एक बूँद जल
एक बूँद जल


"खेत-खलिहान झुलस रहे हैं, बूँद-बूँद को तरस रहे हैं"...
कविता पढ़ते-पढ़ते नन्दू को अचानक ख्याल आया
कि उसे जल बचाओ प्रतियोगिता के लिए चित्र बनाना था जो उसने अभी तक नहीं बनाया। वह तुरंत उठा और चित्र बनाने का सामान ले आया। उसने अभी-अभी पानी पर कविता पढ़ी थी तो उसके मस्तिष्क में सिर्फ खेत ही घूम रहे थे, वो खेत जो पानी की कमी से सूखते जा रहे
थे। उसे समझ नहीं आ रहा था कि चित्र की शुरूआत कैसे करे? तभी एक विचार उसके मन में आया कि क्यों न वर्तमान और भविष्य को मिलाकर कुछ ऐसी तस्वीर बनाई जाए जो सभी को सोचने पर विवश कर दे।
अरे नन्दू ! क्या कर रहे हो? खेलने नहीं जाना है क्या ? (नन्दू के दोस्त धीरज ने उत्सुकता वश कहा)
नहीं, अभी मुझे चित्र पूरा करना है।
दिखाओ तो सही, क्या बना रहे हो ?(धीरज ने कहा)
जल बचाओ पर चित्र बना रहा हूँ, आओ तुम भी देखो। पर शुरू कैसे करना है, कुछ समझ नहीं आ रहा।
देखो नन्दू, हम सब जानते ही हैं कि धरती पर जल स्तर कम होता जा रहा है। आने वाले कुछ वर्षों में ऐसी स्थिति उत्पन्न होने वाली है कि व्यक्ति को एक बूँद पानी के लिए काफी पापड़ बेलने पड़ सकते हैं।
इसलिए हमें पहले यह सोचना है कि पानी को कैसे बचाया जाए ?
प्रत्येक काम में पानी का सावधानी से प्रयोग ताकि पानी बर्बाद न हो, घर के सभी नलों की समय पर जांच और उनकी मरम्मत, आर.ओ. के अतिरिक्त पानी का घर के अन्य कामों में प्रयोग आदि बहुत सी चीजें ऐसी हैं जिनसे पानी को काफी हद तक बचाया जा सकता है। इन सब से भी बड़ी और जरूरी बात यह कि वर्षा के पानी का संरक्षण करने के लिए घरों में पानी के लिये भुमिगत टैन्क का निर्माण।
प्रकृति के अनियंत्रित और अनवरत दोहन के कारण जल जरूरतों की आपूर्ति में कठिनाइयां आ रही है। बढ़ती जनसंख्या और प्रदूषण,कटते पेड़, ग्लोबल वार्मिन्ग, नदियों में अपशिष्ट पदार्थों के विलय के कारण संकट और भी गहराता जा रहा है।
इन मुख्य बिन्दुओं को ध्यान में रखते हुए नन्दू ने चित्र बनाना आरम्भ किया। धीरज भी उसकी साथ में मदद कर रहा था। दो घंटे की मेहनत के बाद जब चित्र बनकर तैयार हुआ तो उसने दूर से उसे देखा।
एक तरफ खाली कुएँ, सूखे तालाब, कटे पेड़, सूखी बंजर भूमि जिसमें दरारों के मध्य कहीं-कहीं उगे हुए कैक्टस, भूमि पर तड़पते हुए पशु -पक्षी तो वहीं दूसरी ओर खुले नलों से बहता हुआ बेतरतीब पानी, जल का मनमाने तरीके से प्रयोग, बढती जनसंख्या, बहुमंजिली इमारतें, प्रदूषण का प्रकोप।
सब कुछ तो ठीक है पर फिर भी ऐसा लग रहा है कि कुछ कमी रह गई है। क्या तुम्हें भी ऐसा लग रहा है ?(नन्दू ने धीरज से पूछा)
हाँ, कुछ तो अधूरा सा है... पर क्या ? कुछ समझ नहीं आ रहा।(धीरज ने कहा)
काफी देर तक सोचने के बाद नन्दू को समझ आया कि कमी कहाँ पर रह गई है।
मुझे पता है कि आगे क्या करना है। (नन्दू ने धीरज से कहा )
उसने ब्रश उठाया, बंजर भूमि पर एक बुजुर्ग व्यक्ति को चित्रित किया, जिसकी आँखें आसमान पर टिकी थी और उसकी आँखों से टपकती हुई एक बूँद के धरती पर गिरने से एक नन्हा अँकुर मुस्कुरा रहा था। उसकी आँखों से गिरा ये एक बूँद पानी मानो उसके पश्चाताप की कहानी बयान कर रहा हो।