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Renuka Tiku

Tragedy Classics

4  

Renuka Tiku

Tragedy Classics

पंचामृत

पंचामृत

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देव ने अपनी पर्सनल डायरी खोली और उसमें चंदू नाम के पन्नों पर पर क्रॉस क्रॉस क्रॉस लगाता गया। आंखों से बरसते आंसुओं की धार रूकती ही ना थी। बीच-बीच में हिचकी सी बन जाती पर कोई देख ना ले तो रोकने का प्रयास करता। बहुत देर तक सर पकड़ कर देव कभी रोता कभी गंभीरता से एकटक सामने टेबल पर रखे एक्वेरियम को देखता रहता। कुछ सोच कर उसने जेब से अपना मोबाइल निकाला और उसमें व्हाट्सएप खोल पंचामृत ग्रुप खोला और एक साथ सारी चैट पढ़ने में व्यस्त हो गया। पिछले 10 साल की वार्तालाप थी इस ग्रुप में।      पंचामृत के सदस्य थे देवदास यानी  देव स्वयं ,चंद्रशेखर यानी  चंदू, कांति, जय और रवि शंकर यानी शंकर।

इतनी लंबी चैट पढ़ते-पढ़ते न जाने कितनी बार देव के चेहरे पर मुस्कुराहट आई कितनी बार खुशी के आंसू छलके और अंत तक पहुंचते-पहुंचते आंखें भीगती ही गई…भीगती. ही गई…..। कुछ सोच कर उसने क्लियर चैट का ऑप्शन चुन इन 10 सालों की स्मृति को हमेशा के लिए अपने फोन से आजाद कर दिया और तत्पश्चात एग्जिट ग्रुप कर स्वयं को भी उस पंचामृत ग्रुप से बाहर कर लिया। एक लंबी सांस भर वहीं सोफे पर लेट गया देव। सुबह से ना कुछ खाया था ना कुछ पिया और दोपहर हो चली थी। बस सामने की दीवार के सहारे टिके हुए एक्वेरियम में एक अकेली मछली को एकटक देखे जा रहा था जो कभी ऊपर जाती कभी बाय कभी दाएं फिर बीच में रखे हुए 1 बड़े से पत्थर के आसपास घूमती हुई किसी प्लास्टिक के पेड़ के पीछे चली जाती मानो किसी को ढूंढ रही हो। बहुत प्रयास करने पर भी जब उसे कोई ना दिखता तो हताश हो नीचे बिखरे रंगीन पत्थरों पर बैठ जोर जोर से सांस लेती। देव को लगा इतनी समानता है ना हम दोनों में। अभी विचारों की श्रंखला बुनने ही जा रही थी कि देव की पोती श्रुति अंदर आई और बोली- दादू, आज नाश्ता भी नहीं किया, खाना भी ऐसे ही पड़ा है, आपकी तबीयत ठीक है ?उसने देव का माथा प्यार से छूकर पूछा।

 देव मुस्कुरा कर बोला- अरे! आ गई बेटा, हां हां मैं ठीक हूं। बस ऐसे ही दिल नहीं किया नाश्ता करने का। श्रुति ने जल्दी से प्लेट लगाई और बोली- चलिए एक साथ लंच करते हैं दादू।

 बहुत बेमन से खाना खाया देव ने और उठकर अपने कमरे में चला गया। यह क्रम महीने भर तक चलता रहा। ऐसा नहीं कि घर में बेटा, बहू और श्रुति देव की खामोशी से बेखबर थे परंतु जिस खबर ने देव को तोड़ दिया था उसकी अहमियत या यूं कह लीजिए उसका महत्व शायद उनके लिए इतना विशेष ना था।

 चंद्रशेखर यानी चंदू देश के सभी मित्रों में देव के कुछ ज्यादा ही करीब था, अब एकमात्र वही मित्र बचा था देव की बची कुची जिंदगी का साथ देने।

 सरस्वती देव की पत्नी तो काफी साल पहले ही गुजर चुकी थी। समय तो नहीं ना रुकता किसी के लिए भी। आप चाहे कितनी ही मिन्नत कर लो, हाथ पांव जोड़ लो, रो लो। हर सुबह सूर्य देवता भी निकलेंगे और शाम को फिर लौट जाएंगे यही तो गति है जो निरंतर चलती ही रहती है। सरस्वती के जाने के बाद देव के इन चारों मित्रों ने उसे बड़ा हौसला दिया और उसे इस अंधकार से बाहर निकाला।

 देश स्वयं भी कोई 80 वर्ष का था और बाकी सभी मित्र भी आसपास की उम्र के थे। एक-एक करके सभी साथ छोड़ रहे थे। अब एकमात्र चंदू ही बचा था जिसके साथ वह प्रतिदिन सुबह शहर को जाता दोनों बीते दिनों की चर्चा करते और बाकी तीन स्वर्गवासी मित्रों को भी अपनी चर्चा में अवश्य शामिल करते तत्पश्चात अपने अपने घर लौट जाते। घर परिवार वालों के लिए यू चंद्रशेखर अंकल का जाना कोई आश्चर्य या कोई सदमा नहीं था क्योंकि एक उम्र के बाद आप रोगी हो या निरोगी यदि आप रामप्यारे हो जाओ तो लोग ओल्ड एज का खिताब देकर आपका अध्याय समाप्त कर देते हैं। संवेदनशीलता की कोई गुंजाइश नहीं होती। चंद्रशेखर अंक

ल भी 79 वर्ष के थे दुनिया के लिए शायद, पर देव के लिए तो वह वही चंदू था जिसके साथ उसने अपना बचपन, जवानी और न जाने कितने सुनहरे पल बिताए थे। राजदार थे दोनों एक दूसरे के। वास्तव में यह पांचों मित्र पंचामृत जैसे ही थे- एक दूसरे के पूरक। खुशी हो या गम बांट लिया करते। सब को एक दूसरे का आसरा था ,एक दूसरे का सहारा था।

 चंदू के जाने का गम देव को पूरी तरह तोड़ गया। इस सदमे की गहराई घर के सदस्यों की समझ से बाहर थी ।चंद्रशेखर अंकल बुजर्ग थे और दिल कमजोर था उनका तो दिल के दौरे से वह दुनिया से चल बसे। बस इससे ज्यादा की समझ किसी को भी ना थी।

 आज कॉलेज की छुट्टी थी तो श्रुति द देव से बोली- दादू आज नाश्ता एक साथ करेंगे। कितना टाइम हो गया ना हम सब एक साथ नहीं बैठे। देव चुपचाप डाइनिंग टेबल पर आया , एक हाथ में मोबाइल था और दूसरे हाथ में कोई किताब। श्रुति ने चाय और टोस्ट सामने रखें और बोला- किसे फोन करना है दादू? देव बोला अब तो कोई रहा ही नहीं श्रुति। श्रुति ने देव के हाथ से फोन लिया तो देखा व्हाट्सएप पर पंचामृत ग्रुप सबसे ऊपर था । अचानक उसने पूछा- दादू यह कैसा नाम है -:"पंचामृत"? देव ने श्रुति के हाथ से फोन ले लिया और कहा- जानती हो श्रुति बेटा पंचामृत का मतलब है- 5 पवित्र चीजों से मिला हुआ एक शुद्ध पदार्थ। यह नाम हम 5 मित्रों को कांति की दादी ने दिया था। कांति कौन दादू? देव ने कहा चलो "मैं तुम्हें आज पंचामृत की कहानी सुनाता हूं"। देव ने दूसरे हाथ में पकड़ी हुई किताब से कोई 6-7 तस्वीरें निकाली। एक तस्वीर में देव के साथ बाकी चार मित्र भी थे, किस नदी के पास का दृश्य था। देव बोला- यह हम 5 मित्र हैं और यह हमारी आखिरी आउटिंग थी एक साथ। देखो- यह जो बिना बाल वाले अंकल देख रही हो यह शंकर है, यह सबसे लंबा कांति है, यह जो थोड़ा मरियल शरीर का है ,यह जय है हमेशा इसे खाने की रट लगी रहती थी पता नहीं इसका खाना कहां जाता था। हम सब की प्लेट से भी कुछ ना कुछ चुरा कर खा ही लेता था। और यह जो नीली टीशर्ट में मेरे कंधे पर हाथ रख कर खड़ा है ना यह चंद्रशेखर है, मेरा चंदू- सबसे सहज, शांत और कम बोलने वाला। देव ने अपनी झुर्रियों से भरी हुई उंगलियों से फोटो में उसके चेहरे को सह लाया मानो वह सजीव हो और उसे चंदू के होने का एहसास छूने मात्र से हो रहा हो। श्रुति ने पूछा- दादू आप कब से एक साथ थे? मतलब कितने सालों की दोस्ती थी आपकी? धीरे से मुस्कुराया देव और बोला- तेरी दादी के आने से भी पहले हम पांच घनिष्ठ मित्र थे। जानती हो बेटा- जो आपके सच्चे मित्र होते हैं वह महज बातों के लिए या यूं ही घूमने फिरने के लिए ही नहीं होते, आपके चरित्र को बनाने में सही गलत की पहचान कराने में, कठिन समय में ढाल की तरह आपके साथ खड़े होने में, आपकी खुशी में, आपके दुख को बांटने में इनकी अहम भूमिका होती है। वह जवानी के दिनों में पहली बार किसी होटल में जाने की हिम्मत कांति अंकल ने जुटाई थी, और हम सब उसके पीछे पीछे चल पड़े थे। रवि शंकर के साथ हमने घर से छुपकर पहली एडल्ट फिल्म देखी थी । कितना हंसे थे हम जब टिकट चेक करने वाले को गलत उम्र बता सिनेमा घर में घुसे थे । ऐसा लगा था जैसे कोई किला फतह किया था हमने। और यह जय- कोई हलवाई नहीं छोड़ा था गली का इसने, जिससे खाने के बाद इस ने जबरदस्ती में जलेबी ना मांगी हो। कहकर देव के मुख पर बच्चों की सी मासूम मुस्कुराहट आई। श्रुति बोली- दादू , क्या आपने कोई ऐसी शैतानी करी थी जिस पर आप अभी भी हंस सकते हैं? मैंने? कुछ रुक कर और सोच कर देव बोला- मेरे पिताजी ने मुझे कॉलेज पास करने पर ₹100 इनाम दिए और उन दिनों तो ₹100 भी बहुत होते थे, और यह जो कांति और जय है ना बस पीछे पड़ गए कि आज बियर पिएंगे। वहां आसपास तो कोई ऐसा होटल था नहीं और जो था वह पिताजी को जानने वाले थे। तो हम अपने शहर से पास ही के दूसरे शहर चले गए और सब ने अपने घर में बताया कि हम एक दूसरे के घर हैं जैसे चंदू ने बोला वह मेरे यहां है, कांति ने बोला वह जय के यहां है और जय ने घर में बोला कि वह शंकर के यहां है और मैंने घर में बोला कि मैं चंदू के यहां हूं। अब समस्या यह हुई कि वास्तव में हम जाड़े की रात में जाएं कहां? तो फिर आप सब कहां रहे दादू? मुन्नीस्पैलेटी के पार्क में!! डेढ़ 2:00 तक टहलते रहे फिर नल से पानी पिया मुंह धोया और अपने अपने घर लौट गए कहकर देव खूब जोर से हंसा। बहुत ताना मारा था उस दिन मा ने मुझे, कि मैं वापस क्यों आ गया? अब कहां गए तुम्हारे दोस्त? श्रुति भी खूब हंसी सुनकर और बोली इंटरेस्टिंग! यू मिस युवर फ्रेंड्स ना दादू? उसने देव को प्यार से गले लगाया। देव कुछ ना बोला उसकी नजर फिर से सामने के एक्वेरियम मैं अकेली पड़ी मछली पर पड़ी जो वही प्रतिक्रिया दोहरा रही थी। श्रुति ने कहा- आपको यह फिश बहुत पसंद है ना दादू? हमेशा ही इसे देखते रहते हो। देव बोला- हां देखो, मेरी तरह अकेली ही है ना बिचारी, घूम- धाम कर आती है फिर चुपचाप नीचे बैठ जाती है।

 अचानक श्रुति को लगा की यह प्रवृत्ति कुछ ठीक नहीं, बात बदलते हुए बोली- दादू कल हम बाहर डिनर करने जाएंगे ।

 श्रुति ने अपनी मां को टेक्स्ट कर ऑफिस के बाद एक्वेरियम के लिए कुछ और मछलियां लाने को कहा। शाम हो चुकी थी। देव वही अपनी किताब पढ़ते पढ़ते सोफे पर ही सो गया था। नलिनी, श्रुति की मां ने ऑफिस से लौट कर कुछ नई मछलियां एक्वेरियम में डाल दी। लाइट ऑन करी और आवाज दी- बाबूजी लो आपकी फिश का परिवार पूरा हो गया और पास जा कर देव के चेहरे से चश्मा हटाया। सीने पर उलट कर रखी हुई किताब हटाई तो उसमें से पंचामृत की अनेकों तस्वीरें ताश के पत्तों की तरह फर्श पर बिखर गई। बाबूजी, पापा उठिए ! 

देव का शरीर सर्द हो चुका था। पंचामृत का आखरी सदस्य भी उनसे जा मिला। 


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