परीक्षा में पास हो गयी
परीक्षा में पास हो गयी
6 महीने के मातृत्व अवकाश का पिया उपभोग कर चुकी थी। उसने 6 महीने की और विदाउट पे लीव्स ले ली थीं। लेकिन अब उसे ऑफिस जॉइन करना जरूरी हो गया था ;अब उसे और छुट्टियाँ नहीं मिल रही थी। पिया का बेटा विवस्वान अब लगभग 1 वर्ष का हो गया था। हर वर्किंग वुमन की तरह पिया अपने बेटे की देखभाल के लिए चिंतित थी।
पिया ने डिलीवरी के समय अपनी माँ को बुला लिया था। प्रसव सामान्य था ;इसीलिए पिया की माँ एक महीने बाद लौट गयी थी। लेकिन अब उसकी माँ स्थायी रूप से उसके साथ आकर नहीं रह सकती थी ;पिया के पापा की नौकरी थी तो ,उनकी देखभाल करने वाला भी तो कोई चाहिए था।
पिया के अपने सास -ससुर से बड़े औपचारिक से संबंध थे। उसने उन्हें कभी अपने पास आकर रहने के लिए नहीं कहा था और वो लोग भी अपने गांव में ही खुश थे। औपचारिक से संबंध होने के कारण दोनों ही तरफ से रिश्तों में कई गांठें पड़ गयी थी। पिया को लगता था कि ,"सास -ससुर गांव के हैं तो कामकाजी बहू के साथ सामंजस्य नहीं बैठा पाएंगे। "
वहीं सास -ससुर को लगता था कि ,"पढ़ी -लिखी कामकाजी लड़की है ;बड़ों की इज़्ज़त नहीं करेगी। "सास -ससुर ने अपने गांव में देखा भी था कि ," 10 वीं पास कई बहुएँ खेतों में काम करने से मना कर देती थी। कुछ भी कहो तो बहुत ही सुनाती थी। "
पिया के पति आशीष ने थोड़ा -बहुत दोनों ही पक्षों को समझाने की कोशिश की ;लेकिन बहुत ज्याद अंतर नहीं आया। पिया की गोद भराई के लिए उसके सास -ससुर उनके पास आये थे और एक सप्ताह रहकर चले गए थे। तब भी रिश्तों पर जमी बर्फ कुछ ख़ास पिघली नहीं।
लेकिन पिया को वो लोग गँवार ही लगे। जैसे पिया की सास शॉवर को 'झरना ' कह रही थी। पिया को बहुत ही अजीब लगा ;तब आशीष ने समझाया भी कि ," किसी की भाषा उसकी बुद्धिमानी का पैमाना नहीं होती।
आशीष और पिया साल में एक -एक सप्ताह के लिए आशीष के गांव रहकर आ जाते थे। शहरी जीवन की भागमभाग से दूर ,गांव का शांत जीवन पिया को पसंद आता था। गांव में आशीष ने अपनी शादी से पहले ही सभी सुःख -सुविधा के सामान जुटा दिए थे। आशीष और पिया के कमरे में अटैच्ड वाशरूम भी था ;तो पिया वहाँ सात दिन आराम से रह लेती थी। पिया और उसकी सास की तब भी बड़ी कम बातचीत होती थी। हाँ -ना ,बस इन कुछ शब्दों का ही इस्तेमाल होता था।
पिया और आशीष विवस्वान को भी दादा-दादी के गांव लेकर जा चुके थे। दादा-दादी अपने पोते को देखकर बहुत खुश हुए थे। लेकिन वहाँ पिया ही विवस्वान की पूरी देखभाल कर लेती थी। पिया की सास झिझक के कारण या अन्य किसी कारण से अकेले विवस्वान के साथ नहीं खेलती थी।
ऐसे में अब पिया को वापस ऑफिस ज्वाइन करना था। वह नैनी के अकेले के भरोसे अपने बेटे विवस्वान को छोड़ना नहीं चाहती थी। आशीष का भी ऑफिस था ;आशीष घर के कामों में तो पिया की अभी भी मदद करता ही था ;बच्चे के साथ अकेले सारा काम करना मुश्किल हो जाता है।
"पिया ,अगर तुम कहो तो मैं मम्मी -पापा को यहाँ बुला लेता हूँ। अपने पोते के खातिर वे दोनों यहाँ आ ही जाएंगे। लेकिन तुम्हें थोड़ा एडजस्ट करना होगा। जब तक वे रहना चाहेंगे ;तब तक यहाँ रहेंगे। यह तुम्हारी परीक्षा की घड़ी है। ",आशीष ने कहा।
"हाँ आशीष ,अब और कोई विकल्प भी नहीं है। विवस्वान को नैनी के भरोसे नहीं छोड़ सकते। तुम्हारे मम्मी -पापा रहेंगे तो मुझे भी चिंता नहीं रहेगी। ",पिया ने कहा।
"नहीं अम्मा ,पिया आपसे नाराज़ नहीं है। आपके साथ रही नहीं ;इसीलिए न तो आप उसे समझते हो और न वह आपको। ",आशीष ने फ़ोन पर अपनी मम्मी को कहा।
"बेटा ,बहू को अच्छा नहीं लगेगा। हम गंवार लोग वहाँ आकर रहे तो। ",आशीष की मम्मी ने कहा।
"नहीं अम्मा ,पिया ही चाहती है कि आप यहाँ आओ और अपने पोते के साथ खेलो। लो आप पिया से खुद ही बात कर लो। ",आशीष ने यह कहते हुए फ़ोन पिया को पकड़ा दिया था।
" जी ,अम्मा जी आप यहाँ आकर रहिये। विवस्वान को भी दादा -दादी के साथ अच्छा लगेगा। ",पिया ने कहा।
"ठीक है बहू। ",आशीष की मम्मी ने कहा।
"अम्मा ,आपका और बाबूजी का कब का टिकट करवाऊँ ?",आशीष ने पूछा।
आशीष की मम्मी पिया द्वारा बुलाये जाने से बहुत ही खुश थी। उन्होंने कहा ,"बेटा ,तेरे बाबूजी से पूछकर बता देंगे। "
पिया के ज्वाइन करने के 15 दिन पहले ही पिया के सास -ससुर आ गए थे। पिया ने उनका रूम तैयार करवा दिया था। २-४ दिनों में विवस्वान अपने दादा -दादी से घुल मिल गया था। जहाँ पिया के लिए विवस्वान को खाना खिलाना हिमालय पर चढ़ने के समान होता था ;वहीँ दादी कहानी सुनाकर उसे आराम से खाना खिला देती थी।
धीरे -धीरे पिया समझने लगी थी कि ,"उसकी सास रहती भले ही गांव में हो ;लेकिन काफी समझदार और परिपक़्व हैं। "
"बहू ,हमारे गांव में तो स्कूल नहीं था ;नहीं तो हम भी पढ़ते। आदमी लोग पढ़ते हैं ;तब ही तो अपनी हुकूमत चलाते हैं। ",सास अक्सर पिया को कहती।
एक बार पिया की नयी -नयी लगी नैनी ने उसकी सास के सामने ही पिया को टोक दिया कि ,"भाभी ,आप सिन्दूर -बिंदी कुछ नहीं लगाते। ये सब तो सुहाग की निशानी हैं। "
तब सास ने कहा ," इतना लम्बा -चौड़ा सुहाग तो सामने खड़ा है ;फिर निशानी की क्या जरूरत है ?"
पिया की सास कई व्रत -त्यौहार करती ,लेकिन पिया को कभी भी करने को नहीं कहती।वह हमेशा कहती कि ,"बहू ,यह सब तो हम घर पर बैठी औरतों के टाइम पास करने के तरीके हैं। इन त्यौहारों के बहाने हम थोड़ी देर हँसी -ठिठोली करके खुश हो लेते हैं। पुरुष बाहर कामकाज करते हैं ;इसीलिए उनके पास इन व्रत त्यौहारों को करने का समय नहीं होता ;इसीलिए पुरुषों के लिए कोई व्रत त्यौहार हैं भी नहीं। तुम कामकाजी हो; तुम्हें यह सब करने का वक़्त कहाँ मिलेगा। "
पिया ऑफिस जाने लग गयी थी। विवस्वान की अच्छे से देखभाल हो रही थी। लेकिन पिया ऑफिस से आते -आते बहुत थक जाती थी ,तो वह विवस्वान के साथ टाइम स्पेंड नहीं कर पाती थी। अपने बेटे को समय न देने के कारण ,पिया को कई बार ग्लानि का अनुभव होता था।
एक दिन पिया अपने कमरे में रो रही थी ;तब ही पिया की सास वहाँ किसी काम से आ गयी। उन्होंने पिया को रोते हुए देख लिया।
"क्या हुआ बहू ? किसी ने कुछ कहा क्या ?आशीष ने कुछ कहा ?",पिया की सास ने कहा।
"नहीं, अम्मा जी। मैं एक अच्छी माँ नहीं हूँ। अपने बेटे को समय नहीं दे पा रही। ऑफिस से आकर इतना थक जाती हूँ। ",पिया ने कहा।
"बहू ,माँ सिर्फ माँ होती है। तुम थोड़ा सुबह जल्दी उठकर घूमने जाओ ;सुना है कि सुबह की ताज़ी हवा खून बढाती है। पौष्टिक चीज़ें खाओ। तुम जितना समय दे पाती हो मैं तो उतना समय भी नहीं दे पाती थी। सारा दिन घर के कामकाज में लगे रहते थे। तुम आजकल की लड़कियाँ हर बात पर रोने लग जाती हो। ",अम्माजी ने कहा।
"आप सही कह रही हो। ",पिया अपनी सास के गले लग गयी थी। अम्माजी भी उसके बाल सहलाने लगी थी। दूर खड़ा आशीष मुस्कुरा रहा था क्यूँकि दोनों ही परीक्षा में पास हो गयी थी।
