अतीत के झरोखे से
अतीत के झरोखे से
स्कूल का पहला दिन , पहली कक्षा और पहला शिक्षक
बच्चों के मन पर गहरा प्रभाव डालता है | नया माहौल और सबसे बड़ी बात तो वहाँ परिवार का अन्य कोई सदस्य नहीं होता | डरा सहमा सा वो मासूम बच्चा भय, उत्सुकता का मिला -जुला भाव लिये दो तीन घण्टे न जाने कैसे बिताता है |
पहले दिन की तो ऐसी कोई घटना याद नहीं है पर हाँ, प्री- नर्सरी की कक्षा की एक मजेदार बात आपको बताती हूंँ |
हुआ यूँ कि मेरी मैम ने मेरी अंग्रेजी की कॉपी में A B C
लिख कर दिया और नीचे वाली सभी पंक्तियों में बिंदु लगा लगा कर सभी जगह फिर से ABC लिख दिया और कहा कि घर से लिख कर लाना है|
मैंने घर जाकर कॉपी खोली तो समझ ही नहीं पाई कि लिखना क्या है? पूरा पेज तो मैम ने खुद ही लिख दिया था !
अगले दिन जब मुझसे मैम ने कॉपी मांगी तो मैंने उन्हें चुपचाप कॉपी दे दी | तुमने काम क्यों नहीं किया, मैंने कहा था ना कि लिखकर लाना है... तुम तो इसे ऐसे ही ले आई | (मैम ने थोड़ा सा डाँटते हुए कहा )
मैम कापी पर तो सारा काम आप ने ही कर दिया था, फिर मैं कैसे करती... मैंने भोलेपन में जवाब दिया |
अब शायद मैम को बात समझ आ गई थी कि उन्होंने मुझे ठीक से नहीं बताया कि इन बिन्दुओं के ऊपर लिखना
था |
फिर उन्होंने मुझे समझाया कि कैसे बिंदुओं को जोड़ कर लिखना है | कभी-कभी सोचती हूँ कि मुझे ये घटना ही क्यों याद रही?|या फिर मेरे बाल मन को कहीं न कहीं इस बात की ठेस लगी कि मैं इतनी बुद्धू हूं कि इतनी सी बात मुझे समझ नहीं आई !
उन दिनों की ही एक बात और याद आ रही है कि मेरे पापा ने मुझे एक कविता सिखाई थी जिसे अक्सर सभी मुझसे सुना करते थे... बस उसकी सिर्फ चार पंक्तियां ही याद हैं... कुछ इस तरह से है...
मेरा नाम किरण बाला
मेरे पापा मोटे लाला
मम्मी लाए चाय का प्याला
और भईया मेरा, गाए गाना
आज भी जब इस घटना की याद आती है तो अपने आप ही चेहरे पर मुस्कान आ जाती है |
