॉकडाउन अनिश्चित काल के लिये बढ़ता ही जाएगा।
माधवी अपनी नौकरी की वजह से घर से दूर अपने बच्चों के साथ अकेली रह रहती है। अब तो पति भी हर दूसरे दिन फोन पर उलाहना सा देते हुए कहते हैं कि बसें बन्द होने से पहले नहीं आ सकती थी क्या ? माधवी ने भी पहले ये सोचा था कि वह घर चली जाए पर जब शहर छोड़ कर न जाने का आदेश था तो कैसे जा सकती थी और फिर बस में 12 घंटे का सफर कर के दिल्ली नोएडा जैसी जगह से होकर जाना भी भला कहाँ सुरक्षित होता? दो तीन जगह बस बदलना, सामान और बच्चों के साथ कोई कब
तक और कहाँ तक सावधानी बरतता ?भले ही मास्क लगाया हो, सैनीटाईजर भी हो, खतरा तो होता ही न। बस में भीड़-भाड़ से कैसे बचा जाता।
आज सब कुछ बन्द हुए एक महीने से अधिक हो चला है तो भी अम्मा और पति के मशवरे बन्द नहीं हो रहे कि पास बन जाते हैं, बनवा कर आ जा। ये सब बातें माधवी को उलझा रहीं थी बच्चों से कहा तो उन्होंने भी झुंझला कर कह दिया कि आपसे सीधे -सीधे कहा नहीं जाता कि हम यहाँ पर भी घर पर ही हैं। कम से कम सुरक्षित तो हैं। आप चुप क्यों कर जाते हो, क्या उन्हें ये दिखाई नहीं देता कि बाहर निकलने में कितना खतरा है। यहाँ हमारी सभी किताबें हैं, कब किस किताब की जरूरत पड़ जाए, भला कितनी किताबें या कितना सामान लेकर जाएंगे। किसी की छुुट्टियाँ थोड़ी हैं, सभी अपना -अपना काम घर से कर रहे हैं, चाहे पढ़ना हो या फिर पढ़ाना।
आज जहाँ पूरा विश्व इस संकट से जूझ रहा है ऐसे में घर से बाहर निकलना न सिर्फ अपने लिये अपितु देश के लिये भी खतरा है। ऐसे में दूरी और बचाव ही सुरक्षा है।
बाहर निकलने के परिणाम आज सबके समक्ष हैं। हमारी सुरक्षा के लिये जहाँ आज हमारे कर्मवीर योद्धा अपनी जान की परवाह किये बगैर ड्यूटी पर तैनात हैं वहाँ क्या हम अपनी सुरक्षा के लिये क्या कुछ दिनों के लिये और घर पर नहीं रह सकते?
काश बच्चों की तरह उनके पापा और अम्मा भी इस बात को समझ पाते ! यह सोचते -सोचते माधवी पुन: अपने घर के काम में व्यस्त हो गई।