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Kunda Shamkuwar

Abstract Romance

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Kunda Shamkuwar

Abstract Romance

प्रेम और चॉइस

प्रेम और चॉइस

2 mins
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न जाने क्यों उसका यूँ देखना मुझे अच्छा लगता था।किसे अच्छा नही लगता यह सब उस उम्र में भला?

उस उम्र का तकाज़ा यही होता है....उस उम्र की चाह होती है....सतरंगी सपने देखने की.....

वह उन सतरंगी सपनो में खो जाया करती थी।प्रेम में सराबोर हर ओर उसे बस हरियाली ही नज़र आती थी.....

और दुनिया!! 

कही पढ़ा था कि प्रेम में दुनिया रंगबिरंगी लगती है। उसकी भी दुनिया रंगबिरंगी हो गयी थी।

लेकिन कुछ दिनों के बाद उसे प्रेम में जैसे कुछ कसाव लगने लगा था।प्रेम में किसे हक़ और अधिकार जताना अच्छा  नही लगता?सारे प्रेमियों की तरह उसे भी वह सब कुछ अच्छा ही लगता था...

दिन गुज़रते गये और उस पज़ेसिव प्रेमी के साथ उसे अपना वजूद किसी कठपुतली से कम नही लग रहा था।बात यही तक रुकती तो भी ठीक थी।लेकिन कुछ दिनों से प्रेमी महाशय हक़ जताने के अलावा झूठ भी बोलने लगे थे।वे छोटे छोटे झूठ....और फिर छोटी छोटी बातों पर उसका यूँ हक़ जताना....

उसके जैसी इंडिपेंडेंट लड़की के लिए एक मुख़्तलिफ़ अहसास था...

लेकिन वह प्रेम में थी....

प्रेम में सराबोर थी.....

खुद से वह सवाल करने लगी कि क्या इसी को प्रेम में अंधा होना कहते है? वह खुद से जवाब माँगने लगी कि इस स्थिति में वह क्या करे?

पूर्ण समर्पण से प्रेम करे?

या अपने अधिकार की माँग करे?

आयडियली उसने पूर्ण समर्पण से प्रेम करना चाहिए था।लेकिन उसने दूसरे ऑप्शन को चूज किया था।

उसके अपने वजूद के लिए...

क्योंकि जिंदगी सिर्फ प्रेम की ही माँग नही करती बल्कि उसे और भी कई चीजों की दरकार होती है...



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