इंतज़ार
इंतज़ार
रात का साया अब पूरी तरह से उतर आया है. मोहल्ले के सभी घरों में रोशनियाँ कर दी गयी हैं. दरवाजे के उस पार सड़क पर लोगों की आवाजाही अब कम होती जा रही है. मुझे अब उठना ही होगा. दोपहर से पडा हुआ हूँ. ना तो नींद हुई और ना ही उठने की इच्छा हुई......लेकिन अब कितनी देर? मैं बिस्तर छोड़ देता हूँ. बिजली का स्विच ऑन करके पुनः बिस्तर पर बैठ जाता हूँ और सारे घर का मुआयना करता हूँ....किसी अजनबी की तरह. बहुत देर से किसी का फ़ोन नहीं आया, पता नहीं मैंने मोबाइल को कहाँ रख दिया? अक्सर कहीं रख कर भूल जाता हूँ.. इधर-उधर तलाश करने पर अभी वो मुझे बिस्तरे के नीचे गिरी हुई मिली..देखता हूँ तो सुबह से बहुत सारे कॉल थे जिन्हें मैंने मिस कर दिया था परन्तु उसका एक भी कॉल नहीं था. वो मेरी जिंदगी में होती तो अभी तक ना जाने कितने कॉल की होती और कितने-कितने सवाल ....."नहाये? खाना बनाया? शर्ट कौन सी पहने हो? विडियो कॉल करती हूँ, देखना है मुझे और न जाने क्या-क्या कहती रहती.. तीन महीने हुए जब उसने अचानक बात बंद कर दी.सभी संपर्क सूत्र तोड़ लिए. ये तक नहीं बताया कि उसने आखिर ऐसा क्यूँ किया?
इन गुजरे तीन महीनों में मैंने उसके फ़ोन और मैसेज का कितनी बेसब्री से इंतज़ार किया ये मैं ही जानता हूँ.मैं उसे कॉल कर नहीं सकता था क्यूंकि उसने मेरा नंबर भी ब्लाक कर दिया था. शुरूआती दिनों में एक आशा सी बंधी रहती थी कि कभी वो अचानक कॉल करेगी,बात करेगी .... और मैं घंटों एकटक मोबाइल को निहारता रहता, उसके पुराने मैसेज को पढता रहता .. बार-बार ...अनगिनत बार .. एक नशेडी की तरह, जो पर्याप्त ना होने की वजह से उसकी कमी को और भी द्विगुणित कर देती थी. फिर समय के साथ उसके कॉल या मैसेज आने की आशा धूमिल पड़ने लगी... मैं रात-रात भर सोचता कि आखिर मुझसे क्या भूल हुई.. कम से कम ये भी तो बता देती.
अब मेरा मन किसी भी काम में नहीं लगता था. मैंने नौकरी छोड़ दी.क्यूंकि मैं नौकरी की जिम्मेदारियों को पूरा नहीं कर पा रहा था, हर वक़्त ख्यालों में वही रहती थी.. हर पल सोचता कि अभी वो क्या कर रही होगी? किन-किन से बातें कर रही होगी, कितनी खुश होगी पता नहीं किन लोगों के साथ. उसे मेरी याद भी न आती होगी. यही सब सोच-विचार में मैं कोई भी काम ढंग से नहीं कर पाता था.
मेरा अपने घर से बाहर निकलना अब बहुत कम हो चुका था, कभी निकलता भी,तो हर गलियां हर चौराहा मुझे उसकी याद दिलाता .... उसके साथ गुजरे हुए पल फिर से जीवंत हो उठते और तब.....मुझे शहर के ज़र्रे ज़र्रे से बेचैनी होने लगती .उसके बिना मुझे वहां कि हवा में सांस लेना भी दूभर होता सा जान पड़ता.
आखिरकार मैंने वो शहर भी छोड़ दिया..एक दिन मैंने अपने कमरे को आखिरी बार देखा जहाँ वो एक दो बार आई थी,...बैठी थी ..... मुझसे बातें की थी. थोड़ी देर मैं अपलक उन पुराने पलों को महसूस करता रहा,फिर बाहर निकल आया और सीधा रेलवे स्टेशन जाकर जो पहली रेल मिली उसपर सवार हो गया .. बिना यह भी जाने कि उसका गंतव्य क्या है.लेकिन राहत की सांस मुझे फिर भी न मिली. वो हर वक़्त मेरे ज़ेहन में सवार थी.
मैं नए शहर में आ गया, नया कमरा ले लिया.नयी गलियां.....नए रास्ते......नए लोग ... ...!! लेकिन सब ऊपर ऊपर ... अंदर से मेरा मन वही पुराना रहा, जिसे नया करने को मैंने पुराना सब छोड़ दिया था. जब से मैं यहाँ आया तबसे ज्यादातर समय अपने कमरे में सोया ही रहता था. जिस नौकरी को मैं पहले करता था वहां से मुझे मेरे जो भी पैसे बनते थे वो मिल गए थे. इसीलिए फिलहाल रहने खाने कि चिंता नहीं थी. मैं यंत्रवत किसी होटल में खा लेता था...सोचता था उसे मालूम भी होगा कि अब मैं उसके शहर में नहीं हूँ ... उसे ये भी पता होगा कि मैं अब कहाँ हूँ, किस हाल में हूँ.....!
अब मैं अक्सर बीमार रहने लगा हूँ, होटल का खाना पचता नहीं है.वो मुझे कभी बाहर का खाना खाने नहीं देती थी. विडियो कॉल करके कहती मेरे सामने में बनाओ..मैं देखती रहूंगी, फिर साथ खायेंगे..रात के खाने के बाद वो मुझे ज़बरदस्ती दूध पीने को मजबूर करती थी.उसके स्नेह का अभाव अब मेरे बदन से होते हुए मेरी रूह में उतर गया है. मैं अब बहुत कमजोर हो गया हूँ. थोडा सा भी चलता हूँ तो साँसें उखड़ने लगती है,जी घबराने लगता है और बदन पसीने से तरबतर हो जाता है. काश.....!! वो एक बार मुझे देख लेती तो अब मेरी हालत देखकर रो पड़ती.
अभी सोच रहा हूँ कि जल्दी से बाहर जाकर कुछ खा लेता हूँ फिर आकर सो जाऊँगा. दरवाजे के बाहर दूर तक चली गयी संकरी गलियों को पार करते हुए मुख्य रास्ते पर बस स्टैंड के आस-पास झुण्ड के झुण्ड होटलों में से एक में जाकर खाने का आर्डर दिया और राह से गुजरती आने-जाने वाली बसों को देखता रहा, मन में फिर एक हूक सी उठी कि काश किसी बस में से अचानक वो उतरती और मुझे यहाँ बैठा देखती तो उसके चेहरे पर कैसे भाव आते-जाते? खाते-खाते मैं हर आती हुई बसों से उतरती हुई सवारियों को ध्यान से देखता रहा. कभी-कभी उससे मिलती जुलती कद काठी वाली सवारी को देखकर मैं चौंक उठता था जबकी मुझे अच्छे से मालूम था कि इन सबमे से वो कभी नहीं हो सकती है.......!! ....कहीं नहीं हो सकती है !!!
खाना खाने के बाद भी मैं बहुत देर तक वहां बैठा रहा. धीरे-धीरे सारे लोग चले गए और होटल बंद करने का वक़्त हो गया. मैं बिल चुकता करके लडखडाते क़दमों से कमरे की ओर चल पड़ा..सारी दुकानें बंद हो चुकी थीं, लोगों की आवाजाही न के बराबर थी.सन्नाटे में डूबे रास्ते पर कहीं-कहीं सिर्फ आश्रयविहीन कुत्तों के झुण्ड थे.रात के सन्नाटे में एक बार फिर मुझे उसके साथ अपने शहर कि गलियों में साथ-साथ टहलना याद आ गया..मैं उससे कहा करता कि सोचो अगर कभी मैं तुमसे बिछुड़ जाऊ तो? और वो कहती कि मैं तुम्हें जन्मों जनम तक छोडूंगी तब न ...!
मेरा मकान आ गया है, मुझे फिर अजीब सी बेचैनी हो रही है...मैं दरवाजा खोल कर बिस्तरे पर ढेर हो जाता हूँ. मुझे सांस लेने में भी तकलीफ हो रही है. मैं एक बार फिर मोबाइल खोलता हूँ. उसका कोई कॉल या मैसेज नहीं है. थरथराते हाथों से मैं उसे कॉल करता हूँ.. उसका नंबर हमेशा की तरह बिजी आ रहा है, यानी कि मेरा नंबर अभी भी ब्लॉक है. मेरी बेचैनी बढ़ती जा रही है, सांस अब बिलकुल नहीं लिया जा रहा है...मेरे हाथ से छूट कर गिरा हुआ फ़ोन अचानक बजने लगता है.अब मुझमे मोबाइल उठाने की भी हिम्मत नहीं है, मेरी नज़रें धुंधला रही हैं,दूर मोबाइल के स्क्रीन पे उसी का नाम फ़्लैश हो रहा है... इन तीन महीनों के इंतज़ार की इन्तेहा के बाद आज मेरी तपस्या का फल मेरे चाँद फासले पर है, मैं पूरी कोशिश करता हूँ कि मेरा हाथ मोबाइल तक पहुँच सके..लेकिन मेरी हर कोशिश नाकाम हो जाती है..मोबाइल बजता ही रहता है और मेरी आँखें धीरे-धीरे मुंदती चली जा रही हैं....मैं सोचता हूँ ..वो क्या कहना चाह रही होगी? शिकायत,पश्चाताप,गिले-शिकवे, गलतफहमियां,अनुनय-विनय,प्रेम,नफरत,आवेग.......या पता नहीं क्या-क्या....लेकिन अब मेरे मन में सारी भावनाएं डूब रही हैं और मेरी पथराती हुई भावनाहीन आँखें अब भी जलते-बुझते मोबाइल स्क्रीन को देख रही हैं.......!!
.

