STORYMIRROR

SPK Sachin Lodhi

Inspirational

3  

SPK Sachin Lodhi

Inspirational

मानवता का विध्वंश

मानवता का विध्वंश

3 mins
239

हमारी भारतीय संस्कृति में संपूर्ण दुनिया के लोगों को एक परिवार माना है।

"वसुधैव कुटुंबकम" अर्थात् "पृथ्वी पर रहने वाले सभी लोग एक परिवार की तरह हैं, सभी एक-दूसरे के प्रति प्रेम, दया, परोपकर एवं करुणा की भावना रखें, तभी मानवता रहेगी। परंतु आज वर्तमान समय में लोग स्वार्थी हो गए हैं और मानवता का विध्वंस कर रहे हैं।


मानव जीवन का आधार, इस पृथ्वी पर मानवता एक सद्गुण है,जो मुख्य रूप से दूसरों के हित पर आधारित, अर्थात नैतिकता से संबंधित है। "मनुष्य का दूसरे जीवों के प्रति दया प्रेम और करुणा की भावना रखना" यहीं मानवता की परिभाषा है।


परंतु आज वर्तमान समय में अपनी सुख सुविधाओं के लिए वैज्ञानिक नए-नए शोध एवं प्रयोग कार्य कर रहे, जिससे पृथ्वी से पशु-पक्षियों की प्रजातियाों का विनाश होता जा रहा है, लालच के प्रभाव में आकर इंसान आज एक दूसरे का शत्रु बन गया है, मानवता आज खत्म हो रही है। अपनी संस्कृति को भूल कर लोग ज्यादातर अपना समय सोशल मीडिया पर देते हैं, नई-नई तकनीकों के विकसित होने से एक तरफ इंसान ऊंचाइयों को छू रहा, परंतु दूसरी तरफ वह दुनिया से इंसानियत को ही खत्म कर रहा है।


अपने विकास के लिए पेड़-पौधों, नदी-तालाबों को नष्ट कर रहा है। वर्तमान समय में हम प्रयत्न करें, कि इसकी रक्षा हो, वास्तव में चिड़ियों की चहचहाहट, प्रातःकाल मधुर ध्वनि अब कहाँ सुनने को मिलती है।

गर्मियों के महीने में कोयल की मीठी आवाज़ विशेषकर आम के मौसम में कोयल की कू-कू से वातावरण मनोरम प्रतीत होता था, लेकिन यह सब अब कहाँ दृष्टिगत होता है? उस मीठी ध्वनि को सुनने के लिए हम तरस जाते हैं, जिस तरह फलों के राजा की प्रतिवर्ष प्रतीक्षा करते हैं, उसी तरह कोयल की संगीतमय ध्वनि को सुनने के लिए लालायित रहते हैं,आज न चहचहाहट सुनने को मिलती है, आज वह संगीतमयी ध्वनि पक्षियों की कहाँ गयीं.?


आज मानव ने अपनी सुविधा के नाम पर विभिन्न आविष्कार किये और उनका दुरूपयोग भी किया, फलस्वरूप इन पक्षियों की ही नहीं, बल्कि सारे पारिस्थितिक तंत्र को ही बर्बाद कर डाला, अब भुगतना पड़ रहा है मानव को।


मानव ने तो अपने पैर पर कुल्हाड़ी चलाने की ठान ली है, वर्तमान में जनसंख्या में तीव्र वृद्धि तो हो रही है, लेकिन गुणवत्ता का अभाव होता जा रहा है, हम किस और जा रहे हैं? कहाँ गयी सच्ची मानवता ? क्या आज दूसरों की पीड़ा समझने वाला कोई भी मानव बचा है? आज तो बस दूसरे को हानि पहुँचाना, प्रताड़ित करना, उपेक्षा करना ही मानव का लक्ष्य है।


मानव का मुख्य उद्देश्य है अपनी स्वार्थ की पूर्ति करना, किसी भी तरह अर्थोपार्जन करना, निरर्थक जीवन व्यतीत करना। हर मानव एक दूसरे पर आरोप मढ़ते रहते हैं, निंदा करते हैं।


आज की नारी में दुर्गा वाली शक्ति कहाँ खो गयी? कहाँ गए वो असंख्य वीर सपूत जो हँसते-हँसते देश के लिए अपना जीवन समर्पित दिए।

वर्तमान में आतंकवाद रूपी दानव सर्वत्र छुपा हुआ है, कब किसकी ओर किस गली से आकर निर्दोष मानव की हत्या कर देता है, किसी को ज्ञात नहीं होता है, बेटियां दहेज़ की बलिबेदी पर, दुष्कर्मी के हवस का शिकार होती हैं, यह मानव का पतन नहीं है तो क्या है? आतंकवादी किसी के सगे नहीं होते,न बेटी, बहन अर्थात कोई रिश्ता नहीं। बस आतंक फैलाकर मानवता को नष्ट करना ही मुख्य उद्देश्य है।


आज इसी तरह है मानवता पृथ्वी से खत्म हो रही है उसका विध्वंस होता जा रहा है अभी भी समय है संभल जाए मानव पावन धरती से मानवता और मानव को बचा ले प्रकृति का सम्मान कर और फिर से इस धरती को स्वर्ग से भी सुंदर बना।



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational