Renuka Tiku

Inspirational

4.4  

Renuka Tiku

Inspirational

अम्मा

अम्मा

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कितने पैसे हुए भाई? मनोज ने टैक्सी वाले से पूछा। टैक्सी वाले ने पीछे घूम कर बोला सर ₹95। मनोज ने उसे सौ का नोट पकड़ाया और टैक्सी से बाहर उतर गया। टैक्सी वाला बोला साहब मेरे पास खुला पैसा नहीं है। मनोज ने कहा ठीक है ठीक है रखो पर जरा डिक्की तो खोलो। मनोज ने जल्दी से डिक्की से दो सूटकेस उठाएं और सुधा को इशारा कर बोला- अरे तुम आगे चलकर घर का दरवाजा तो खोलो।

 सुधा ने घर का दरवाजा खोला, जल्दी से सारी खिड़कियां खोल दी और पंखे चला दिए। 10- 12 दिन से घर बंद जो था । अंदर घुसते ही मनोज ने सूटकेस एक तरफ रखें और बोला- मैं बाजार से कुछ सब्जी, दूध इत्यादि ले आता हूं, आज अम्मा का मनपसंद खाना बनाना, सुधा। पता नहीं इतने दिन क्या खाया पिया होगा बिचारी ने। कैसे रही होंगी वहां ,कहकर मनोज बाजार की ओर निकल पड़ा।

 मनोज और सुधा दोनों ही अम्मा से बेहद प्यार करते थे। अम्मा का स्वभाव भी कुछ ऐसा था कि किसी चीज में मीन मेख नहीं निकालती थी। खाना जो बनता, वह खा लेती कपड़ा जो सुधा पहनने को लाती हजारों दुआएं दे उसे पहन लेतीऔर तारीफ करते नहीं थकती। उनकी पोती पल्लवी भी आते जाते अम्मा को खूब लाड लगाती। बेटे बहू और पोती में अम्मा की दुनिया सिमटी हुई थी। घर से कभी बाहर निकली ही नहीं थी ना बाहर की दुनिया का ज्यादा ज्ञान था। अम्मा को लगता यही उनका संपूर्ण संसार है।

 अब हुआ यू की पल्लवी को 12वीं के बाद देहरादून के किसी इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला मिल गया। मनोज और सुधा आपस में मशवरा ही कर रहे थे कि दोनों में से कौन पल्लवी को छोड़ने जाएगा और कौन अम्मा के साथ घर में ही रुकेगा। सुधा का मन थोड़ा खराब सा हो रहा था की बच्ची पहली बार घर से बाहर अकेली रहेगी तो एक बार जगह देख लेती वगैरा-वगैरा। एक मां का मन दूसरी मां ने झट पढ़ लिया और अम्मा जिद पर अड़ गई की पल्लवी को छोड़ने मनोज और सुधा दोनों ही जाएंगे। मनोज ने बड़ा समझाना चाहा की 'अम्मा तुम्हें यूं अकेला तो नहीं छोड़ सकते ना'। पर अम्मा टस से मस ना हुई। अभी यह बहस चल ही रही थी की पल्लवी ने मनोज को बोला- पापा, 'हम अम्मा को कुछ दिन रूही आंटी के हॉस्टल 'चिंतन' में भी तो रख सकते हैं अगर उन्हें एतराज ना हो तो। या वह घर पर ही अम्मा को बीच-बीच में देख जाया करें।

 पहले तो मनोज गुस्से से लाल पीला हो गया और चिल्लाकर बोला- 'क्या हो गया है तुम्हें पल्लवी' ?मां को वृद्ध आश्रम में छोड़ दूं? यह कैसी बात कह दी पल्लवी, तुमने? सोचा भी कैसे? इससे पहले कि पल्लवी सफाई देती अम्मा खुद ही बोल पड़ी… अरे, क्यों नाराज हो रहा है बच्ची पर? मुझे लगता है बिल्कुल सही राय दी है इसने। रूही कौन सी पराई है? 2 कोस की दूरी पर तो घर है उसका। हॉस्टल अच्छा नहीं लगा तो मैं घर वापस आ जाऊंगी। तू बेकार में परेशान मत हो। बहुत बहस करने के बाद मनोज और सुधा को अम्मा को रूही आंटी के हॉस्टल 'चिंतन' में छोड़ना ही पड़ा।

रूही मनोज की बचपन की दोस्त थी ,जिसने अपनी पर्सनल प्रॉपर्टी यानी घर को 'चिंतन' वृद्धाश्रम में परिवर्तित कर दिया था। एक बेटा था जो विदेश में अपने परिवार के साथ रहता था। पति को स्वर्गवास हुए भी काफी समय हो गया था तो इतना बड़ा घर और अकेली रूही- खाली घर खाने को आता था। बेटे ने काफी दबाव डाला कि इसे बेच दिया जाए परंतु रूही का बहुत कुछ जुड़ा था इस घर से। उसकी आत्मा बसती थी इस घर में। उसकी जवानी, पति के साथ गुजरे सुनहरे पल, बेटे की किलकारियां। बहुत मुश्किल था रूही के लिए 'चिंतन' की हस्ती को मिटाना। काफी समय तक रूही के मन में द्वंद चलता रहा की 'चिंतन' में बच्चों का प्ले स्कूल ,क्रश खोलू या 'ओल्ड वूमेंस हॉस्टल' टाइप कुछ खोलू। गत 5 वर्षों से 'चिंतन' में अच्छे-अच्छे संपन्न परिवारों की अधेड़ महिलाएं कुछ समय तक रुक जाया करती थी। एक आध महिला ही ऐसी थी जो शायद हमेशा के लिए ही चिंतन का सदस्य बन गई थी, बाकी सब किसी कारण वंश थोड़े समय के लिए आया जाया करती थी। एक डॉक्टर और एक रसोईया रूही ने नियुक्त किया हुआ था। एक कॉमन रूम था जहां कुछ ताश की घड़ियां, और एक हारमोनियम रखा हुआ था। सामने की ओर एक छोटा सा बगीचा था जिसमें रंग-बिरंगे फूल लगे हुए थे।

 अब अम्मा का उत्साह भी देखते ही बनता था। एक और पल्लवी अपने कपड़े और किताबें समेट रही थी तो दूसरी ओर अम्मा अपनी सारी अलमारी बिखेर कर बैठी थी- कौन सी साड़ी रखूं? किसी का ब्लाउज नहीं मिल रहा तो किसी साड़ी के ब्लाउज का रंग पड़े पड़े ही धुंधला सा हो गया था। किसी को देख कर बोलती अरे, यह तो बहुत समय से पहनी ही नहीं, तो यही उठा लेती हूं। अरे, मनोज मेरी नारियल के तेल की शीशी कहां गई? हां और और मेरा बटवा - मनोज इसमें जरा कुछ पैसे तो डाल दे। तभी मनोज बोला -अम्मा, बटुए में दवा रखना ज्यादा जरूरी है, पैसे तो मैं पहले ही डाल चुका हूं। रही तेल की शीशी की बात तो वह कौन सी बड़ी बात है, वह तो वहां भी मिल जाएगी। पर अम्मा बिना तेल की शीशी के कहां चलने वाली थी।

 अगले दिन सुबह अम्मा एक सुंदर सी नीले रंग की साड़ी पहने नीचे आंगन में जा खड़ी हुई। सुधा थोड़ा मुस्कुरा कर बोली अम्मा हमारी याद तो ना आएगी? अम्मा ने उसे गले लगा कर बोला मेरा तो सारा संसार तुम ही लोगों से है और मैं कौन सा हमेशा के लिए जा रही हूं? पल्लवी का काम हो जाए तो बस मुझे वापस घर ले आना। अब यह मनोज कहां रह गया? मुझसे तो बोला था ठीक 9:00 बजे तैयार रहना क्योंकि 1:00 बजे तुम्हारी गाड़ी का समय है। अरे वाह! अम्मा, मनोज अम्मा का सूटकेस उठाते हुए बोला- तुम तो पहचान में ना आ रही हो आज। नारियल के तेल की शीशी उठा ली थी ना फिर? मनोज हंसकर बोला। अम्मा ने हां में गर्दन घुमाई चश्मा ठीक किया, एक नजर घर में दौड़ाई और बाहर निकल गई।

 मनोज रूही से पहले ही बात कर चुका था लेकिन जब अम्मा को वास्तव में 'चिंतन' में छोड़ने का समय आया, तो मनोज का कलेजा जैसे मुंह को आने लगा। यूं लगा जैसे पहली बार बच्चे को किसी प्रिपेयर ए ट्री स्कूल में छोड़ रहा हो। एक बार फिर बोला- अम्मा, मजबूरी में छोड़ रहा हूं… माफ कर देना और तुम भी तो अड़ ही गई ना। सुधा रुक जाती तुम्हारे साथ।

 अम्मा ने 'चिंतन' में कदम रखा और मनोज से बोली- तू क्यों अपने को दोषी साबित करने पर तुला है? मैं जानती नहीं क्या? फिर रूही कौन सी पराई है? कितने साल से जानते हैं इसे। तू चिंता मत कर, जा खुशी खुशी पल्लवी का दाखिला करवा कर लौट ।

 अम्मा को एक बार के लिए लगा कि मैं भी कैसे रहूंगी यहां? पता नहीं कौन कौन होगा? कैसा खाना होगा? बिस्तर और बाकी सब सुविधाएं? फिर सोचा कोई बात नहीं 10- 12 दिन तो यूं ही निकल जाएंगे।

 रूही ने अम्मा को पहले चिंतन का एक चक्कर लगवाया और सभी जगह ठीक से दिखलाई। रूही बोली -आंटी, 'आप शेयरिंग रूम में रह लेंगी'? यह कस्तूरबा आंटी है, और उनके दोनों बेटे सिंगापुर में रहते हैं। इन्होंने अपना घर किराए पर चढ़ा दिया है और अब यही रहती है। बहुत बढ़िया ताश खेलती है यह। वैसे किसी प्राइवेट स्कूल में टीचर रह चुकी है। बहुत अच्छे स्वभाव की है। 

तो सुबह 6:00 बजे चाय आपके रूम में ही आ जाएगी और फिर 9:00 बजे आप कॉमन रूम में सब एक साथ नाश्ता करेंगे। यहां करीब 8 महिलाएं हैं। आप चाहे तो लॉन में टहल भी सकती हैं। 11:00 बजे डॉक्टर मधु चेकअप के लिए आती हैं। इस तरह पूरा शेड्यूल अम्मा को बता कर रूही वहां से चली गई। 

अब अम्मा तो घबरा गई कि भई अगर मैं 6:00 बजे तक सोती रही तो क्या मुझे चाय ना मिलेगी? फिर सोचा- देखती हूं, 10- 12 दिन की ही तो बात है ।

 कस्तूरबा आंटी काफी हंसमुख और स्पष्ट बोलने वालों में से थी। अच्छी दोस्ती हो गई दोनों में। अम्मा ने उसे अपने साथ लाई हुई तेल की शीशी भी इस्तेमाल करने दी। घर से लाया हुआ आम का अचार तो सभी में बड़ा ही हिट हुआ।

 अम्मा को सावित्री शब्द से सिर्फ मनोज के पापा ही बुलाया करते थे। उनके जाने के बाद तो बस वह अम्मा ही बनकर रह गई। यहां सावित्री बहन, सावित्री जी, सावित्री यह शब्द सुनना अम्मा को बड़ा ही अच्छा लगता। एक नया कॉन्फिडेंस आ गया था अम्मा में। शाम को सभी बगीचे में टहलने जाती। 

कॉमन रूम में बैठे बैठे एक दिन सभी अपनी जवानी के दिनों के कुछ हसीन पलो का जिक्र कर रहे थे, तभी कस्तूरबा आंटी ने कहा- अरे सावित्री तुम भी कुछ बताओ ना? अब सावित्री बीच में और आसपास बाकी सब। कुछ सोच कर बोली- मनोज के पापा और मैं गाने के बहुत शौकीन थे। वह होता ना युगल गीत तो हम दोनों हमेशा एक साथ ही गाया करते थे। सभी जोर से हंसी और बोली- तो चलो ना, आज जुगलबंदी हम करते हैं । और अम्मा ने शायद आज 14 साल बाद गाना गाया । तालियों की गड़गड़ाहट से कॉमन रूम गूंज उठा। अम्मा कुछ शरमाई पर उसे एक गर्व का अहसास भी हुआ।

 हर सुबह अम्मा नई साड़ी बदलती और उसने जुड़ा इतिहास सबको बताती- कि यह मनोज के पापा ने संक्रात पर दिलाई थी, यह वाली जब उनकी तरक्की हुई थी तब दिलाई थी, और यह सुधा लाई थी। यकीनन अम्मा को 'चिंतन' में एक नई पहचान मिल गई थी। हर सुबह का बेसब्री से इंतजार रहता उसे। एक साथ बैठकर नाश्ता करना, फिर टहलने जाना या एक साथ टीवी देखना, ताश खेलना बातें करना, अपने सुख दुख बांटना, कुछ अपनी कहना कुछ  उनकी सुनना। एक नया सा अनुभव था, अलग ही दुनिया जहां यह 8 महिलाएं एक ही धागे में पिरोए हुए अलग-अलग फूल  जैसे। सब इंटऔर गारे की इमारतों को छोड़कर 'चिंतन' में जीवन ढूंढने आई थी । कुछ को मजबूरी में आना पड़ा, कुछ थोड़े समय के लिए आई थी, जैसे अम्मा, कुछ हमेशा के लिए 'चिंतन' में बसने के लिए आई थी।

  इन 12 दिनों में अम्मा- अम्मा से सावित्री कब बन गई पता ही ना चला। इस नई पहचान से अम्मा बहुत खुश थी। आज रूही नाश्ते के समय आकर बोली- आंटी मनोज भाई आज आप को ले जाने आ रहे हैं- खुश?

 अम्मा का तो दिल ही बैठ गया। बोली क्यों? मतलब 12 दिन हो गए क्या रूही बेटा? बाकी महिलाएं भी कुछ रुआंसी सी हो गई पर फिर भी चेहरे पर मुस्कुराहट लाते हुए बोली- सावित्री बहन बहुत अच्छा समय निकला आपके साथ। बेटा लेने आ रहा है घर तो जाना ही होगा ना। अम्मा को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि उसे खुश होना चाहिए या नहीं। इस खोई हुई सावित्री को पाकर बहुत खुश थी अम्मा। सारी सहेलियां हम उम्र थी तो समय काटना मुश्किल ना था, एक उत्साह रहता कि अब कल क्या करेंगे? ताश? गाना? या कुछ और? 

 मनोज आया और अम्मा से लिपट गया… अम्मा चलो घर, सामान बांध लिया है ना? बस अब कभी नहीं छोडूंगा तुम्हें ऐसे। अम्मा के एक ओर उसकी नई सहेलियां और दूसरी ओर श्रवण कुमार सा बेटा मनोज। धीरे से बोली- मनोज कुछ दिन और रुक सकती हूं यहां? सहेलियां मुंह में आंचल दबाए हंसने लगी….

मनोज बोला- अभी भी नाराज हो अम्मा?

तभी रूही आई और बोली- एक्चुअली मनोज तुम्हें पता है 'चिंतन' में इन12दिनों में अम्मा वापस अम्मा से सावित्री बन गई और शायद शी एस इनजॉइनिंग बिंग सावित्री अगेन ! नहीं समझे ना?

बिचारे मनोज को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। बस यही बोला- अम्मा, सुधा ने तुम्हारे मनपसंद चीजें बनाई है, चलो जल्दी घर चलो। 



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