Shubham Pandey gagan

Abstract Inspirational

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Shubham Pandey gagan

Abstract Inspirational

परिवार

परिवार

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हमारे बुजुर्गों ने हमेशा कहा है और हमने अपनी धार्मिक पुस्तकों में यह बात पढ़ी है कि दुःख और सुख एक पहिये की भांति हैं जो समय समय पर आते और जाते रहते हैं।

मगर अक्सर समाज में देखा गया है कि लोग सुख आने पर इस तरह बदल जाते जैसे फिर उनको दुःख मिलेगा ही नहीं। उनका अहंकार आसमान से ऊंचा हो जाता है और तब भगवान और नियति की लाठी चलती जिससे सारा घमंड टूट जाता है।

कहने को बात बस दो बरस पुरानी है जब रेखा की शादी एक संयुक्त परिवार के सबसे पढ़े लिखे लड़के राजेश से हुई थी। रेखा अपने तीन भाइयों की इकलौती बहन जिसका सपना था कि वह विवाह करके किसी शहर में जाएगी जिसमें परिवार के नाम पर सास ससुर और खुद पति पत्नी रहेंगे। इससे ज्यादा काम भी नहीं पड़ेगा और न शोर रहेगा बिल्कुल सुखी परिवार रहेगा। मगर होनी को कौन टाल सकता है? उसकी शादी राजेश से हुई जिसके परिवार में उसके 4 भाई भौजी माँ बाप के साथ चाचा चाची और उनके 2 बच्चे थे। जब रेखा शादी करके आयी तो उसके अरमान टूट कर बह गए ।

वो उसी हफ्ते थे किसी न किसी बहाने से संयुक्त परिवार पर ताने कसने लगी और छोटे सुखी परिवार की अवधारणा को बार बार सुनाती रही मगर राजेश सब सुन कर अनसुना कर देता क्योंकि उसे तो संयुक्त परिवार की आदत थी। वो भला कैसे भूल सकता है जब उसके पिता के पास पढ़ाने के पैसे नहीं थे तब उसके चाचा ने कहा कि भैया आप राजेश को पढ़ा दीजिए और मेरे हिस्से का खेत बैंक में लोन के लिए रख दीजिए आपके हिस्से में खेती करके गुजारा करेंगे।

अभी पिछले महीने जब राजेश की शादी नज़दीक थी तो उसके चाचा चाची और सब भाइयों ने जी तोड़ मेहनत की थी और सारा इंतज़ाम किया था। बड़ा परिवार सबने मिलकर काम किया जिससे काम आसान हो गया। वो अच्छी तरह से यह सब बातें समझता था मगर रेखा तो अपनी जिद पर अड़ी थी।

समय बीतता गया और दोनों की शादी को कई महीने हो गए। एक दिन किसी छोटी सी बात पर रेखा ने राजेश की चाची से कहासुनी कर ली और निश्चय कर लिया उसे यहां बिल्कुल नहीं रहना। वो रूठकर अपने मायके चली गयी फिर अगले कई दिनों तक राजेश ने समझाया मगर वो आने को राज़ी न हुई। उसने साफ साफ कह दिया अगर वह उसे लेकर शहर चलेगा तभी वह लौट कर आएगी। राजेश ने सारी बातें अपने परिवार से बताई तो उसके माता पिता और भाइयों ने कहा कि कुछ दिन के लिए बाहर ही रह लो हम सब यहां है कोई दिक्कत नहीं । उसकी भी इच्छा पूरी हो जाएगी ।

राजेश उसे लेकर शहर आ गया और रहने लगा। उसकी नौकरी की तनख्वाह बस घर चलाने हेतु ही पर्याप्त थी मगर बचत तो बिल्कुल भी नहीं हो पाती थीं। खैर ऐसे बाहर रहते कमाते खाते उसे 5 वर्ष बीत गए वह दो बच्चों का पिता बन चुका है। हालांकि वह भी नौकरी की वजह से गांव कम ही जा पाता बस जब भी बाहर होता और खाली होता तो घर पर मां बाप या भाइयों से बात कर लेता है।

उसे तो शहर का अकेलापन घुटता है मगर रेखा की वजह से उसने अपना गांव घर परिवार सब छोड़ दिया था। उसका बड़ा मन होता कि सबके साथ रहता तो अभी उसके बच्चे दादा दादी और चाचा चाची और छोटे बड़े भाइयों के बच्चों के साथ खेलते तब कितना अच्छा लगता मगर वह बेबस था।

देश में इसी समय कोरोना की महामारी ने अपने पैर पसारने शुरू कर दिए । कम्पनी में काम कम हो गया मगर उसकी पूरी तनख्वाह तो आ रही थी। वह पढ़ा लिखा था और घर से ही लैपटॉप पर सारा काम खत्म कर देता था। देश भर में कोरोना की महामारी बेहद प्रभावी हो गयी जिससे सरकार ने पूर्णबन्दी की घोषणा कर दी और इसी बीच न जाने कैसे किसके सम्पर्क में आने से राजेश भी कोरोना ग्रसित हो गया ।

अब रेखा बेहद परेशान और निराश हो गयी। राजेश की हालत दिन पर दिन बेकार होने लगी जैसे उसके प्राण ही निकल जाएंगे और अस्पताल में तो बेड भी नहीं मिल पा रहा था। वह बेहद निराश हो गयी और उसने अपने गांव फ़ोन किया । फ़ोन उसके ससुर ने उठाया और उसने सारी बातें रोते-बिलखते उनको बताई उन्होंने तुरंत उसे हिम्मत न हारने की बात कहते हुए फ़ोन रख दिया और कहा वो जल्द ही कुछ करते हैं।

अगली सुबह तड़के ही राजेश के दो भाई शहर पहुँच गए और जिनके साथ एक एम्बुलेंस भी थी। राजेश को फ़टाफ़ट उसपे लेकर गांव की तरफ़ रवाना हुए और रेखा और उसके बच्चों को दूसरी गाड़ी में लेकर गाँव आये।

गाँव में उसे एक कमरे में रखा गया और इलाज कराया गया। चूंकि कोरोना अभी ग्रामीण इलाकों को प्रभावित नहीं कर पाया था इसीलिए गांव की स्वच्छ और ताजी वायु के साथ साथ पूरे परिवार की देख रेख खान पान में नियमितता से राजेश जल्द ही पूर्ण स्वस्थ हो गया।

राजेश जो बीमारी से बेहद कमजोर हो गया था वह गांव के आया तब उसकी माँ, भाभियों और चाची ने समय समय बना कर खिलाया और बहुत सेवा की जिससे उसकी कमजोरी दूर हो गयी।

रेखा को उस दिन परिवार का मतलब समझ आया तब उसने सबसे माफ़ी माँगी और पुनः शहर न जाने का निश्चय किया। उसने वह बात समझी की अगर उसका परिवार न होता तो शायद राजेश इलाज और खान पान के अभाव में मर गया होता।

देर आये मगर दुरुस्त आये की कहावत सिद्ध हुई और राजेश रेखा अपने परिवार में लौट आये। दोनों स्वस्थ थे। अब रेखा भी अपनी देवरानी जेठानी लोग के साथ शांति से रहती और सब में प्रेम हो गया।

उसके बच्चे घर में अन्य बच्चों के साथ खेलते और खुश रहते। इसी तरह उनकी ज़िंदगी में परिवार के साथ होने से खुशियों की लहर दौड़ गयी।



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