काश साथ होते
काश साथ होते
सुबह के ठीक 8 बजे पूरी साज सज्जा में पिछले 15 बरस से हर मौसम हर हालत में आदरणीय शर्मा जी अपने विद्यालय जाने को तैयार मिलते हैं।
एक हाथ में मोटी सी दो किताबें और दूसरे हाथ में खाने का डिब्बा। फिर डिब्बे और किताब मोटर साइकिल की डिग्गी में और फिर ठीक 9 बजे विद्यालय प्रांगण में उपस्थिति हो जाती थी।
यह प्रक्रिया पिछले 15 साल से सुचारू रूप से चल रही हैं।
अपने काम के प्रति बड़े ईमानदार शर्मा जी एक विद्यालय में हिंदी के अध्यापक हैं। मातृभाषा का अच्छा ज्ञान रखते थोड़ा बहुत हाथ गणित में है लेकिन अंग्रेज़ी में थोड़ा भी जानकारी नहीं रखते इसी कारण काफी असहज महूसस करते और अपने फ़ोन को भी हिंदी भाषा मे रखते हैं।
बाकी और लोगों की तरह उन्हें भी लगता हिंदी सीखने का फायदा नहीं सारी नौकरी और सुख बस अंग्रेज़ी वालों को नसीब होता हैं बैरहाल ये भूल जाते शर्मा जी की वह खुद सरकार से उतनी ही तनख्वाह पाते जितना अंग्रेज़ी के मास्टर साहब गुप्ता जी।
शर्मा जी का एक लड़का है जिसका नाम रोहन है जो बगल के कान्वेंट स्कूल में 8वी का विद्यार्थी है जिसे हिंदी का सही से क, और ख लिखना नहीं आता लेकिन अंग्रेज़ी में झटपट बातें करता हैं।
शर्मा जी उसको देख कर अपनी उम्र से 10 साल पीछे चले जाते और फिर से 25 साल की युवा की तरह फूल जाते ।
उन्हें बड़ी खुशी रहती उनका बेटा झटपट अंग्रेज़ी बोलता है। जबकि अलग बात उसे मातृभाषा का ज्ञान नहीं हैं।
उसे विदेशी चीज़ों का बड़ा शौक उसका बस चले तो वह अमेरिका और आस्ट्रेलिया जैसा माहौल घर मे बना ले जिसकी उसने पूरी कोशिश की है।
सारी विदेशी फिल्मों को देख कर घर के समान और अपना तरीका सीख गया है।
समय बढ़ता गया बेटा 10 और 12 में अच्छा नंबर लाया और सबकी सलाह पर शर्मा जी ने उसे इंजीनियरिंग की पढ़ाई कराई।
लड़का अंग्रेज़ी में तेज था उसने मेहनत से पढ़ाई की और अच्छी नौकरी साथ में पत्नी लेकर घर आया।
शर्मा जी कहा," आज के ज़माने में चलता है लव मैरिज ,आप भी एडजस्ट करो"।
दिल मे कसक थी लेकिन पुत्रमोह में शर्मा जी एडजस्ट करे।
शादी के साल भर में बेटे की नौकरी विदेश में लगा ।
शर्मा जी बोले भगवान का दिया सब है यही रहो आँखों के पास थोड़ा कम कमाना लेकिन दूर मत जाओ।
अकेला लड़का था तब पुत्र मोह भी ज्यादा था।
लेकिन बेटे को सिर्फ अंग्रेज़ी फिल्मों में देखे हुए विदेश का शौक था और विदेशी संस्कृति भी पसन्द थी।
उसने पिता जी से साफ साफ कह दिया ,"पापा! आप मां यही रहो मैं आता रहूँगा। मुझे लेकिन जाना है।"
जिसने जाने का निश्चय कर लिया उसे भला अब कौन रोक पाए । शर्मा जी कुछ नहीं बोल पाए और वह अपनी पत्नी के साथ विदेश चला गया।
इस बात को 2 साल बीत गए अभी तक वह एक बार भी नही लौटा बस हफ़्ते में एक या दो बार बात हो जाती। एक नाती भी हो गया है लेकिन शर्मा जी ने बस उसे वीडियो कॉल में देखा है।
एक शाम शर्मा जी की पत्नी बोली ,"हमने उसे अंग्रेज़ी सीखने को कहा था लेकिन उसने अंग्रेज़ी अपना ली।
काश! हम सब साथ होते।"
आप अपने सपनों को पूरा करिये। हर भाषा सीखिये और जानिए परन्तु अपनी मातृभाषा और संस्कृति को कभी मत भूलिए।
हमारा वजूद हमारी धरती और संस्कृति है।
आंग्ल भाषा के फेर में अपनी हिंदी की अवहेलना मत करिए। ये भी सीखिये और प्रसारित करिये।