नज़र
नज़र


दिन रात खेतों में कमरतोड़ मेहनत करने के बाद हरिहर घर आता है। किसान की ज़िंदगी की सबसे बड़ी सच्चाई यही है कि गधे की तरह बेचारे को काम करना पड़ता और खाने में 2 रोटी सही से नहीं मिल पाती ये हमारा दुर्भाग्य है कि हम किसानों को उनके अनाज का सही मूल्य भी नहीं चुका पाते।
हरिहर घर पहुँचकर हाथ मुहं धोकर बैठा की उसकी पत्नी ने कहा,"दिन भर खेत मे मेहनत और मज़दूरी करने पर अनाज घर मे एक सेर नही बचा।कहे देती हूं अबकी बार एको सेर अनाज बिकेगा नहीं अबकी छुटकी बच्ची आयेगीं तब उनको बढ़िया पकवान खिलाऊँगी बनाकर।" हरिहर हसाँ और बोला,"हाँ! खिला देना जी भर कर। अबकी लग रहा है कि ढेर सारा अनाज मिलेगा खेतों से। तुम्हे खाने और बेचने दोनों को मिलेगा इसीलिए तो दिन रात एक किये डाल रहा।"
धीरे धीरे कुछ महीने बीते खेतो में फसलों का रूप देखकर हर कोई अंदाज़ा लगा सकता था कि इसके पीछे कितनी मेहनत और कठिन तपस्या है। लहलहाती फ़सले दूर से ही मोह लेती थी। हरिहर भी मन ही मन बहुत खुश रहता ।
आज हरिहर खेतों से आया और लेटा ही था कि अचानक बादलों से छोटी छोटी पानी की बूंदे धरती को तर करने लगी। उसकी नींद टूटी वह बेतहासा खेतों की तरफ भागा जहां उसने फसलें काट कर ज़मीन पर फैलाई थी। जल्दी खेतों में पहुँचकर अपने अनाज से लदी फसलों को इकट्ठा करने लगा कि अचानक वर्षा का विकराल रूप आया जैसे बादल अपना गुस्सा उतार रहा था। उसके खेतों में जांघ तक पानी भर गया ।फसलें लहराकर खेतों में तैरने लगीं। वह घर लौट आया । पूरे तीन दिन तक बादलों से पानी गिरता रहा और हरिहर की आखों से भी। सारे सपने टूटे उसी फसल की तरह दुख के सागर में तैरने लगे । न खाने को बचा न खरीदने को कुछ। हरिहर बैठा रो रहा उसकी पत्नी साथ बैठी कह रही,"लगता है किसी की नज़र लग गयी। अब तो बच्ची को भी नहीं कुछ दे पाएंगे।"