यात्रा (पुरस्कार)
यात्रा (पुरस्कार)
“ बहुत-बहुत बधाई हो” कहते हुए अनिकेत ने वसुधा को विश्वविद्यालय प्रांगण में ही चूम लिया। वसुधा की भी ख़ुशी कापारावार न था।क्यों न होता वह विश्वविद्यालय में सर्वश्रेष्ठ घोषित कीगई थी। उसने टॉप किया था।दो बच्चों की मॉं, परिवार की ज़िम्मेदारीके साथ ,नौकरी भी तो कर रही थी। सब कुछ पूरी निष्ठा से। पढ़ाई हीछूट जाती थी,किन्तु मन में ठान तो लिया था कि अपना शत-प्रतिशतइधर भी देना ही है।
“ बोलो क्या चाहिए तुम्हें मेरी तरफ़ से पुरस्कार ? गोल्ड मेडल तोविश्वविद्यालय वाले देंगे। मैं क्या दूँ तुम्हें। तुम ही कहो।”चलते-चलतेबड़े लाड़ से अनिकेत ने पूछा
“ शाम को सोच कर बताऊँगी। अभी तो नौकरी दिख रही है!”
मासूमियत से मुस्कुराते हुए वसुधा ने कहा।
“ आज न मैं जा रहा हूँ नौकरी पर और न ही तुम।” अनिकेत ने फ़ैसलासुनाते हुए कहा
“ फिर क्या करेंगे ?”
“ हम पिक्चर देखेंगे। बेटे के स्कूल से लौटने से पहले घर पहुँच जाएँगे।“
“ ठीक है। वहीं तय कर लेंगे कि मुझे कहाँ जाना है।”
“ क्या ? कहाँ जाना है?”
“ मुझे तो हवाई यात्रा करना है जहाँ भी घूमने जाएँगे।” तब तक वसुधाने हवाई यात्रा नहीं की थी
अब मौक़ा मिला तो हवाई यात्रा मॉंग ली पुरस्कार स्वरूप
“ ठीक है। जैसी आपकी मर्ज़ी । बंदा हाज़िर है। बताइए कहाँ काटिकट कटाऊँ ?”
“ यह आप तय करिए। ऐसी जगह ले चलो जहाँ पहुँचने में चार घंटे लगेंताकि ख़ूब देर तक हवाई जहाज़ में बैठने को मिले और जगह नई हो। “
“ तो चलो यहाँ से इम्फ़ाल की यात्रा करते हैं। वही सबसे दूर है। नया भीहै,अपने लिए। मंज़ूर ।”
“ मंज़ूर।” वसुधा की ख़ुशी का ठिकाना नहीं था। आज तो ईश्वर को भीमाँगती तो मिल जाता।
एक उपलब्धि अपने साथ कितनी उपलब्धियाँ ले कर आईं और नईजगह घूमने से नया ज्ञान भी मिला। ऐतिहासिक, सामाजिक ख़ासियतभी पता चली।
इम्फ़ाल में सबेरा 3 बजे ही हो जाता और शाम 3 बजे से दुकानें समेटनेलगते। होटल में मछली की गंध वसुधा को भूखा वापस ले आती ,किन्तुप्राकृतिक सौंदर्य ने मन मोह लिया। बच्चे भी ख़ुश पूरा परिवारआनंदित। जीवन में प्राप्त यह पुरस्कार, हर पुरस्कार से नायाब था।