प्रेम का रंग सुनहरा
प्रेम का रंग सुनहरा
" सुनो, शादी करोगी मुझसे ?"
" शादी ? तुमसे ? शक्ल देखी है अपनी ?"
इस बात पर दोनों हँस पड़ते हैं। हँसते समय मुँह में आधे बचे दाँत दिखलाई दे जाते हैं।
"हमारे बच्चे, नाती-पोते क्या कहेंगे? बुढ़ापे में इनपर इश्क का भूत सवार हो गया है ?"
" इश्क का भूत तो पहले ही सवार हुआ था। कहा भी था, तुमसे। उस समय भी तो इस बात पर हम अलग हुए थे कि लोग क्या कहेंगे ?
आज भी दुविधा गई नहीं तुम्हारी।"
" क्या पता कितनी आयु बची है, कोई इच्छा अपूर्ण क्यों रहे ? अगले जन्म को किसने देखा है ?
तुम्हारे पति नहीं रहे और मेरी पत्नी ने मुझे दस साल पहले ही तलाक दे दिया है। बच्चों ने भी अपनी अपनी गृहस्थी जमा ली हैं। फिर अब बाधा किस बात की है ?"
नाती-पोतियों के झुंड ने अत्यंत हर्षोल्लास के साथ दादा- दादियों की दूसरी शादी करा दी।
सुहागरात को दो साठोत्तरी दम्पत्ति ने जब एक-दूसरे दूल्हा-दुल्हन के वेश में पहली बार एकांत में देखा तो दोनों चेहरे ही गुलाबी हो गए।
वर्षो से, हृदय में, एक-दूसरे के लिए विशेष यत्नपूर्वक संचित प्रेम की रक्त रंजित आभा दोनों के ही मुखावयवों को पल भर में आरक्त कर गई।
क्या इश्क केवल युवा ही कर सकते हैं ?

