पुरुष
पुरुष
पुरुष, मर्द, या आदमी तीनों का मतलब 1 ही है।
ऐसा इंसान जो कि जीवन में बहुत कुछ मायने रखता है पर शायद उसे इतना महत्व नहीं दिया जाता कई पुरुषों को ये भी नहीं पता कि उनके नाम का भी कोई दिवस होता है, जिन्हें बचपन से कहा जाता है कि रोना नहीं, अगर कोई कमज़ोर है तो उसको कहते हैं "मर्द बन"...... ।
बेचारा लड़का रो भी नहीं सकता..... कितना भी दुःख हो, अंदर से रो लो
माँ से बच्चे खुल के रहते हैं, पिता से डर ही होता है, कभी गले नहीं लगते पापा के, कभी करीब नहीं हो पाते, फ़िर भी पिता को कभी शिकायत नहीं होती
घर की शादी के एल्बम में सबसे कम फोटो हमारी होती है क्योंकि जब दूल्हा/दुल्हन की बहन अपनी मेहंदी की फोटो खींचा रही होती है, तब भाई या तो कुछ सामान ले जाने गया होता है या किसी रिश्तेदार को लेने, लेकिन फ़िर भी कोई शिकायत नहीं करते हम, किसी से नाराज़ नहीं होते....
लडकियों को तो पापा की परियां कहते हैं, और हमें क्या कहते हैं.????मम्मी के मगरमच्छ..क्यों भाई हमने किस को खाया है यार
बेटी दिवस भी होता जिस पर सभी इतरा के पोस्ट करते हैं "मेरी बेटी मेरा अभिमान" उस वक़्त घर का बेटा भी देख रहा होता है पर उसे फर्क़ नहीं पड़ता, वो हर हालात में खुश है उसे कोई अभिमान कहे या अपमान फर्क़ नहीं पड़ता।
महिला दिवस भी होता है बड़े celebrations होते हैं tv पर शोज़ होते हैं, सम्मान किया जाता है.... पुरुषों को तो सोशल मीडिया के माध्यम से पता लगता है कि उनका दिन भी है मुझे खुद आज instagram के माध्यम से पता चला।
लेकिन हमें फ़र्क नहीं पड़ता कोई जन्मदिन की शुभकामनाएं ना दे, कोई हमारे लिए celebrate नहीं करे, फ़र्क नहीं पड़ता पर अगर हमारे लिए छोटी सी कोशिश भी दिल खुश कर देती है। कुछ लोगों ने आज लिखा है हमारे लिए, काफ़ी अच्छा लिखा उसके लिए धन्यवाद हमें शुभकामनाएं दी अच्छा लगा.... बात ये है कि कहने को हमें फ़र्क नहीं पड़ता लेकिन सच कहो तो हर किसी से नहीं पड़ता पर जिनसे पड़ता है उनसे अत्यधिक पड़ता है
हम ज्यादा देर किसी से नाराज़ नहीं रह सकते जिसे कुछ दिल से मान लिया फ़िर उसे ख़ास मान लेते हैं, मान लेते हैं कि उसी के लिए जी रहे हैं कई बार होता है कि वो इंसान हमारा केवल निजी स्वार्थ के लिए उपयोग कर रहा हो... दिल से बुरा लगता है पर क्या करे??? किस को बताए.... बस अकेले में रो लेते हैं क्योंकि किसी के सामने रो सकते नहीं क्योंकि... मर्द को दर्द नहीं होता ना।
जाने कौन मुर्ख क्या सोच कर ये बोल गया, लोगों ने तो मान लिया... सच तो है कि मर्द को दर्द होता है, हमें डर भी लगता है , रोते भी है हम, दिल हमारा भी टूटता हैबस बताते नहीं, प्यार होता है हमको भी बस जताते नहीं, एक डर होता है खुद से कि rejection मिला तो टूट जाएंगे, किसके सामने रोयेंगे, रोना allowed नहीं ना हमें क्योंकि मर्द को दर्द नहीं होता।