पुनर्मिलन
पुनर्मिलन
महानगर की दौड़ती भागती जिंदगी, गाडियों के हॉर्न कि बेसुरी आवाजे, ट्राम,मेट्रो के लिए दौड़ते लोग। हर तरफ शोर गुल। किसी को किसी के लिए समय नहीं ।
ऐसे ही एक सुबह थी आज,प्रिया ब्यूटी पार्लर के लिए निकली थी,आज कोई स्पेशल व्यक्ति आने वाला था उसके पार्लर में,तेज़ तेज़ कदम से वो आगे बढ़ रही थी, कि अचानक पीछे से आवाज़ आई।
रूपा, रुपा.......।
प्रिया, पीछे से आती आवाज़ सुन घूमी, पलट कर देखा.....
सामने एक स्मार्ट नौजवान उसे पुकार रहा था।
है,कौन यह नौजवान ? जिसने उसे रूपा कह पुकारा। वह अपने विचारो में खोई,ठिठक गई। तब तक वह नौजवान उसके निकट पहुंच चुका था।
जोर से चिल्लाया _अरे रुपा,पहचाना नहीं?
कौन हैं आप ?
अरे मैं संजय, वो मुस्काया।
पर कौन हैं आप ? उसने फिर से प्रश्न दुहराया। मैं आपको नहीं जानती और वैसे मैं बता दूं, कि मेरा नाम प्रिया है, रुपा नहीं। अब मुझे देर हो रही है,वैसे भी आपने मेरा काफी वक्त बर्बाद कर दिया है।
संजय को इस जवाब की उम्मीद नहीं थी। फिर उसने सोचा शायद कोई गलतफहमी हो गई । और फिर वो मेट्रो पकड़ कॉलेज निकल गया।
आज कॉलेज में उसका पहला दिन था,उसकी नियुक्ति मैनेजमेंट कॉलेज में लेक्चरर के रूप में हुई थी। एक दूसरे से परिचय करने, कराने में ही बहुत समय निकल गया,तो कॉलेज के डीन ने उसे छुट्टी दे दी कि आप कल से क्लास लीजिएगा ।
यहीं कैंपस में ही आपके रहने का इंतजाम कुछ दिनों बाद हो जाएगा।
संजय लौट आया,अपने होटल में,जहां वो रुका था।
दीवारों की तरफ देखता,वो आज की बात भूल नहीं पा रहा था,उसे पूरा यकीन था,कि वो रूपा ही थी,लेकिन रूपा उसे पहचानने से क्यों इनकार करती,बल्कि वो तो खुश होती ।
जब वो एक दूसरे से अलग हुए थे तो उसकी उम्र 12 साल की थी,और रूपा 10 साल की थी। दोनों गुजरात के मेहसाणा में रहते थे।
संजय के पिता बैंक में नौकरी करते थे,उनका स्थानांतरण अलग अलग शहरों में होता था।
कल संजय के परिवार को जाना था,रूपा रो रही थी,संजय ने उसके आंसू पोछे और बोला, पगली रोती क्यों है? मै कहां तेरे से दूर जा रहा । चल हमदोनो अपने हाथों में एक दूसरे के नाम का टैटू बनवा लेते हैं। ये हर पल हमे एक दूसरे को याद दिलाते रहेंगे।
अचानक दरवाजे की घंटी बजती है,..............
संजय जैसे यादों के भंवर से निकला,। उसने उठ कर दरवाजा खोला,होटल का कर्मचारी खाना लाया था।
खाना खा संजय सो गया। सुबह क्लास के लिए जाना था।
इधर प्रिया भी बेचैन रही, पार्लर में उसका स्पेशल ग्राहक आया,अनमने ढंग से उसने उसे सेवा प्रदान की।
जल्दी घर वापस आ गई। सर बहुत दर्द से फटा जा रहा था।
उसने मेडिकल बॉक्स से दवा निकाली और खा कर, चाय बनाई ।
सब्जी सुबह ज्यादा बनाई थी,रोटी सेंक मा को दिया और खुद भी खाया।
मां बीमार रहती थी,एक नर्स देखभाल के लिए रखी थी। उसके आने के बाद नर्स अपने घर जाती थी।
सुबह की तैयारी कर किचन से वो निकली,आज बिस्तर पर नींद उससे कोसों दूर थी।
कितना कुछ,झेला था उसने छोटी सी उम्र में। आज संजय मिला,इस मोड़ पर जब वो अपनी असलियत नहीं बता सकती थी। वो उसके दोस्ती और प्यार के लायक ही नहीं थी।
"ओहह मैं भी न," ये क्या सोच रही,अरे संजय ने तो किसी सुशील,सुंदर कन्या से विवाह भी कर लिया होगा,"_ रूपा ने सोचा।
15 साल की थी वो तब पिता गुजर गए। घर का सारा बोझ मा के ऊपर आ गया था। रूपा ने किसी तरह इंटर पास किया।
उसके मोहल्ले में एक आंटी आयी थी। वो बहुत अच्छी थी,उन्होंने रूपा से ब्यूटी पार्लर का कोर्स करने कि सलाह दी। आर्थिक तंगी के कारण रूपा को यह उपयुक्त लगा ।
मां ने जुटाए पैसे से उसे ब्यूटी पार्लर का कोर्स करा दिया। आंटी ने कहा छोटी जगह में अच्छी कमाई नहीं है। फिर रूपा और उसकी मां दिल्ली आ गए। यहीं एक बड़े पार्लर में आंटी ने काम दिलवा दिया।
वहां ब्यूटी पार्लर की आड़ में, मसाज पार्लर का धंधा होता था।
एक बार कोल्ड ड्रिंक में नशीली गोली डाल,रूपा की अश्लील वीडियो बना ली गई।
और फिर उसे ब्लैकमेल किया जाने लगा। अब रूपा उस मकड़ जाल में फस चुकी थी,वह तड़प रही थी,लेकिन निकलने का रास्ता नहीं मिल रहा था।
अंत में अपनी नियति मान वो उस धंधे में रम गई। बड़े बड़े रईसजादे,मंत्री सब उसके ग्राहक थे। अब वो प्रिया मैडम हो चुकी थी।
उसने फिर कोलकाता में अपने पार्लर की एक श्रृंखला खोली,और मां को ले यहां आ गई।
मां को कैंसर था,वो भी कुछ ही दिनों की मेहमान थी,पैसा पानी की तरह उसने बहा दिया था,लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ था, कैंसर की कोशिकाएं तेज़ी से पूरे शरीर में फ़ैल रही थी।
सोचते सोचते पता नहीं कब में आंख लग गई। अलार्म की कर्कश आवाज से उसकी नींद टूटी। जल्दी जल्दी भागी किचन में ।
आज देर तो हो ही गई।
खैर 3,4 दिन से संजय नहीं दिखा। वो सोच रही थी,अच्छा ही है अतीत सामने ना ही आए।
उस दिन वह डायमंड हार्बर के पास के होटल में किसी से मिलने गई थी । वहीं संजय का कॉलेज भी था।
वो वहां चाय पीने पहुंचा था। अचानक उसकी नजर रूपा पर पड़ी जिसने पीली साड़ी गुलाबी लिपस्टिक लगा रखा था,वह बला की खूबसूरत लग रही थी।
रूपा का ध्यान उसकी तरफ नहीं गया था।
कुछ देर में रूपा के साथ आया व्यक्ति चला गया। रूपा टेबल पर अकेली थी।
आज संजय ने मन ही मन ठान लिया था कि वो सच्चाई का पता लगा कर छोड़ेगा।
वह धीरे से उसकी टेबल के पास आया। एक्सक्यूज मी, _ क्या मैं यहां बैठ सकता हूं?
रूपा ने कोई विरोध नहीं किया।
संजय उसके सामने बैठा था,वो आंखें मिला नहीं पा रही थी,।
उसने कहा,कहिए क्या बात है।
उसने कहा तुम प्रिया नहीं हो,रूपा मुझसे क्यों छुप रही,इतने सालों बाद मिली हो,और अपने संजय को पहचानने से इंकार क्यों?
रूपा चुप थी। वह उठी और घर की तरफ चलने लगी,संजय भी उसके पीछे भागा।
रूपा हमेशा पूरे बाजू की ब्लाउज़ पहनती थी।
संजय ने अंतिम अस्त्र फेंका, अगर तुम रुपा नहीं हो,तो मेरी शंका को मिटा दो,अपने बाजू ऊपर कर मुझे दिखा दो,मेरी रूपा ने टैटू बनवाए थे मेरे नाम के ।
रूपा कार का गेट खोलते खोलते ठिठक गई।
उसने इशारे से उसे बुलाया।
संजय उसके साथ कार में बैठ गया। रास्ते में पूरी तरह संवाद हीनता की स्थिति थी।
दोनों अपने आप को संभाले थे। एक पुनर्मिलन का सैलाब था जो बहुत से सवालों से घिरा,टूट नहीं पा रहा था।
एक बड़े से मकान के बाहर कार रुकी।
रूपा निकली,पीछे पीछे संजय भी।
अंदर एक कमरे में मां लेटी थी,कमजोर हो गई थी,बाल झड़ चुके थे।
सूनी सूनी आंखों से अजनबी को घूरा,रूपा को देखा।
संजय मां को पहचान गया था,अब कोई संदेह नहीं बचा था कि ये मेरी रूपा ही है।
वो मां से बोला,मै आपका संजू हूं।
मां की सूनी आंखें खुशी से चमक उठी। उसे अपने पास बुला कर गले से लग गई।
बेटा कहां थे?_ रूपा ने बहुत झेला,फिर उसे झकझोर कर पूछने लगी,तूने शादी कर ली।
संजय ने कहा नहीं मां,मैंने शुरू से ही रूपा को ही प्यार किया था। मैंने रूपा को ही अपनी पत्नी के रूप में देखा था।
रूपा सबके लिए चाय बना रही थी,और बाते भी सुन रही थी।
संजय उसके पास आया,और उसने धीरे से कहा क्या हमारे बचपन के प्यार को अंजाम मिलेगा रूपा।
तुम मिसेज संजय बनोगी।
रूपा ने कहा,मै तुम्हारे लायक नहीं संजय। मेरा शरीर मैला हो चुका।
संजय ने कहा,मैंने तुमसे प्यार किया,इस शरीर में सुंदर आत्मा से प्यार किया । मेरा प्यार सच्चा है रूपा ।
रूपा और संजय के एक होते मां ने दुनिया से अलविदा कह दिया।

