प्रकाश-पुंज का रहस्य
प्रकाश-पुंज का रहस्य
सोमेंद्र अभी भी उसी घटना को बार- बार याद करके, प्रकाश-पुंज की गुत्थी को समझने का प्रयास कर रहा था। साथ ही साथ मन में एक डर भी हिलोरें ले रहा था। सोमेंद्र सोच में डूबा था, तभी प्रिया बोलती है "क्या हुआ सोमेंद्र? किस सोच में डूबे हुए हो?" सोमेंद्र धीमे स्वर में कहता है "कुछ नहीं बस उसी रोशनी के बारे में सोच रहा था"।
तभी विशाल बोलता है "यार सोमेंद्र अब छोड़ उस बात को, तू जितना उस घटना को याद करेगा, तुझे उतनी ही ज्यादा परेशानी होगी। सोमेंद्र - "ठीक है नहीं करता मैं अब उस घटना को याद। हम सब फिर मस्ती भरी बातें करते-करते सो जाते हैं।
मैं अभी तक जाग रहा था, क्योंकि मुझे नींद ही नहीं आ रही थी, मुझे उस प्रकाश-पुंज का रहस्य जानना था। मैं सोने की कोशिश किया परंतु बार-बार शैलेंद्र के साथ हुई घटना मेरी आँखों के सामने आ रही थी। अब तक प्रिया, सोमेंद्र और विशाल गहरी नींद में सो चुके थे।
मैं वहां से उठकर मंदिर के बाहर गया, जहां पर हमने आग जलाई थी, अब तक आग तो बुझ चुकी थी, परंतु उसके अंगारे अभी भी सुलग रहे थे, मैं जाकर वहीं बैठ गया। चारों तरफ अंधेरा था और जंगल के जानवरों की ध्वनि मेरे कानों तक आ रही थी। तभी मैंने कुछ अजीब सा महसूस किया, मुझे ऐसा लगा जैसे कोई मेरे पीछे से गुजरा, मैंने पीछे मुड़ कर देखा तो वहां पर कोई नहीं था। मेरे मन में ख्याल आया कि यहां कुछ तो रहस्य है, जो आंखों से दिखाई नहीं दे रहा है।
मैं वहां से उठा और उस जगह गया जहां पर सोमेंद्र बेहोशी की हालत में पड़ा मिला था, मैंने वहां चारों तरफ जांच परख की परंतु वहां पर कुछ भी ऐसा नहीं मिला, जो मेरे मन में उठ रहे सवालों का जवाब दे सके, तभी मेरी नजर एक लॉकेट पर जाती है, जैसे ही मैं लॉकेट को उठाता हूं तो मुझे एकदम से झटका लगता है और अचानक जोर का झटका लगने से मैं लॉकेट को हाथ से छोड़ देता हूं, तभी मेरे सामने एक रोशनी प्रकट होती है।
रोशनी के प्रकट होने से मेरी आंखें एकदम से चकाचौंध हो जाती हैं, तो मैं अपनी आंखों के आगे अपना एक हाथ लगा लेता हूं, धीरे-धीरे रोशनी कम हुई तो मैंने अपना हाथ आंखों के सामने से हटाया।
मेरी आँखों के सामने अब प्रकाश-पुंज था। प्रकाश पुंज से इतनी रोशनी निकल रही थी कि चारों तरफ उजाला हो गया था, तभी प्रकाश पुंज से एक ध्वनि आयी "तुम यहां क्या कर रहे हो" मैंने प्रश्न का उत्तर देने की बजाय प्रश्न ही पूछा "तुम कौन हो? क्या हो? सामने आओ, ऐसे विलुप्त रहकर क्यों प्रश्न पूछ रहे हो"
सहसा प्रकाश-पुंज और उसकी रोशनी विलुप्त हो जाती है और प्रकट होता है, एक खतरनाक चेहरा जिसकी आंखें एकदम लाल थी, ऐसा लग रहा था जैसे उसकी आंखों से रक्त निकल रहा हो, चेहरा एकदम जला हुआ और चेहरे से धुआँ निकल रहा था। कोई भी अगर उस चेहरे को देखता तो बेहोश हो जाता परंतु मैं साहस करके वहां पर खड़ा रहा। मैंने पूछा "हे विप्रवर आप कौन हैं.?" "आपका ये चेहरा और वह रोशनी कैसी थी?"
उसने उत्तर दिया, "मैं नागार्जुन हूं, मैं इस मंदिर में ही निवास करता था" मेरी मृत्यु 2 वर्ष पूर्व हो चुकी है और मेरी मृत्यु का कारण मेरी दिव्य शक्ति से परिपूर्ण मणि है। मणि के लिए कुछ लुटेरों ने मेरी धोखे से हत्या कर दी थी। अगर वार सामने से होता तो कोई दिक्कत नहीं थी, परंतु मुझे धोखे से मारा गया। मैं बरसों से इस मंदिर में पुजारी बनकर रहा, माँ चंडमालिका ने प्रसन्न होकर मुझे यह दिव्य मणि प्रदान की थी, परंतु एक दिन जब कुछ लुटेरे मंदिर में आए तो मैंने मंदिर और मंदिर के धन की रक्षा करते हुए उनसे लड़ाई की और उनको वहां से बाहर खदेड़ा।
बदला लेने के लिए उन लुटेरों ने स्वयं को अच्छा इंसान बनाने की सांत्वना दी, परंतु मुझे क्या पता था कि केवल यह एक दिखावा है, मैंने उन पर भरोसा कर लिया। एक दिन वह मंदिर हवन कराने के लिए आए और जब मैं मंत्रोच्चारण में व्यस्त था, तभी एक ने पीछे से आकर मेरी पीठ में खंजर मारकर मुझे जख्मी कर दिया।
मैं उठा और जख्मी हालत में उनसे लड़ने लगा, परंतु रक्त अधिक बहने के कारण मैं लड़खड़ा कर जमीन पर गिर गया और बोला "जिस तरह से आज तुम लोगों ने धोखे से मुझे मारा है, उसी तरह तुम लोगों की मृत्यु भी धोखे से ही होगी, जब मृत्यु आएगी तो इतना तड़पोगे कि स्वयं मृत्यु की भीख मांगोगे परंतु इतनी आसानी से तुमको मृत्यु नहीं आएगी"।
"मेरा जीवन इस मंदिर में व्यतीत हुआ, इसी कारण मैं हमेशा इस मंदिर में ही रहूंगा और एक दिन तुम लोगों की मौत का कारण बनूँगा। याद रखना मेरी यह बात"। इतना कहते ही नागार्जुन चुप हो गया।
मैंने कहा "यह तो आपके साथ बहुत बड़ा धोखा हुआ परंतु आप दूसरे लोगों को क्यों डराते हैं उन्होंने तो आपका कुछ नहीं बिगाड़ा है"। नागार्जुन बोलता है मैं किसी को नहीं डराता, बस मेरे चेहरे के कारण लोग डर जाते हैं परंतु इसमें मेरी क्या गलती है? मैं तो बस इंतजार कर रहा हूं"।
मैंने बात काटते हुए कहा, "कैसा इंतजार और किसका.?" नागार्जुन बोलता है, मुझे माँ चंडमालिका ने बोला था कि "जो इंसान तुम्हारे चेहरे को देखकर डरेगा नहीं वही तुम्हारे साथ हुए धोखे का बदला लेगा, और जो मणि मैंने तुमको सौंपी है, वह मणि उसको शक्ति प्रदान करेगी और उसकी रक्षा करेगी।
मैं अचंभित होकर बोला "अर्थात् वह व्यक्ति मैं(वेदांत) हूँ।" नागार्जुन - हाँ वेदांत, तुम ही वह इंसान हो जो मेरा चेहरा देखकर डरे नहीं, तुम ही वो पहले व्यक्ति हो जिसको मैंने अपने अतीत की कहानी सुनाई है, तुम ही इस प्रकाश-पुंज अर्थात् मणि को धारण कर सकते हो। वेदांत - परंतु मैं अचानक यह सब कैसे कर सकता हूं, मुझे थोड़ा वक्त चाहिए, अभी मेरे फ्रेंड्स भी मेरे साथ है, तो पहले मुझे उनको अपने-अपने घर छोड़ना होगा। नागार्जुन बोला "ठीक है, मैं इंतजार करूंगा तुम्हारा" और नागार्जुन वहां से विलुप्त हो जाता है।
वेदांत भी वापस आकर मंदिर के अंदर सो जाता है, कब सुबह हो जाती है पता ही नहीं चलता। हम सभी घर वापस जाने की तैयारियां करने लगे, जाने से पहले हम लोगों ने प्लान बनाया कि थोड़ा और घूमते हैं और फोटो शूट करते हैं, उसके बाद घर वापस चलेंगे।
हम सब मंदिर से निकलकर पास में ही स्थित झरना देखने पहुँचे और वहीं पर फोटो शूट और मस्ती की। जंगल के मध्य स्थित उस झरनें और वहां के आसपास का दृश्य एकदम अद्वितीय प्रतीत हो रहा था। ऐसा लग रहा था, जैसे प्रकृति ने सारी सुंदरता को यहीं पर समाहित कर दिया हो, ऐसा नजारा मैं पहली बार देख रहा था। अब तक 11:00 बज चुके थे, हम लोग वहां से वापस आये और अपने-अपने सामान को पैक किया तथा कार में रखा फिर घर के लिए रवाना हो गए।
वेदांत अर्थात् मैं कैसे नागार्जुन के साथ हुए धोखे का इंतकाम लूंगा और मणि के धारण करने से मेरी लाइफ में क्या परिवर्तन होगा.? जानने के लिए इंतजार करें मेरे आगे के चैप्टर का।
धन्यवाद!
क्रमशः

