पौराणिक कथा
पौराणिक कथा
प्रह्लाद की —-
“ जीत गईं तुम “
“ बुआ ! तुम जीत गईं और मैं हार गया।”
कह कर प्रह्लाद रोने लगा
सभी हत्प्रभ थे कि ऐसा कैसे हुआ ! यह तो सम्भव न था। होलिका नेपहले मना तो किया था कि वह ऐसा क़तई नहीं करेगी लेकिन उसकीविवशता थी , उसे आदेश मानना ही था।कोई भी आदेश के विरुद्धजाने की हिम्मत नहीं कर सकता था।
“मुझे माफ़ कर देना बेटा !”
प्रह्लाद ने स्पष्ट सुनी थी आवाज़ जब होलिका उसे
अपनी गोद में ले कर उस अग्नि कुण्ड पर बैठी थी तो धीमे से उसनेकहा था।
“ ऐसा क्यूँ कह रही हैं आप ? ..बुआ ?”
“ मैं तुम्हें मारने के लिए गोद में ले कर बैठी हूँ।तुम्हें डर नहीं लग रहाहै ?”
“नहीं ..! आप ऐसा नहीं कर सकतीं। आप मुझसे बहुत प्यार करती हैं!”
“लेकिन,मुझे ऐसा आदेश
दिया गया है। तुम्हें नहीं मारा तो ये मुझे मार देगा।”
“फिर भी ..मैं जानता हूँ आप मुझे नहीं मारेंगी।आपका मन होगा क्यामुझे मारने का ...?”
“ नहीं मेरे बच्चे... कभी नहीं...!मैं सचमुच तुम्हें बहुत प्यार करती हूँ।”
आग की लपटें उठने लगी थीं। प्रह्लाद ने देखा होलिका ने जो दुशालास्वयं ओढ़ रखा था ,उसे
उतारा और प्रह्लाद की ओर
इस कुशलता से फेंका कि
उसमें वह अच्छी तरह लिपट जाय।
जो लपटें प्रह्लाद को अपनी आग़ोश में लपेटने के लिए बढ़ रही थीं वोअब होलिका की ओर लपक गईं और पलक झपकते ही होलिका जल कर राख हो गई
बरसा गई अपना सारा नेह का सागर, अपने भतीजे पर।