सच्ची दोस्ती
सच्ची दोस्ती
कुछ ही समय पहले की बात है मोहन जब बीमार पड़ा था और उसके पिता जी शहर से बाहर गए थे, रात को अचानक 10 बजे बुख़ार ज्यादा हो गया। मोहन की मां ने घर के नुस्खे बहुत आज़माये लेकिन कोई लाभ न हुआ। वह बूढ़ी औरत बेचारी क्या करती? हर जगह मारी मारी फिर रही लेकिन कोई दिख नहीं रहा था रास्ते में। पूरा गांव नींद के आगोश में डूबा है।
अंततः उसे सड़क पर जाता कोई दिखाई पड़ा।
अंधेरे में वह साफ देख नहीं पाई लेकिन उसने आवाज़ दिया, "बेटा ! सुनते हो। साइकिल सवार रुक गया और बोला , "अरे!माई इतनी रात में कहा भटक रही।कोई काम था क्या?"
उस बूढ़ी औरत को पल भर समझने और पहचानने में नहीं लगा कि वह और कोई नही बल्कि मोहन का बचपन का दोस्त कलीम था। उसने अपनी सारी व्यथा विस्तारपूर्वक कलीम को समझाई और मोहन को डॉक्टर तक पहुँचाने की विनती की।
कलीम ने बिना देर करते हुए घर गया और दो पहिया अपनी लेकर आया और मोहन को बैठा कर डॉक्टर के पास ले गया। उसने उसको दवा खरीद कर रात को 1 बजे लाकर घर छोड़ा और फिर अपने घर गया। उसने समय पर अपने साधन से और पैसों से मदद की।
इस घटना को मुश्किल से अभी 2 महीने ही बीते है और आज कलीम लेकर लाठी मोहन का सर फोड़ने के लिए आतुर है और मोहन भी अपने प्रहार से कलीम को मार गिरना चाहता है।
अचानक ऐसे क्या हुआ कि दो इतनी अच्छे दोस्त दुश्मन बन गए।
बात बस इतनी है कि कलीम को कुछ धार्मिक ठेकेदारो ने और मोहन को कुछ राजनीत के चाटुकारों ने अपने अपने फायदे के लिए भड़काया है।
आज किसी और के बातों में आकर दो दोस्त एक दूसरे के ख़िलाफ़ खड़े।
क्या समाज की खूबसूरती इसी में है? क्या महज़ पांच या दस साल की राजनीति और कुछ अपने धार्मिक कृत्यों के लिए समाज को ऐसे लड़वाना चाहिए।
हमारा ये देश बड़ा खूबसूरत है क्योंकि हमारे देश के लोगों का प्रेम पवित्र है।
तभी अचानक कलीम के बिरादरी के लोग हथियारों के साथ मोहन के घर की तरफ़ बढ़ते दिखे।
कलीम का दिमाग तुरन्त बदला क्योंकि दिल मे छुपी मोह्हबत कब तक छुपेगी। कलीम ने झट से मोहन को घर मे धकेल दिया और अंदर से दरवाजा बंद कर लिया।
क्योंकि वो जानता था कि सब लोग जब इक्कठा होंगे उसकी बातें नहीं सुनेगे।
थोड़ा देर हंगामा था उसके बाद जब सब मामला शान्त हुआ, सब अपने अपने घर गए। कलीम अपने मित्र मोहन से माफी मांगने लगा तब मोहन भी शर्म से हाथ जोड़ लिया कि मैंने भी हाथ उठाया माफ करो।
इस तरह दोनों मित्र के मन मे घोला गया ज़हर मिट गया और दोनों एक दूसरे के गले लग गए।
हमें कभी नहीं भूलना चाहिए कि ये नेता , पंडित, मौलबी सब कुछ समय के लिए है लेकिन हम हमारी ज़रूरते हमारा प्यार और ये देश युगों का है।
इसकी खूबसूरती पे कभी आंच न आये अगर हम किसी के बहकावे में आकर दंगे फसाद न करे।
सब साथ रहे। साथ काम करे और देश को हमेशा विकास पथ पर लेकर चले।