प्रवास कथा
प्रवास कथा
पिछले दिनों काम से दिल्ली जाने कि आवश्यकता पड़ी. हफ्ता दस दिन का काम था, होटल लेकर रहने के बारे में सोचा तो लगा कि बहुत ज्यादा पैसे खर्च हो जायेंगे. वहां एक तो कम पैसों में ढंग का होटल मिलेगा नहीं और अच्छे होटल की एक सप्ताह की खर्ची बहुत ज्यादा हो जाएगी.....फिर क्या किया जाय? किसी मित्र रिश्तेदार के यहाँ रुक जाऊं?....हाँ .....ये ठीक रहेगा !! लेकिन किसके यहाँ? दोस्त तो मेरा कोई ऐसा था नहीं जो दिल्ली में रहता हो और जिससे इतनी घनिष्ठता हो कि उसके यहाँ रहने के लिए जाया जा सके. ऐसे में ले देकर रिश्तेदार ही बचते हैं, मैंने अपने दिमाग में उन करीबी रिश्तेदारों के नाम छांटने शुरू कर दिए जिनके यहाँ हफ्ता भर रुका जा सकता हो. काफी माथापच्ची के बाद तीन ऐसे नाम शार्टलिस्ट किये जहाँ ये सम्भावना बन सकती थी. वे थे .....
1. चाचा का लड़का सोनू उर्फ़ अविनाश - बचपन का दोस्त सहपाठी,स्वावभावतः मिलनसार, वाक्पटु लेकिन कंजूस प्रवृत्ति का . वर्तमान में दिल्ली कि एक प्रतिष्ठित बहुराष्ट्रीय कम्पनी में कार्यरत. खुद का एक छोटा सा फ्लैट है और बीवी बच्चों के साथ रहता है, पिछली बार चाचा कि बरसी पर गाँव आया था तो मुलाक़ात हुई थी. घर का पता और फ़ोन नंबर भी दिया था और कहा भी था कि कभी दिल्ली आना हो तो दर्शन देना.परन्तु पत्नी ने इसके नाम पे वीटो कर दिया. उसके अनुसार इसकी बीवी बहुत घमंडी और दिखावा करने वाली है, यही वजह है कि इनकी अपनी माँ का वास वहां कभी नहीं हो पाया और आज भी वो गाँव में ही रहती हैं, चाचा कि बरसी के बाद गाँव की अपनी पुश्तैनी ज़मीन को औने-पौने बेचना भी चाहते थे जिसको लेकर माँ बेटे में भारी तकरार हुई थी और अंततः वे लोग मुँह फुलाकर बिना खाए-पिए सपरिवार वापिस दिल्ली लौट गए थे. बच्चे भी बहुत शैतान हैं,बड़े-बुजुर्गों की इज्जत करना नहीं जानते, ऐसे में इनके यहाँ जाना उचित नहीं होगा.
2. मुन्ना - आठ बरस का था तो माँ स्वर्गवासी हो गयी, पिता माँ के स्वर्गवासी होने कि वेदना को झेल नहीं पाए और एक रात कहीं निकले सो फिर लौट के आये ही नहीं. पता नहीं, कहीं चले गए या अपनी इहलीला समाप्त कर ली...कभी कुछ पता ना चल सका. बेसहारा बच्चा इधर-उधर भटकता फिरता. हमारे यहाँ भी छोटा-मोटा काम कर देता था. बदले में गाहे-बगाहे खाना-पीना कपडे-लत्ते की मदद हो जाती थी. सत्रह बरस तक यूँ ही पेट पालने के बाद एक दिन वह भी गाँव से भाग गया . लोगों को लगा कि यह भी कहीं मर-खप गया कि साधू-सन्यासी बन गया. लेकिन चार बरस के बाद यह वापिस गाँव आया. आया तो ऐसा आया कि देखने वाले दंग रह गए. वह पूरा का पूरा बदल चुका था. रईसी बदन के पोर-पोर से झलक रही थी पता चला कि वो भाग कर दिल्ली में किसी सेठ के यहाँ नौकर हो गया था. सेठ बिल्डर था. धीरे-धीरे वह सेठ के इतने करीबी हो गया कि उसका दाहिना हाथ हो गया. अब वह उसके सारे कच्चे-पक्के कामों को देखता है और उसका सबसे बड़ा राजदार है.गुजरे बर्षों में उसने खूब तरक्की की है. शहर में अपना घर है ..ज़मीन है शानो- शौकत कि सारी वस्तुएं है...बस एक अदद पत्नी कि तलाश है. मुझसे भी उसने कहा था कि कोई जरुरत हो तो दिल्ली आइये,निस्संकोच कहिये.साथ में यह विनती भी कि उसके लिए कोई सुयोग्य कन्या हो तो जरुर बात चलाइये.पत्नी को इसके यहाँ जाने में भी संशय था.. आवारा लौंडा .. पता नहीं किन लोगों के साथ उठना-बैठना हो, पीने खाने वाला तो होगा ही, और भी न जाने क्या-क्या कुसंगतियाँ हों. अतः इसे होल्ड पर रखते हुए अगले नाम पर विचार किया जाय.
3.विनीत उर्फ़ वेदा बाबू - अपने पट्टीदार पंडित रामकृष्ण का छोटा लड़का, पिता गाँव में पंडिताई और थोडा-बहुत खेती-बाड़ी का काम करते थे, लेकिन जीवन दरिद्रता में व्यतीत होता था. चार लड़कियों के बाद विनीत का जन्म हुआ था. अतः माता-पिता और बहनों की आँख का तारा था. विद्यालय के शिक्षक ने पाठ याद ना करने कि वजह से एक दिन पिटाई कर दी, उस दिन के बाद पुनः उसने विद्यालय का रुख नहीं किया. घर पर ही पिता के कार्यों में हाथ बंटाना शुरू किया और उनसे पंडिताई कि शिक्षा ली. आधुनिक ज़माने का था सो पिता कि मृत्यु के पश्चात गाँव में पूजा-पाठ से मिलने वाले नगण्य आय से जीवन-निर्वाह कठिन होता देख दिल्ली चला गया. वहां किसी तरह एक मंदिर में वेदा बाबु के नाम से पुजारी बन बैठा. मंदिर धनाड्य लोगों कि बसावट के आस-पास ही था सो देखते ही देखते तरक्की कि सीढियां चढ़ता चला गया और आज उसके कई सारे मकान-दुकान वहां किराये पर लगे हुए हैं, धन-धान्य की इफरात है. मंदिर के अहाते में बनी आलिशान मकान में सपरिवार निवास करता है. लेकिन दिक्कत यहाँ भी थी और वो ये कि बहुत बरसों से इससे बात भी नहीं हुई है परन्तु भैयारी का परिचय देते हुए इसके यहाँ जाया जा सकता है.
पत्नी के साथ काफी दिमाग लगाने के पश्चात तय हुआ कि तीनो ही के यहाँ एक एक कर प्रयास किया जाय. जिनके यहाँ सुभीता लगने लगे उसी के यहाँ डेरा जमा दिया जाय अन्यथा अगले कि शरण ली जाय. ऐसा तय कर मैंने दिल्ली प्रस्थान की तय्यारी करनी शरू कर दी.
(क्रमशः)
