संध्या का दृश्य
संध्या का दृश्य
संध्या का समय था, चारों तरफ से शोरगुल की तीक्ष्ण ध्वनि कानों तक पहुँच रही थी। मैं अपने रूम से निकलकर ऊपर छत पर आकर खुले आसमान में आकर टहल रहा था। धीमी-धीमी हवा चल रही थी। चूँकि सर्दी का मौसम चल रहा था, तो ऊपर छत पर ठंड भी लग रही थी। परंतु खुले आसमान में टहलने में एक अलग ही आनंद की अनुभूति हो रही थी।
शहरी क्षेत्र था और नेशनल हाईवे समीप होने के कारण वाहनों की भी आवाज मेरे यहाँ तक पहुँच रही थी। मैं बिना पलकें झपकाए उस सुंदर दृश्य का आनंद ले रहा था। चूँकि अंधेरा होने लगा था, तो सड़क पर लगे हुए बल्ब जलने लगे थे, और गाड़ियों रोशनी सड़क को चकाचौंध कर रही थी।
मैं जिस मकान में किराए से रहता था, वह मकान तीन मंजिला था, तो सड़क से निकलने वाले प्रत्येक वाहन यहाँ से दिखाई दे रहे थे। मैं सामने से गुजरने वाली बिजली की बड़ी लाइन को निहार ही रहा था, तभी सड़क के किनारे स्थित हॉस्पिटल का प्लस का चिन्ह जलने लगता है, जो कि लाल रंग का था।
मैं जहाँ रहता था, वह एक औद्योगिक नगर था, तो हॉस्पिटल के सामने हाईवे के दूसरी तरफ एक प्राइवेट कंपनी थी। जिसका प्लांट बहुत बड़ा था। वहीं पर दो टावर नजर आ रहे थे, जिनके ऊपर रेड लाइट जल रही थी। कभी सड़क से निकलने वाले उन वाहनों पर नजर चली जाती, जिनमें अलग-अलग रंग के लाइट लगे हुए रहते।
धीरे-धीरे रात्रि का आगमन हो गया, परंतु सामने का मंजर देखकर और कोलाहल की ध्वनि सुनकर रात्रि का आभास ही नहीं हो रहा था। सर्दी का समय होने के कारण ठंड बढ़ने लगी थी और हवा भी तेज गति से चलने लगी थी। मैंने भी केवल टी-शर्ट और लोवर ही पहना हुआ था, तो मुझे भी ठंड लगने लगी थी।
मैं बाहर का नजारा देख ही रहा था, कि तभी अचानक मेरे दोस्त ने नीचे से आवाज लगायी। चूँकि रात्रि का समय हो गया था, तो खाना बनाना था, इसलिए मैं उसको - "आता हूँ।" बोलकर सीढ़ी के पास जाकर खड़ा हो गया।
प्रकृति ने ऐसे बहुत से अलौकिक, सुंदरता से परिपूर्ण उपहार दिए हैं। जरूरत है, तो केवल अपना नजरिया बदलने की, क्योंकि हम दुनिया को जिस नज़र से देखेंगे, दुनिया हमें वैसी ही दिखाई देगी।
