परिवार
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आपके लेख बहुत सुन्दर हैं कृपया न भेजें
“आपके लेख बहुत सुन्दर हैं लेकिन अपने तक ही सीमित रखिए, क्यों दूसरों को हर समय परेशान करते रहते हैं।”
बेटे अरुण ने अपने पिता को कहा तो पिता विस्फारित नेत्रों से उसे देखते रह गए। सोचने लगे कि ये वही बच्चे हैं जिन्हें मेरी बातें बहुत अच्छी लगा करती थीं। बस इतना ही बुदबुदा पाए।
“ किसी ने कुछ कहा क्या ?
“ हाँ .. तभी तो कह रहा हूँ आपको नहीं तो मुझे क्या पड़ी है। “
बेटा झुँझलाकर बोला
“ किसने …?” पिता ने डरते-डरते धीमी आवाज़ में पूछा
“ किस -किस के नाम लूँ अब ! कौन है ऐसा जो पसंद करता है।!एक तो आप अपनी कविताएँ और लेख भेजते हैं।.अगर वहाँ कोई मसाला नहीं होता तो इधर-उधर का बटोरा कूड़ा ही भेज देते हैं। कभी आप पढ़ते हैं किसी का भेजा हुआ ? “बताइए
( कह कर बेटा चुप पिता का मुँह ताकता खड़ा हो गया। पिता जी भी सोचते हुए खड़े रह गए कि क्या कहूँ। मैं भी सच में कहाँ पढ़ता हूँ कुछ भी, बस बिना पढ़े डिलीट कर देता हूँ। भेजने वाले को ख़ुश करने के लिए यूँ ही लिख देता हूँ वाह वाह
दोनों अपने-अपने कमरे में चले गए मेडीटेशन करने। शायद बाहर आने पर सब कुछ सामान्य हो जाए।