Sawan Sharma

Drama Tragedy

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Sawan Sharma

Drama Tragedy

एक दिवाली परिवार से दूर

एक दिवाली परिवार से दूर

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पूरे देश के लोग धूमधाम से सारे त्योहार मनाते हैं, परिवार के साथ समय बिताते हैं, नाचते गाते खुशियां मनाते हैं पर कुछ लोग मना नहीं पाते, किसी के पास पैसे की कमी, किसी के पास परिवार नहीं, कुछ लोगों पास सब होता हैं पर छुट्टी नहीं।

कई सारे विदेशी कंपनियां दूसरे देशों में भी होती है, जहा के कर्मचारियों को त्योहारों पर छुट्टी नहीं मिलती , ये ऐसे ही एक कॉल सेंटर की कहानी है।

दिवाली आने वाली थी, दिवाली से पहले ऑफिस की मीटिंग थी, सब लोग आए, तब मैनेजर मयंक ने बोलना शुरू किया "आगे से कड़े तौर पर कहा है कि दीवाली पर किसी भी तरह की छुट्टी नहीं मिलेगी, जो भी जाएगा उसकी नौकरी खतरे में आ सकती, इसलिए कोई भी छुट्टी नहीं लेंगे, आपको दोगुना पैसा मिलेगा, बोनस भी मिलेगा, बस छुट्टी नहीं।

फिर मयंक सभी लोगों को इंसेंटिव कैसे कमाना है ये समझाने लगा, कुछ स्थानीय लोगों को मज़ा आ रहा था, कुछ बाहर के लोग इस बात से दुःखी थे कि घर नहीं जा पाएंगे।

करीब एक घंटे तक ये मीटिंग चली फिर कुछ लोग ब्रेक पर चले गए।

अरे यार पूरे देश में लोग दिवाली मनायेंगे, और हम लोग, इन रूठे हुए ग्राहकों को..। क्या ही जीवन है हमारा ? कभी सोचा भी नहीं था कि ऐसा होगा, सोचा था इस बार वेतन मिलेगा तो दिवाली घरवालों के साथ मनाऊँगा, ज्यादा पटाखे फोड़ुंगा, पर नहीं, ऑफिस में बैठना पड़ेगा, माना रात के पहले छुट्टी हो जाएगी पर रहना तो इसी शहर में पड़ेगा। बोलते है बोनस देंगे , इंसेंटिव मिलेगा ...भाई नहीं चाहिए मुझे घर जाना है।

ऑफिस के कैन्टीन में चाय पीता हुआ इक्कीस साल का नौजवान कुशल ये बातें ज़ोर से गुस्से में बोल रहा था। तभी उसके साथी कर्मचारी सागर ने कहा "हाँ यार, दिवाली पैसे से बढ़ कर है"।

तब एक और साथी कर्मचारी सौरभ, जिसका घर उसी शहर में था, बोला "भाई पैसा मिलेगा, छुट्टी ना भी तो तो क्या हुआ, लक्ष्मी जी आएगी"

तब कुशल बोला "भाई तेरा घर यहीं है, तू अपने परिवार के पास ही जाएगा, तो तुझे फर्क नहीं पड़ता, पर हम लोग जो घर से दूर रहते है ये सोचकर कि थोड़ा पैसा कमायेंगे, हमको फ़र्क़ पड़ता है।"

"विदेशी कम्पनी में काम ही नहीं करना चाहिए था" गुस्से में सागर ने कहा।

धनतेरस के दिन कुशल इंस्टाग्राम चलाते हुए अपनी पीजी में जा रहा था, उसने देखा कि कई लोगों ने स्टोरी पोस्ट की कुछ ना कुछ खरीदने की, कुशल को बैठे बैठे खुद पर गुस्सा आ रहा था, सोच रहा था "इससे अच्छा अपने आसपास अध्यापक की नौकरी कर लेता, छुट्टी तो मिलती , घरवालों के साथ रहता "।

आसपास घरों की सजावट देख कर उसको भी अपने घर की याद आ गई, कि कैसे वो अपने पापा के साथ घर सजाने में लग जाता था, कितना अच्छा लगता था, बाजार जाना, मिठाइयाँ खाना, बहन को रंगोली सजेस्ट करना सब याद आने लगा।

और फिर उसने सोचा घर पर बात तो कर लू तो घर पर वीडियो कॉल किया, घरवालों ने तुरंत ही कॉल उठा लिया, पहले थोड़ी देर हालचाल पूछा फिर उसके पापा ने कहा "यार, आज अकेले ही घर पर लाइट लगाना पड़ा, थोड़ी परेशानी हुई, पर चलो ठीक है, चलता है। सभी लोग भावुक हो गए फिर कुशल की मां ने कहा "कुछ खरीद लेना आज, शुभ होता है" कुशल ने कहा "ठीक है, अभी ले लूँगा कुछ"

कुछ बातें चली और फोन रख दिया, कुशल ने आसपास ढूँढ़ा उसे एक इलेक्ट्रॉनिक दुकान दिखाई पड़ी, वहाँ से उसने स्पीकर लिया और अपने पीजी की तरफ चल दिया।

पीजी में सीढ़ियां चढ़ते हुए उसने देखा कि पूरी पीजी में केवल वो था, सागर शहर में ही किसी रिश्तेदार के घर चला गया , पूरे पीजी में सन्नाटा फैला हुआ था।

पीजी के पास लोग पटाखे जला रहे थे, छोटे बच्चे फुलझड़ी, बड़े बच्चे रस्सी बम, कोई बच्चे हाथ में रख कर पटाखे फोड़ रहे थे , ये देखकर भी उसको घर याद आ गया, लेकिन वो बस याद ही कर सकता था, छुट्टी नहीं थी ना ...।

उस समय कुशल का दिल भावुक हो गया, रोने लगा रोते हुए कुशल इतना चिढ़ गया कि नौकरी छोड़ने के बारे में सोचने लगा, जोर से चिल्लाया"नहीं करना ऐसी नौकरी, जो त्योहार पर भी घर ना जाने दे, मैं तो छोड़ रहा नौकरी"।

 कुशल ने त्यागपत्र देने के लिए फोन बाहर निकाला और सब टाइप कर दिया, बस भेजने के लिए सोचने लगा, और भेज रहा था।

तभी उसको पड़ोसी सुमित भैया, जो लगभग तीस साल के थे, बोले "भाई मत कर, ये जो फैसला ले रहा है, भावुकता में दिल से ले रहा है।

कुशल अपने पड़ोसियों को जानता नहीं था, किसी से बात नहीं करता था, समय ही नहीं मिलता, और वो किसी से बात भी नहीं कर पाता था।

कुशल ने रोते हुए कहा : आप क्या समझोगे, आप तो परिवार के साथ हो।

तब सुमित ने कहा : "अब हूं भाई, तेरी उम्र का था, तब मैं भी एक सॉफ्टवेयर कंपनी में जॉब करता था, कॉलेज में आई थी कंपनी, घर से काफ़ी दूर नौकरी थी, मुझे भी छुट्टी नहीं मिली, तो नौकरी छोड़ने का फैसला लिया पर कंपनी वालों ने छोड़ने नहीं दी तो बिन बताए भाग आया, और शायद वो मेरी ज़िंदगी की सबसे बड़ी गलती थी, जहा भी इंटरव्यू के लिए जाता, सब पूछते "पिछली नौकरी क्यों छोड़ी?, शुरू में मैंने सही बात बता दी तो मुझे नौकरी पर नहीं रखा, फिर मुझे कई झूठ बोलना पड़ा तीन साल मेरी ज़िंदगी के वेस्ट हो गए, मुझे वो कंपनी छोड़ कर सेल्स की नौकरी करना पड़ी, नही छोड़ता तो वहां मैं कितना आगे बढ़ जाता।

कुशल ने कहा : पर भैया, परिवार भी कुछ होता है ना, पैसे कमाने के लिए त्योहार पर घर नहीं जा सकता, स्वार्थी हुआ ये तो ?

सुमित भैया बोले : हां भाई, परिवार सबसे पहले होता है, पर ज़रूरी तो नहीं ना कि हमेशा साथ रहो, कभी-कभी अपनों के लिए अपनों से दूर होना पड़ता है, घर का आराम छोड़ कर घर से दूर है, कि खुद के ख़र्चे उठा सके, ये स्वार्थ तो नहीं हुआ।

और एक बात बता, कई सारे दीपक एक दूसरे से दूर होकर भी रोशनी देते है ना, खासकर रंगोली पर रखा दीपक, जो सारे दीपकों से सबसे ज्यादा दूर रखा होता है फिर भी रंगोली की सुंदरता बढ़ा देता है, ये सोच कि तू वही दीपक है।

चल अब रोना बंद कर, क्या लाया धनतेरस पर क्या लाया ?ये बता।

कुशल ने स्पीकर बताया, सुमित ने उसमें गाने लगा दिए।

फ़िर सुमित ने कहा : यहां भी तेरा परिवार है, हमको अपना परिवार समझ, सुमित ने कुशल को अपने घर बुलाया, वहां पर दिवाली का नाश्ता किया, कुशल सुमित के साथ बाजार गया, वहां से पटाखे लाया, सुमित और उसके घरवालों के साथ पटाखे फोड़े।

उसके घर से कॉल आया कि पूजा कर रहे हैं उसने वीडियो कॉल किया वीडियो कॉल पर धनतेरस की पूजा की , फिर सुमित और उसके घरवालों के साथ पूजा की, थोड़ा घर की याद अब भी आ रही थी लेकिन थोड़ी खुशी थी कि परिवार से दूर कुशल को एक और परिवार मिल गया।


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