अरे तुम
अरे तुम
अच्छी सोसाइटी में फ्लैट, एक बढ़िया सी तनख्वाह की नौकरी, काम करने के लगी मेड और कुंवारे पन की ज़िंदगी ये तो सटीक सुंदर ज़िन्दगी मानते है लोग ख़ासकर नए युवा लोग। संजीत उनमें से एक था। उत्तर प्रदेश के छोटे से गांव में पैदा हुआ और फ़िर हर उत्तर प्रदेश के युवा की तरह इंजीनियरिंग और mba में भविष्य आज़माने हेतु दिल्ली आ गया। पढ़ाई में होनहार था तो अच्छी नौकरी मिल गयी। फ्लैट भी लिए और अब मज़े से रहता है। उम्र 27 साल के पार हो गयी और घर वाले रोज़ फ़ोन करते तो हाल चाल से ज्यादा शादी करने का दबाव देते और रोज़ अपने भविष्य और नए प्लान का बहाना बनाकर बात बंद हो जातीं। आज के युवा इस मामले में बड़े सक्रिय है और सोचपरक भी जो कि उनके भविष्य के लिए जरूरी है । वो बिना कुछ हासिल किए और बिना खुद के पैरो पर मजबूती से खड़े हुए बिना शादी के बंधन में नहीं बंधना चाहते। क्योंकि अक्सर शादी की डोर उनको उनके जीवन की ऊँचाई पर जाने से रोकती है ऐसा वो सोचते लेकिन कई बार पत्नी का साथ और विश्वास ही आपको बुलंदियों पर पहुँचाता हैं।
संजीत एक पाश मोहल्ले में रहता है जिसमें बड़ी बड़ी गाड़ियों और महंगे घरों की लड़कियों का जमावड़ा है। खैर उसकी तो दोस्ती आज तक किसी से नहीं हो पाई जिसका एक कारण उसका छोटे जगह से आना भी है।
एक दिन सुबह वो सोसाइटी में दौड़ लगा रहा था तभी उसकी नज़र नीचे वाले फ्लैट पर पड़ी जिसकी बालकनी में एक सुंदर सी लड़की अपने गीले बालों से तौलिए की चोट देकर पानी की बूंदों को आज़ाद कर रही थी। मोती जैसे बूँदें टप टप कर गिर रही थी । वह बेहद दिलकश नज़ारा जैसे किसी फ़िल्म का चित्र हो।
वह लड़की बेहद खूबसूरत थी जिसकी उम्र 24 या 25 रही होगी। रंग गोरा बड़ी आँखें सुंदर होंठ ने संजीत को अपनी ओर आकर्षित किया और वह खड़े नीचे उसे देखता रहा। तभी अचानक लड़की की नज़र भी उस पर पड़ी और वह मुस्कुराई तब संजीत की आँखें थोड़ा उस पर हटी और उसने हेलो बोला और हाथ हिलाया।
महज दो दिन बाद अचानक लिफ्ट में एक लड़की ब्लू टीशर्ट और स्कर्ट में हाथों में फ़ाइल लिए दौड़ते हुए अंदर आयी जिसमें पहले से संजीत खड़ा था। वह वही लड़की थी जिसे उसने उस दिन बालकनी में देखा था।
देखते ही संजीत ने उसे हेलो बोला उसने भी जवाब दिया और नीचे जाते जाते थोड़ी बात हुई जिसमें उसका नाम पता चला । उसका नाम तृषा था।
तृषा एक कम्पनी में सीनियर पोस्ट पर है वो सारे प्रोजेक्ट की देख रेख करती है। वो भी उत्तर प्रदेश से है और यहां नौकरी करती जो कि संजीत के फ्लैट के नीचे फ्लैट में रहती है।
उसकी उम्र 25 वर्ष है और वह अभी कुंवारी है क्योंकि उसे भी आत्मनिर्भर बनना है।
इस तरह दोनों में छोटी छोटी मुलाकात होने लगी और फिर दोस्ती भी हुईं। एक दिन छुट्टी के दिन संजीत ने उसे अपने साथ बाहर खाने पर आमंत्रित किया वह भी मान गयी और दोनों बाहर खाना खाने गए।
दोस्ती बढ़ती गयी। एक दूसरे का फ्लैट में आना जाना शुरु हुआ दोनों ऑफिस जाते समय भी साथ जाने लगे क्योंकि संजीत का दफ्तर भी उसी रास्ते में पड़ता था।
धीरे धीरे दोनों में प्रेम हो गया।
एक दिन संजीत ने उसे अपनी महिला मित्र बनने के लिए प्रस्ताव दिया जिस पर उसने "यस" करके जवाब दिया।
दोनों के फ्लैट एक हो गए और शहरों ने बाकी की तरह दोनों लिविंग में रहने लगे।
लिविंग भी बड़ा अजीब फैशन है। पत्नी की तरह रहने वाली लड़की भी पत्नी नहीं रहती क्योंकि उसके पास शादी के सात फेरों की कसमें और रस्में नहीं रहती। बाक़ी रिश्ता बिल्कुल वैसे रहता ये विदेशी रीतियों ने अजीब सी रीत निकाली है।
दोनों साथ रहने लगे पति पत्नी की तरह और समय अच्छा कट रहा था ।
दोनों का शादी करने का अभी कोई इरादा नहीं था। दोनों अपने घर पर शादी के लिए मना करते थे परंतु संजीत की माँ रोज़ कहती कि अब बहू ले आओ और तृषा के घर वाले कहते आखिर कब तक बेटी कुंवारी रखेंगे।
एक दिन संजीत की मां ने ज़िद पकड़ ली कि अब उसे घर आने पर लड़की देखने चलना है और शादी भी पक्की कर देंगे।
संजीत ने बहुत प्रयत्न किया लेकिन वह नहीं मानी फिर उसने कहा ,"अगर मुझे लड़की नहीं पसन्द आयी तब मैं शादी नहीं करूंगा।"
उसकी मां इस बात पर राजी थी।
शाम को जब संजीत दफ्तर से वापस आया तो तृषा काफी परेशान थी।
संजीत ने प्यार से पूछा, "क्या हुआ तृषा"?
तृषा ने कहा, "यार! मॉम ने कोई लड़का देखा है जो मुझे देखने आने वाला है मुझे घर जाना पड़ेगा।"
संजीत ने भी अपनी बात बताई।
तृषा ने कहा, "तुम शादी करने वाले हो किसी और से।"
उसने हँसते हुए कहा ,"नहीं मैं बस जाऊँगा और मना करके चला आऊँगा। तुम भी यही करना इसका यही एक इलाज है।"
दोनों फिर खुश हो गए रात को उनका फिर मिलन हुआ और सुबह दोनों घर को निकल गए।
घर जाने पर दूसरे दिन संजीत लड़की देखने गया और वह बैठा ही था तभी लड़की आती हुई दिखी। उसने देखा भी नहीं उसकी तरफ़ और तभी लड़की उसके पास होकर उसको चाय पकड़ाने की कोशिश की ओर कहा, "लीजिए चाय!"
उसने आवाज़ सुनते ही नज़र उठाई और देखा तो वो लड़की कोई और नहीं बल्कि तृषा थी।
तभी तृषा ने उसको देखा और दोनों के मुंह से निकला अरे तुम!
सब चौंक गए और पूछने लगें क्या तुम एक दूसरे को जानते हो।
तब संजीत ने मामले को संभालते हुए कहा," हम दोनों एक ही जगह रहते। हमारा फ्लैट ऊपर नीचे है।"
फिर दोनों को अकेले में बात करने को भेज दिया गया।
कमरे में जाते ही दोनों हँसने लगें और तृषा ने कहा ,"तो जनाब! लड़की पसन्द है या न करना है।"
तभी संजीत ने मुस्कुराते हुए उसके होंठ चूम लिए।
दोनों बाहर आये और संजीत ने कहा,"मैं शादी को तैयार हूं अगर आपकी लड़की को एतराज न हो।"
तृषा ने भी बड़ी हया के साथ हाँ में सर हिलाया।