पौराणिक कथा
पौराणिक कथा
“ दशानन ! यह क्या नाम है भला ?”
दिवाकर ने पूछ ही लिया।
कॉलेज में नए साथी का नाम पता चलते ही अन्य साथी ज़रा अचकचा जाते ।यह नाम पहले तो सुना ही नहीं किसी का। बस एक ही बार यहनाम रखा गया होगा शायद ,रावण का।
“ हॉं ! मेरा नाम दशानन है। “
दशानन ने बिना हिचकिचाए जवाब दिया।
“ यह क्या नाम हुआ? यह नाम भी कोई रखता है क्या ?”
अब रमेश भी हिम्मत कर बोल पड़ा।
“ क्यों ? कोई ख़राबी है क्या इस नाम में ?”
दशानन ने फिर सहजता से पूछा
“ तू क्या किसी और ग्रह से आया हुआ है? भारत में ही पैदा हुआ है न ?”
अब बारी थी प्रश्न दागने की सुरेश की
“ हॉं मैं भारत में पैदा हुआ हूँ, पूरा हिन्दुस्तानी हूँ। “
“ तो … तुझे नहीं मालूम कि दशानन कौन था ?”
“ मालूम है ?”
“ अच्छा ! मालूम था ! फिर भी तूने बदलवाया नहीं ? “
“ क्यों बदलवाता ? क्या ख़राबी है इस नाम में ? क्या तुम लोगों को नहींमालूम कि दशानन चारों वेदों का ज्ञाता था। राम ने लक्ष्मण को भेजा थाकि चरणों में खड़े हो कर कुछ सीख कर आना। “
“ वह सब तो ठीक है ,पर वह था तो अत्याचारी ? “
“ सारे दुर्गुणों की खान था “
“ शिव भक्त भी तो था “
बन सका कोई उसके जैसा शिव एबक्त जो अपना शीश चढ़ा कर पूजाकर सके? “
“ नहीं ..”
“ तो …”
“ तो यह कि हम लोग भी तो दस सिर वाले, दस व्यक्तित्व रखते हैं।अलग-अलग !”
“ क्या मतलब ?”
“ मतलब यह कि हम अपने माता-पिता के सामने कुछ, मित्र के माता- पिता के सामने कुछ और, अनजान के माता-पिता के आगे कुछ अलग, नौकरी पर, .. हर जगह एक नया चेहरा ही ले कर उपस्थित होते हैं।बघारते आदर्श हैं लेकिन दजीवन में अपनाते समय विरोधी बन जाते हैं।शायद हम दस नहीं बीस से भी अधिक मुख वाले इंसान होते हैं। “
दशानन बोलता जा रहा था और बाक़ी सब आस-पास खड़े सुन रहे थेविरोध प्रकट करने वाला चेहरा हर किसी का कहीं छिप गया था जो कलियुगी रावण के चेहरों को जान नहीं पाया हो।